Tuesday, February 16, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: जि़ंदगी को चाहिए बस छोटा-सा सहारा

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
स्टोरी 1: उसका जन्म 1968 में मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ, जहां हर नए जन्म को काम करने के लिए नए हाथों और घर चलाने में मदद करने वाले की तरह देखा जाता है। उसका परिवार भी ऐसा ही था। 15 साल की होने से पहले ही इस बच्ची को भी दिहाड़ी मजदूरी और पत्थर तोड़ने के लिए भेजा जाने लगा। छह रुपए रोज मजदूरी मिलती। बड़े पत्थरों को एक खास डिजाइन और आकार में
तोड़ना पड़ता था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। जिस इमारत को बनाने के लिए वह पत्थर तोड़ रही थी, वह राजधानी भोपाल का सबसे बड़ा मल्टी आर्ट सेंटर बना। नाम है- भारत भवन। दिवंगत आर्टिस्ट, पेंटर, कवि और लेखक जे. स्वामीनाथन ने भारत भवन को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इमारत बन रही थी तो वे अक्सर यहां राउंड पर आते थे। उनके अंतर्मन ने कहा कि जो भी इन पत्थरों को आकार दे रहा है वह किसी कलाकार के ही हाथ हैं। 
उन्होंने उस छोटी लड़की को बुलाया। उसे एक कागज दिया और कहा कि जो भी इच्छा हो इस पर बनाओ। पहला दृश्य उसकी आंखों के सामने आया- उसका परिवार और पैतृक घर। उसने इन्हें कागज पर उतारा और फिर इसमें रंग भरने के लिए वह फल तलाशने लगी। स्वामीनाथन ने उसे रंग भी दिए और इस तरह एक कलाकार का जन्म हुआ, जिसे कला जगत में भूरी बाई के नाम से जाना जाता है। वे उन्हें हर पेंटिंग के लिए सौ से डेढ़ सौ रुपए देते। अचानक आसपास की दुनिया बदलने लगी। वे पेंटिंग लेते जाते। भूरी बाई को तो पता भी नहीं था कि इमारत की दीवारें उनकी बनाई ट्राइबल पेंटिंग्स से सजाई जा रही हैं। उन्हें ब्रश, पेंट और अन्य जरूरी चीजें दी जातीं, लेकिन पेंटिंग्स में कल्पना भूरी बाई की होती। उनकी पेंटिंग्स कलरफुल होती, जो जीवन के आनंद से दमकती। पेंटिंग्स देखने वाले के चेहरे पर खुशी और हंसी ले आती। 
भूरी बाई ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 90 के दशक के अंतिम दिनों में उन्हें प्रेसिडेंशियल डेलीगेशन के साथ ऑस्ट्रेलिया आमंत्रित किया गया। वहां ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों और भारतीय आदिवासी कलाकारों के लिए आयोजित वर्कशॉप में वे शामिल हुईं। उनकी कलाकृतियां भारत के अलावा अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों के म्यूजियम और कला वीथिकाओं में भी लगाई गई हैं। उनकी कलाकृति 'स्टोरी ऑफ जंगल' सोदबी ऑक्शन में 1.5 लाख रुपए में बिकी थी। कई राज्यों और केंद्र सरकार ने उन्हें पुरस्कृत किया है। इस समूह की मेरी सहयोगी सना रियाज मुझे हाल ही में भोपाल में उनके चित्रों की प्रदर्शनी में ले गईं। यहां भूरी बाई ने अपनी 47 साल की जिंदगी की कहानी बिना एक भी शब्द कहे 150 पेंटिंग्स में बयां की है। हर चित्र में एक कहानी है, जो इस संदेश पर पहुंचती है कि परिचित या अनजाने किसी भी व्यक्ति द्वारा दिया गया एक छोटा-सा सहारा किसी गरीब की जिंदगी पूरी तरह बदल सकता है। 

स्टोरी 2: 1 जनवरी 2015 के दिन कई लोगों की तरह चेन्नई की सुनीता तुम्मलापली ने भी अपने कुछ संकल्प लिखने के लिए डायरी उठाई। कुछ देर उन्होंने सोचा कि क्या लिखूं। आखिर डायरी के कवर ने ही सहारे का छोटा हाथ बढ़ाया, जिस पर लिखा था- '2015'। उन्होंने तुरंत लिखा, 'मैं 2015 किलोमीटर दौड़ूंगी'। हिसाब लगाया तो पाया कि हर दिन 5.5 किलोमीटर दौड़ना होगा। फिर उन्होंने 13 मैराथन की लिस्ट बनाई, जिसमें वे शामिल हो सकती थीं और इनकी कुल दूरी आई 1500 किलोमीटर। उन्हें लगा कि 2015 तो मुश्किल होगा, लेकिन फिर उन्होंने अंटार्कटिका मैराथन, अफ्रीका की अमेजिंग मेस्सी मैराथन और सेवन कॉन्टिनेंट फिनिशर्स मैडल हासिल करने के लिए दक्षिण अमेरिका की एक मैराथन को अपनी लिस्ट में जोड़ा। 
फंडा यह है कि जीवनको हमेशा सहारे की जरूरत होती है। कुछ को भौतिकरूप से मदद की जरूरत होती है, जबकि कुछ अपने सपने पूरे करने के लिए इसे जाने कहां से पा लेते हैं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.