एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
इस साल अप्रैल से जून के बीच कई इंडस्ट्रीज में उतार-चढ़ाव देखे गए। भारतीय टैक्सटाइल इंडस्ट्री का उदाहरण ही लीजिए, इसमें 44,000 प्रत्यक्ष कर्मचारी जोड़े गए, लेकिन इस दौरान 61,000 अनुबंधित कर्मचारियों को कम कर दिया गया। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री ने भी कर्मचारियों की संख्या 18,000 घटा दी। इसी तरह आईटी और बीपीओ इंडस्ट्रीज ने भी यह सुनिश्चित किया कि जॉब 5,000 कम हो जाएं। यह
पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हैंडलूम ने रोजगार की संख्या 6,000 तक घटा दी, ज्वैलरी इंडस्ट्री ने सफलतापूर्वक करीब 3,000 नौकरियां कम कर दी। यही नहीं हमेशा गतिशील बने रहने वाले ट्रांसपोर्ट सेक्टर ने भी 2000 रोजगार कम कर दिए। मेटल सेक्टर ने कोई नया रोजगार पैदा नहीं किया, वहीं लेदर सेक्टर ने आश्चर्यजनक रूप से इसी अवधि में 8,000 नए रोजगार दिए, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि टैक्सटाइल और बीपीओ सहित आईटी सेक्टर ने अप्रैल से शुरू हुए इस वित्तीय वर्ष में कमजोर प्रदर्शन किया, जबकि पिछले वर्षों में नौकरियां सृजित करने में यह सबसे आगे रहा है।
श्रम मंत्रालय द्वारा किए गए 26वें त्रैमासिक (अप्रैल-जून 2015) सर्वे में कई क्षेत्रों में नौकरियों में कमी देखी गई या कोई भी बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गई। सरकार ने इस तरह के रोजगार सर्वे दिसंबर 2008 से शुरू किए थे। इसकी वजह वैश्विक मंदी का भारतीय रोजगारों पर असर का अध्ययन करना था। हालांकि, प्रत्यक्ष रूप से 30,000 नई नौकरियां सर्वे अवधि के दौरान जोड़ी गई, लेकिन सभी इंडस्ट्रीज ने 61,000 नौकरियां कम कर दीं। इसमें से अधिकांश अनुबंध के आधार पर थीं। एक तरफ भारत 'मेक इन इंडिया' उत्पादों को बढ़ावा देकर देश में रोजगार और निर्यात बढ़ाना आयात घटाना चाहता है, वहीं लगता है कि अन्य देश भी इसी तकनीक को आजमा रहे हैं। इस साल सिर्फ अक्टूबर महीने में ही हमने आयात 21.2 प्रतिशत कम करने में सफलता हासिल की, लेकिन इसी अवधि में हमारा निर्यात भी 17.5 प्रतिशत घट गया, इस वजह से नौकरियों में कटौती करनी पड़ी। इसलिए आयात गिरने का असर कुछ समय के लिए नौकरियों में कटौती के रूप में देखा जाएगा, इसलिए भारत के निर्माण और निर्यात सेक्टर में नई नौकरियां पैदा होने की जल्द संभावना नजर नहीं रही है, क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि आयातों में कमी लंबे समय तक जारी रहेगी। दूसरी तरफ मेक-इन-इंडिया लेबल के तहत बढ़ावा पा रही कई कंपनियां बड़े प्रयास में लगी हैं। ऐसा ही एक सेक्टर है- रक्षा क्षेत्र। फिक्की इंडिया की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2022 में दौरान इस सेक्टर में 620 अरब डॉलर का बजट आवंटित होगा। सरकार की नीति अब यह है कि 2027 तक 70 प्रतिशत रक्षा परियोजनाएं स्वदेशी हों। इस तरह भारतीय रक्षा बाजार 2022 तक 87,000 करोड़ रुपए का हो जाएगा और 2027 तक यह बाजार 1,65, 000 करो़ॉ रुपए का हो जाएगा।
देश में ही हेलिकॉप्टर बनाने के लिए एयर बस इंडस्ट्री ने महिन्द्रा के साथ अनुबंध किया है। रिलायंस इंडस्ट्रीज भी रक्षा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर उतर रही है। इसी तरह एचएएल ने लेज़र नेविगेशनल सिस्टम के लिए स्निकमा के साथ और युद्धक टैंक के लिए ऑपट्रॉनिक्स के लिए अनुबंध किया है। ये कंपनियां इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के प्रतिभाशाली और महत्वाकांक्षी युवाओं की तलाश में हैं। विदेशी पार्टनर अपने भारतीय सहयोगियों को तकनीक हस्तांतरित करेंगे और इंजीनियरिंग छात्रों के लिए रक्षा क्षेत्र में जाने का यह सही समय है। जॉब मार्केट सिकुड़ नहीं रहा है, बल्कि यह नए क्षेत्रों में पंख फैला रहा है और यह अपने-अपने क्षेत्र में महारत रखने वाले प्रतिभाशाली युवाओं की तलाश में है।
फंडा यह है कि अगरआप जॉब की तलाश में हैं तो बढ़ते उद्योगों को पहचानिए, कम से कम अगले एक दशक तक, जैसे रक्षा उद्योग। और उन्हीं इंडस्ट्री में स्थान पाने के लिए अपनी शिक्षा की दिशा को मोड़ें। उद्योग जगत के आंकड़ों का नियमित अंतराल पर अध्ययन करने से फोकस बनाए रखने में आपको मदद मिलेगी।
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साभार: भास्कर समाचार
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