Thursday, October 15, 2015

सुप्रीम कोर्ट में सरकार की दलील: गाँवों में ब्रॉडबैंड है तो पंचायत पढ़ी लिखी क्यों न हो?

हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है ऐसे राज्य में जहां 86 फीसदी घरों में शौचालय हों और 40 हजार स्कूल हों, वहां पंचायत चुनाव लड़ने के लिए शैक्षणिक योग्यता और घरों में शौचालय की अनिवार्यता तय करने पर क्यों सवाल उठाए जा रहे हैं। राज्य सरकार का कहना है कि सरपंच को पढ़ा-लिखा होना जरूरी है तभी वह अच्छे ढंग से काम कर सकेंगे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अब गांवों में ब्राडबैंड और सोलर सिस्टम है तो क्या सरपंच बनने के लिए शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं की जानी चाहिए। हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम, 2015 का बचाव करते हुए राज्य सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बुधवार को न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि सरपंच का पद कार्यकारी का होता है। उस पर महत्वपूर्ण कामों की जिम्मेदारी होती है। उनका काम ऐसा है जब तक वह शिक्षित न हो, वे काम को प्रभावी तरीके से नहीं कर पाएंगे। सरपंच को रोल मॉडल बनना चाहिए। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बेंचमार्क को ऊंचा किया है। समय समय पर कोर्ट अपने फैसले के जरिए राजनीति में सुधार कर रही है, जो स्वागत योग्य है। उदाहरण के तौर पर पहले जब तक किसी व्यक्ति की सजा पर रोक लग जाए, वह चुनाव लड़ सकता था और वह विधायक और सांसद पद पर बना रह सकता था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले के जरिए साफ कर दिया है कि जिस दिन निचली अदालत किसी को दोषी ठहरा देती है, तत्काल सांसद या विधायक की सदस्यता खत्म हो जाती है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारअमर उजाला समाचार 
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