Tuesday, July 11, 2017

लाइफ: हमारी जिंदगी में दोस्त चमत्कार कर सकते हैं

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
साेमवार को सुबह मैं न्यूयॉर्क टाइम्स में 32 साल की सुनयना की कहानी पढ़ रहा था, जिनके पति श्रीनिवास कुचिभोलता की अमेरिका के एक बार में इसी साल 22 फरवरी को हेट क्राइम में गोली मारकर हत्या कर दी गई
थी। श्रीनि के हैदराबाद में अंतिम संस्कार के बाद सुनयना मई में फिर अमेरिका लौटीं। अपने पैरेंट्स के साथ। लेकिन श्रीनी के बिना, अपने घर जाने की हिम्मत जुटाने के पहले करीब दो महीने वे अपने दोस्तों के घर पर रहीं। कहानी दिल को छू लेने वाली थी। इसमें बताया गया कि सुनयना हर स्थान पर कैसे जाकर रुक जातीं और पति को याद करतीं। खास तौर पर पूजा के कक्ष के सामने, जिसे श्रीनि ने दो साल पहले विशेष रूप से बनाया था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हमेशा अपनी प्राइवेसी को प्राथमिकता देने वाली एक दोस्त ने अपनी निजता को छोड़कर सुनयना को अपने साथ रखा, ताकि वह हिम्मत जुटा पाए और एक दिन अपने घर लौट सके। यह दिन था, बीता रविवार। इस घटना ने मुझे हमारे परिवार की 81 साल की कल्याणी की याद दिला दी। उन्हें हमेशा पीरा-अम्मा के नाम से पुकारा जाता है। तमिल में इसका मतलब होता है, बड़ी मां। तीन साल पहले उन्हें सेरिब्रल एन्यूरिज्म हो गया था। पांच महीने वे अस्पताल में रहीं। इसके बाद खाने-पीने सहित अपने हर काम के लिए उन्हें किसी की मदद की जरूरत पड़ती है। एन्यूरिज्म का मतलब है हाई ब्लड प्रेशर की वजह से शरीर के किसी अंग में नस फट जाना। कल्याणी के मामले में ये नस दिमाग में फटी थी। 
कल्याणी को दैनिक कामकाज में भी मदद की जरूरत थी। छह महीने बाद एक पारिवारिक मित्र ने तय किया कि वह अपनी 91 साल की मां सीतालक्ष्मी को लेकर कल्याणी से मिलने आएगा, क्योंकि कल्याणी और सीतालक्ष्मी बचपन की मित्र थीं। उम्र में 10 साल का अंतर होने के बावजूद दोनों में बहुत अच्छी केमेस्ट्री थी। दोंनों ही अल्प आय वाले परिवारों में जन्मी थीं और दोनों की कम उम्र में शादी हो गई थी। यह उस दौर में सामान्य चलन था। आठ-नौ बच्चों के बड़े परिवार में सबसे बड़ी बहू के रूप में बड़ी जिम्मेदारियों के साथ इनका नए घर में प्रवेश हुआ था। जब परिवारों की स्थितियां सुधरने लगीं तो दोनों अपने पतियों को खो बैठीं। अब दोनों मुंबई में रहती हैं, जहां दोनों के ही बच्चे अच्छी उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं। 91 साल की महिला का कुबड़ निकल आया है और 81 साल की महिला बिस्तर पर है। 
सीतालक्ष्मी नहीं जानती थीं कि उनकी सबसे अच्छी दोस्त कल्याणी अस्पताल में थी। वह सीधे कल्याणी के पास पहुंची और उन्हें गांव की कहानियां सुनाने लगीं। बाद में उन्हें एहसास हुआ कि कल्याणी उतनी जल्दी जवाब नहीं दे पा रही है, जैसा कि वे हमेशा करती हैं। तब उन्हें बताया गया कि कल्याणी बीमार हो गई थीं और अस्पताल में रही हैं। फिर उन्होंने रुकने का फैसला किया। उन्होंने कल्याणी की बहू विजी से कहा कि वह खाने में वो बनाए जो दोनों सखियों को अपनी युवावस्था में पसंद थी। दोनों के सामने प्लेट रखी गई और भोजन परोसा गया। सीतालक्ष्मी ने सिर्फ एक बात कही कि आओ अपने हाथ धो लो मेरे साथ बैठकर खाओ। कल्याणी ने सभी को चकित कर दिया और वो उठीं, थोड़ी-सी मदद से हाथ धोए अपना भोजन खुद किया। 
और फिर इस रविवार को मैंने 80 साल से ऊपर की इन दो सखियों को एक शादी में साथ में बैठे देखा। दोनों हंस, मुस्कुरा रही थीं। आने-जाने वालों से बातें, हंसी-मजाक चल रहा था। मैंने दोनों को तल मंजिल पर बने मंडप के मंदिर की ओर जाते देखा, जैसे पांच साल के दो बच्चे हाथ थामे बागीचे में टहल रहे हों। मैं नि:शब्द हूं, यह नहीं बता सकता कि अच्छे दोस्त एक-दूसरे के लिए क्या कर सकते हैं। 
फंडा यह है कि अच्छेदोस्त बनाइए, क्योंकि दोस्त वो काम कर सकते हैं जो नज़दीकी रिश्तेदार और दवाइयां भी नहीं कर सकतीं! 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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