Wednesday, April 19, 2017

संवेदनशील लोग अनकहे शब्द भी सुन लेते हैं

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
इस रविवारको 32 साल की स्वपना कुलकर्णी अजगांवकर प्रतिष्ठित डेक्कन क्वीन के रिजर्व एसी कम्पार्टमेंट में अपने पति और बच्चे के साथ पुणे से मुंबई की यात्रा कर रही थीं। चूंकि ट्रेन में काफी भीड़ थी, इसलिए स्वपना
अपने बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने के लिए किसी जगह की तलाश में थीं। नज़दीक का कम्पार्टमेंट पासधारियों के लिए रिजर्व था, इसलिए उसमें रविवार होने के कारण कम भीड़ थी। वे तेजी से एक खाली सीट की ओर बढ़ीं और बेटे को संभालने लगीं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इसके पहले की बच्चा थोड़ा दूध पी पाता, एक पासधारी गया और जोर से चिल्लाने लगा कि कम्पार्टमेंट खाली करो ये नियमित यात्रियों के लिए है। पासधारियों और पास रखने वालों के बीच लड़ाई विशेष रूप से डेक्कन क्वीन में कोई नई बात नहीं है। साथी यात्री खामोशी से देखते रहे। टीसी ने उन्हें रूल बुक दिखाई और उसे फिर भीड़भाड़ भरे कम्पार्टमेंट में धकेल दिया, जबकि मां और बच्चे की चार आंखों में आंसू बह रहे थे। मेरे एक मित्र इस असंवेदनशीलता को देख रहे थे। उन्होंने बाद में स्वपना के लिए इंतजाम किया। उन्होंने मुझे कहा कि बच्चे की आंखों में देखते हुए मुझे लगा कि जैसे वो कह रहा हो प्लीज, अंकल मेरी मदद करो, मैं भूखा हूं, मुझे दूध पीना है। 
इस घटना ने मुझे झकझोर दिया, बल्कि मुझे अपने पैतृक गांव की याद दिला दी। हमारे परिवार की गाय लक्ष्मी बीमार थी। लक्ष्मी परिवार के सदस्य की तरह थी। वह किचन तक जाती थी, लेकिन कभी किचन में प्रवेश नहीं करती थी। वह मुथु के अलावा किसी को भी कभी उस बड़े आंगन में आने नहीं देती थी। मुथु पेड़ों से नारियल तोड़ने में हमारी मदद करने आता था। लक्ष्मी के छह महीने के बछड़े को किसी तरह यह अहसास हो गया था कि उसकी मां को कहीं शिफ्ट किया जाना है। पास के पशु चिकित्सालय से लक्ष्मी को लेने एक बैलगाड़ी गई थी। लक्ष्मी जमीन पर बेठी थी और उसका बछड़ा हमारी तैयारियों को देख रहा था। वह परेशान और नर्वस हो रहा था। जैसे ही हमें लक्ष्मी को लाने का कहा गया, बछड़ा मां की तरफ दोड़ पड़ा और उसके पास जाकर बैठ गया और दूध पीने लगा। चूंकि वह दूध पी रहा था, इसलिए मेरे चाचा ने कहा कि हमें थोड़ा इंतजार करना चाहिए। बछड़ा मां का दूध पी रहा था और एक आंख से लगातार मेरे चाचा की ओर देख रहा था। वह इतनी जोर से दूध पी रहा था कि उसके मूंह से दूध ओवरफ्लो होने लगा था। यहां तक कि वह दूध पी भी नहीं रहा था, बस चूस रहा था और दूध को बाहर मैदान में फेंक रहा था। चमकदार कंचे के आकार की आंख लगातार मदद की तलाश में थी और वह अपलक मेरे चाचा की ओर देख रहा था। हो सकता है उसकी सोच रही हो कि जब तक वह दूध पीता रहेगा कोई भी उसकी मां को दूर नहीं ले जाएगा। मैं कभी उस दृश्य को भूला नहीं, बछड़े की आंखों से आंसू रहे थे और उसके मुंह से दूध गिर रहा था। 
चाचा की आंखें नम थीं, उन्होंनें कहा कि बच्चे की समझदारी देखो। फिर उन्होंने हमें कहा कि बछड़े को भी ले चलो ताकि लक्ष्मी जल्दी ठीक हो जाए। और मानो या मानो तीन दिन में दोनों घर वापस गए। लेकिन जो दो रातें उनके बिना बिताईं वो काफी लंबी थीं, विशेष रूप से मेरे अंकल के लिए। पूरी रात वे लक्ष्मी और उसके बच्चे की कहानी अस्पताल में सुनाते रहे। यही वे दिन में भी करते। मेरी चाची भी उनसे सवाल करती रहीं। यह लंबे समय तक लक्ष्मी के साथ रहकर विकसित संवेदनशीलता का परिणाम था। 
फंडा यह है कि आपअनकहे शब्द भी साफ सुन सकते हैं। इसका तरीका है- हर प्राणी के लिए संवेदनशील होना और उनकी आंखों में देखना। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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