सड़क दुर्घटना में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें भारत में ही होती हैं। हर साल 1 लाख 20 हजार लोग इसमें मारे जाते हैं। विकसित देशों के मुकाबले यह तीन गुना है। दुर्घटना की स्थिति में बीमा सुरक्षा, प्रतिकार और क्षतिपूर्ति आदि की कानूनी व्यवस्था का अपना महत्व है, जानिए क्या है-
- सबसे पहले सड़क दुर्घटना से संबंधित लोगों दुर्घटना में मृतकों के आश्रितों द्वारा चालक, वाहन मालिक तथा बीमा कंपनी संबंधी अधिकारों को समझना जरूरी है। किसी व्यक्ति या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर जो राशि देनी होती है, वह मुआवजा राशि कहलाती है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मुआवजे का दावा वे ही कर सकते हैं, जिन्हें चोट आई है या संपत्ति या वाहन का मालिक है या फिर मृतक का सगा संबंधी है या कानूनी प्रतिनिधि या घायल द्वारा नियुक्त एजेंट या मृतक का कानूनी प्रतिनिधि है।
- मोटर वाहन अधिनियम के अधीन मोटर दुर्घटना ट्रिब्यूनल की व्यवस्था है। अधिकांशत: ये जिला न्यायालय के प्रांगण में स्थित होते हैं। इसमें जिला न्यायाधीश बैठते हैं। मुआवजे के आवेदन उस क्षेत्राधिकार में आने वाली ट्रिब्यूनल को संबोधित की जानी चाहिए। सड़क दुर्घटना की स्थिति में हर राज्य में दावे के लिए निर्धारित फॉर्म होते हैं। ये फॉर्म कोर्ट अधिकारी या टिकिट/ स्टाम्प बेचने वालों के पास से नाममात्र का पैसा देकर प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे फॉर्म में दावेदार का नाम, पता, मोटर चालक का नाम, मोटर मालिक का नाम-पता, बीमा करने वाली कंपनी का नाम-पता, मृतक की जानकारी (नाम-पता, आयु, व्यवसाय, आमदनी) इत्यादि का उल्लेख होना चाहिए।
- दुर्घटना होने की स्थिति में स्थान, समय तथा दुर्घटना की तारीख, उस वाहन का विवरण जिसमें पीड़ित यात्रा कर रहे थे, की जानकारी होनी चाहिए। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इसके साथ-साथ गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर, बीमा कंपनी से संबंधित कवर, दावे की राशि, दावे का औचित्य तथा राहत का विवरण भी होना चाहिए। ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित मुआवजे की राशि का भुगतान आदि की भी जानकारी दी जानी चाहिए। वाहन कानून के अनुसार हर वाहन का थर्ड पार्टी रिस्क बीमा होना भी आवश्यक होता है। ट्रिब्यूनल के अवॉर्ड में से बीमा कंपनी में जितनी राशि का बीमा करवाया है, उतनी राशि देने के लिए बीमा कंपनी जिम्मेदार होती है। दुर्घटना के बाद मुआवजा के आवेदन प्राप्त होने पर ट्रिब्यूनल दोनों पक्षों को अपनी बात कहने का मौका देने के बाद दावे से संबंधित जांच करता है। यह स्पष्ट करता है कि मुआवजा राशि कितनी होगी और किसे कितनी राशि का भुगतान किया जाएगा। यदि कोई व्यक्ति ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित मुआवजा राशि से संतुष्ट नहीं है तो फैसले के बाद 90 दिन के अंदर उच्च न्यायाल में अपील की जा सकती है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।
- इस मोटर वाहन दुर्घटना अधिनियम के अंतर्गत कुछ केस में नो फॉल्ट (बिना गलती) के सिद्धांत पर मुआवजा राशि निर्धारित करती है। धारा 140 के प्रावधान के अनुसार वाहन दुर्घटना में मृत्यु के केस में 50,000 रु. तथा स्थायी विकलांगता की स्थिति में 25 हजार रु. देने के लिए जिम्मेदार होगा। अगर नो फॉल्ट के सिद्धांत पर आवेदन दिया गया हो तो इसमें दावेदार को मोटर चालक की लापरवाही या गलती सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है। दोष के सिद्धांत पर मुआवजे के दावे में मुआवजा की राशि नो फॉल्ट वालों की राशि से अधिक होगी। 'हिट एंड रन' केस में मृत्यु होने पर आश्रितों पर 25 हजार रु. तथा गंभीर चोट लगने पर 12,500 रु. तक की राशि मिलती है। यह मुआवजा राशि सरकार के सोलेसियम फंड से दी जाती है। दिल्ली में एसडीएम हिट एंड रन केस में दावे की जांच करते हैं। ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित राशि लेने के लिए एक प्रमाण-पत्र लेना पड़ता है, जिसमें जिला कलेक्टर को संबोधित किया गया हो तथा मुआवजे की राशि अंकित हो। दुर्घटना के एक माह के भीतर निर्धारित फॉर्म पर दावेदार का आवेदन आना चाहिए। यदि स्थानीय पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट के आधार पर दुर्घटना की जांच नहीं करती है तो जरूरी कार्रवाई के लिए डीएसपी के यहां अर्जी दी जा सकती है। जिस क्षेत्र में दुर्घटना हुई हो वहां के न्यायिक मजिस्ट्रेट के यहां भी शिकायत दर्ज की जा सकती है।
नंदिता झा
हाईकोर्टएड्वोकेट,
दिल्ली
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साभार: भास्कर समाचार
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