Sunday, February 7, 2016

सक्सेस फंडा: सपने देखना, धैर्य रखना प्रयास करते रहना जरूरी

कुछ बातों का ध्यान रखें तो सफलता जरूर मिलेगी। भले ही वक्त लगे। जानते हैं कुछ बड़े बिज़नेस लीडर्स कैसे सफल हुए:
विचार को अमल में लाएं: जैकडोर्सी ने कहा है कि किसी काम को शुरू करना सबसे मुश्किल काम है। हर व्यक्ति के पास कोई कोई विचार हाेता है, लेकिन दरअसल सफलता तब मिलती है, जब विचार पर अमल
किया जाए, उसे आगे बढ़ाया जाए और अन्य लोगों को अपने साथ काम करने के लिए आकर्षित किया जाए। यही सबसे बड़ी चुनौती है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उनका कहना है कि जिस काम को आप नायाब मान रहे हैं उसके बारे मंे ज्यादा सोच-विचार नहीं करना चाहिए। पूंजी की चिंता करें। बस फौरन काम शुरू कर दें। लेकिन काम शुरू करने से पहले दूसरों से फीडबैक जरूर लें। ताकि यह स्पष्ट हो जाए कि आपका विचार सफल हो सकता है या नहीं। या कितना सफल हो सकता है। यदि किसी काम के विचार को अपने दिमाग में ही रखेंगे तो, उस पर अमल नहीं करेंगे तो वह साकार कैसे होगा। 
सफलता रातोंरात नहीं मिलती: विचार पर अमल करने और साकार करने में वक्त लगता है। इसमें बहुत धैर्य की जरूरत होती है। धैर्य नहीं है तो अमल के पहले ही विचार छोड़ने का खतरा रहता है। जैक डोर्सी आज बहुत सफल हैं, लेकिन यह याद रखना चाहिए कि उन्होंने 13 साल की ही उम्र में प्रोग्रामिंग का काम शुरू कर दिया था। ट्विटर का विचार उनके दिमाग में 30 साल की उम्र मंे आया था। 13 से 30 का होने के दौरान जो अनुभव उन्होंने हासिल किए उसी के आधार पर ट्विटर बनाया। ट्विटर को भी लोकप्रिय होने में कई साल लगे। लेकिन डोर्सी लगन से जुटे रहे। 
बड़े सपने देखना जरूरी: टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा बड़े सपने देखते थे। लेकिन फर्क यह था कि जमशेदजी के सपने अपने लिए नहीं समाज के लिए थे। धीरूभाई अंंबानी ने भी अपने सपनाें के सहारे ही रिलायंस जैसा इतना बड़ा समूह तैयार किया। जब वे अदन में शेल कंपनी के पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरने का काम करते थे, तभी उन्होंने भारत में शेल जैसी कंपनी बनाने का सपना देखा था। ध्यान देना चाहिए कि उनका सपना उस पेट्रोल पंप का मालिक बनना नहीं था, जहां वे काम करते थे। धीरू भाई की सफलता इस बात का प्रमाण है कि बड़ी सफलता बड़े सपनों से ही मिलती है। 
संतुष्ट हों: कार्लबेंज ने कहा था कि अाविष्कार करते रहना अाविष्कार कर चुकने से बेहतर है। उनका मतलब था कि किसी भी अाविष्कारक को अपने काम से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। अपने विचारों में, प्रयासांे में कुछ कुछ नया करते रहना चाहिए। बेंज ने 1879 में टू-स्ट्रोक इंजन का पेटेंट लिया था। लेकिन वे संतुष्ट नहीं थे। इसके बाद उन्होंने स्पीड रेग्युलेशन सिस्टम, इग्नीशन, स्पार्क प्लग, कार्बोरेटर, क्लच, गियर सहित कई पेटेंट लिए। बेंज ने ही संसार का पहला ट्रक बनाया। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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