Tuesday, July 11, 2017

गोरखा आंदोलन का एक महीना पूरा: दार्जिलिंग में बंद और हिंसा से 800 करोड़ रु. का नुकसान

पश्चिम बंगाल से अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर बीते एक महीने से दार्जिलिंग जल रहा है। हालिया हिंसा के बाद ममता सरकार ने सेना को दोबारा तैनात किया है। इस हिंसा में अब तक सात युवकों की मौत हो
गई है। आंदोलन की अगुवाई कर रहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का कहना है कि सीएम ममता बनर्जी ने बातचीत की पेशकश को ठुकरा दिया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।
इस पूरे आंदोलन पर भास्कर की खास रिपोर्ट:
वैसे तो जून-जुलाई में दार्जिलिंग की सड़कें और होटल पर्यटकों से खचाखच भरे रहते हैं। यहां की खूबसूरती को हर कोई अपने कैमरे में ताउम्र संभालकर रखना चाहता है। लेकिन यह नजारा गुम हो गया है। बाजार बंद हैं। सड़कें सूनी पड़ी हैं। होटलों में भी ताले जड़े हुए हैं। बिल्कुल कर्फ्यू जैसा माहौल है। यह कहते हुए दार्जिलिंग की गलियों में हैंडीक्राफ्ट बेचने वाले बिपिन सुबक पड़ते हैं। वो कहते हैं कि बीते एक महीने से दार्जिंलिग जल रहा है। आगजनी और हिंसक प्रदर्शनों ने दार्जिलिंग से पर्यटकों को दूर कर दिया है। इन्हीं से हमें दो जून की रोटी की नसीब होती थी। घर में जमा खाने-पीने का स्टॉक खत्म हो गया है। हम अलग गोरखालैंड चाहते हैं लेकिन बच्चों को भूखा मरने के लिए भी नहीं छोड़ सकते हैं। हम तो बस यही चाहते हैं कि किसी तरह यहां के हालात पहले जैसे हो जाएं। दूसरी तरफ आंदोलन की अगुवाई कर रहे लोग बिल्कुल भी झुकने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने बंद को 18 जुलाई तक बढ़ा दिया है। 
बागडोगरा में रहने वाले एक युवक ने बताया कि दार्जिलिंग में सिक्किम से आने वाली जरूरी खाने-पीने के सामान और दवाइयों की सप्लाई भी बाधित हो रही है। इससे भुखमरी जैसे हालात हो गए हैं। लोग गैंग बनाकर देर रात सड़कों पर निकलते हैं। ये चेहरों को नकाब से ढके रहते हैं। ये गैंग रास्ते में पड़ने वाली खाने-पीने की दुकानों और होटलों को लूट रहे हैं। दार्जिलिंग की पहचान उसकी खूबसूरती, चाय के बागानों और टॉय ट्रेन से है। रोजाना करीब 45 हजार लोग यहां आते हैं। यहां का हर घर पर्यटन से चलता है। यहां के लोगों का कहना है कि अलग गोरखालैंड की उनकी मांग सौ साल से भी पुरानी है। मगर इस बार 8 जून को आए ममता सरकार के एक आदेश ने स्थिति को बिगाड़ दिया। यह था राज्य के स्कूलों में 10वीं कक्षा तक बांग्ला भाषा की पढ़ाई को अनिवार्य करना। इसके जरिए वो जबरन बांग्ला भाषा थोपना चाहती हैं। जबकि यहां के लोगों की मूल भाषा नेपाली है। हालांकि बाद में स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा गया कि यह आदेश बाध्यकारी नहीं है। 15 जून को जीजेएम प्रमुख विमल गुरुंग के दफ्तर पर पुलिस के छापे के बाद हालात बेकाबू हो गए। आंदोलन की आग अब सिक्किम भी पहुंच चुकी है। वैसे इस हिंसा की आग में अब तक करीब 800 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। दार्जिलिंग टी एसोसिएशन के प्रमुख सलाहकार संदीप मुखर्जी कहते हैं, इस आंदोलन से चाय उद्योग को करीब 350 करोड़ रुपए की चपतलगी है। इस समय चुनी गई पत्तियों की विदेशों में भारी मांग रहती है। इनकी ऊंची कीमत मिलती है। करीब महीने भर से पत्तियां चुनने का काम बंद है। इससे घास फूस बढ़ने की वजह से कीड़ों के हमले का खतरा है। अब तक बंद से चाय उद्योग को छूट दी जाती रही है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के महासचिव रोशन गिरि कहते हैं, 'हम अपने वजूद के लिए लड़ रहे हैं। लोग पेट की चिंता किए बगैर लड़ रहे हैं। पहाड़ पर दार्जिलिंग, मिरिक, कार्सियांग, कालिम्पोंग आदि जगहों पर जाने के लिए सिलिगुड़ी के दार्जलिंग मोड़ या सिलिगुड़ी जंक्शन से ही गाड़ियां मिलती हैं। दोनों ही जगहों पर सन्नाटा है। जिन लोगों ने ट्रैवल एजेंसियों के जरिए होटल बुक करा रखे थे, उनमें से ज्यादातर ने यात्रा रद्द कर दी है। कुछ लोग भूटान और सिक्किम का रुख कर रहे हैं। दिल्ली से सपरिवार दार्जिलिंग घूमने आए पंकज मित्तल बताते हैं कि 2010 में आंदोलन की वजह से उन्हें अपनी यात्रा रद्द करनी पड़ी थी। इस बार पहले ही फ्लाइट टिकट बुक करा लिया था, इसलिए भूटान जाने की योजना बनाई। पर्यटन कारोबार से जुड़े राज बसु बताते हैं कि इस बंद से पर्यटन उद्योग को 400 करोड़ का नुकसान हुआ है। युवाओं ने गतिधारा योजना के तहत लोन पर गाड़ियां लीं। आज उनकी गाड़ियां खड़ी हैं। अब ईएमआई चुकाने का संकट पैदा हो गया है।
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साभार: भास्कर समाचार 
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