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साभार: दैनिक भास्कर समाचार
एक राजा प्राय: रात के समय अपनी प्रजा के हालचाल जानने के लिए वेश बदलकर
घूमता था। उसे कोई पहचान नहीं पाता और इसलिए वह प्रजा की समस्याओं व
जरूरतों का ठीक-ठीक तरीके से आंकलन कर पाता था। इससे उसे राज्य विषयक योजनाएं बनाने में तो मदद मिलती ही थी, साथ ही वह
अपनी प्रजा के हर प्रकार के स्तर से वाकिफ होता था। एक बार वह रात के समय
निकला और राजधानी के पूर्वी छोर की बस्ती में पहुंचा। वहां का इलाका
अपेक्षाकृत
रूप से निर्धन था। राजा वहां बनी झोपडिय़ों में रहने वालों से
मिला और उनकी समस्याओं को जाना। आप
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हैं। तभी उसकी दृष्टि एक पांच वर्षीय बच्चे पर पड़ी। बच्चा निर्धन बस्ती का होने
के बावजूद एकदम स्वस्थ व तंदुरुस्त था। राजा ने उसे अपने पास बुलाया और
स्नेह किया। फिर पूछा कि वह किसका बच्चा है? एक विधवा महिला ने उसे अपना
बच्चा बताया। जब राजा ने बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य की प्रशंसा की तो वह
बोली, मैं उसके भोजन से जुड़ी तीन बातों का ख्याल रखती हूं।
पहली, मैं उससे कहती हूं कि वह कठिन परिश्रम करे। मेहनत करने से शरीर और मन
स्वस्थ रहते हैं। दूसरी, मैं उसे सदैव घर का खाना खिलाती हूं। शरीर के लिए
घर के खाने से पौष्टिक भोजन और कोई हो नहीं सकता। तीसरी, मैंने उसे सिखाया
है कि उसे न जरूरत से अधिक खाना चाहिए और न ही भूख से कम। राजा को उस मां
पर बहुत गर्व हुआ। उसने वहीं स्वयं का असली रूप प्रकट कर उस महिला को
पुरस्कृत किया और शेष सभी से अपने बच्चों को ऐसी अच्छी शिक्षा देने का
आग्रह किया। अभिभावक यदि अपने बच्चों को आचरण व स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा
आरंभ से दें तो भविष्य में वे बच्चे भी स्वस्थ रहेंगे और बेहतर इंसान भी
बनेंगे।
साभार: दैनिक भास्कर समाचार
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