एन. रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
सोलह साल की उम्र में वे कॉलेज की टीम के अहम खिलाड़ी बन गए थे। 22 की उम्र तक हॉकी खेली और अपने कॉलेज की टीम का चार बार प्रतिनिधित्व किया। इस दौरान खेले गए सभी मैच टीम ने जीते। कहना होगा कि इसमें उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। और यही वजह थी कि जब वे 23 साल के हुए तो टीम के कप्तान बना दिए गए। 24 साल की उम्र में उन्होंने एमएससी की डिग्री ले ली। यानी पढ़ाई-लिखाई में भी एकदम अव्वल। यह
पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इसके बाद राज्य पुलिस सेवा में नौकरी मिल गई, लेकिन बाद में पुलिस की नौकरी छोड़ दी और 31 साल की उम्र में रेलवे में नौकरी कर ली। वे रेलवे की टीम से खेलने लगे। वहां भी शानदार प्रदर्शन करते रहे और दो साल में उन्हें रेलवे मंत्री की ओर से बेस्ट रेलवे स्पोर्ट्समैन का मेडल प्रदान किया गया। भारतीय रेलवे के लिए खेलते हुए उन्होंने भारतीय हॉकी टीम के कप्तान के नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण श्रंखला जीती। इसके बाद उन्हें भारतीय टीम में शामिल कर लिया गया। वे भारतीय टीम के महत्वपूर्ण सदस्य बन गए। अपने दौर में वे टीम के लिए सबसे माहिर पैनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ थे। टीम काफी मायनों में उन पर निर्भर करती थी। उनके शॉट एकदम सटिक होते। उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया। पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने तीन बार ओलिम्पिक में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व शॉर्ट कॉर्नर स्पेशलिस्ट के रूप में किया। विश्व हॉकी में शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। क्या आप उनका नाम बता सकते हैं। संभव है कि आपको सही नाम बताने में मुश्किल हो! ये थे प्रीतपाल सिंह। पंजाब के शहर लुधियाना के इस खिलाड़ी की फौलादी कलाइयों से किए गए 22 गोल की मदद से भारत ने तीन बार ओलिम्पिक पदक जीते - रजत (रोम 1960), स्वर्ण (टोक्यो 1964) और कांस्य (मैक्सिको सिटी 1968)। इसके बाद प्रीतपाल सिंह पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के सह निदेशक बना दिए गए। उन दिनों पंजाब में आतंकवाद चरम पर था। 20 मई 1983 का दिन था। 51 साल के प्रीतपाल सिंह अपनी मोटरसाइकल ऑफिस के बाहर खड़ी कर रहे थे। दो युवकों ने रिवॉल्वर निकाली और यूनिवर्सिटी के एक दर्जन से ज्यादा कर्मचारियों के सामने चार गोलियां प्रीतपाल सिंह के सिर और छाती में मार दी। यह सुबह 8.20 बजे का समय था, विश्वविद्यालय में सरगर्मी शुरू हो गई थी, इसके बावजूद हत्यारे शांति से उनके आने का इंतजार करते रहे और हत्या करके निकल गए। हालांकि, इस हत्या का आतंकवाद से कोई संबंध नहीं था, जिसने 1980 के दशक में पंजाब को झकझौर रखा था। अब 2013 में जाते हैं - कार्यकारी निर्माता और पटकथा सह-लेखक संदीप मिश्रा भुला दिए गए इस हीरो की कहानी पर फिल्म बनाना चाहते थे। वे लुधियाना गए और कम से कम 70 लोगों से मिले। इस महान स्पोर्ट्समैन की यादों को समेटा। सभी लोग उन्हें यही कहकर याद करते हैं कि 'वही जिसे गोली लगी थी'। अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि वे भारतीय हॉकी को ख्याति दिलाने वाले खिलाड़ी थे। अब इस साल 6 नवंबर को फिल्म प्रीतपाल सिंह सिनेमा के परदे पर रही है। इसमें विकास कुमार (सीआईडी फेम) प्रीतपाल सिंह की भूमिका में हैं। फिल्म की शूटिंग चंडीगढ़ में एक करोड़ की लागत से हुई है। हालांकि, मिश्रा के पास इस कहानी को पेश करने के लिए 'भाग मिल्खा भाग' और 'मैरी कॉम' की तरह फरहान अख्तर या प्रियंका चोपड़ा नहीं है और ही बड़े सिनेमा घरानों वाली ताकत है, लेकिन उन्हें लगता है कि भुला दिए गए हीरो की कहानी को याद दिलाने के लिए यह काफी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। फंडा यह है कि आपजो भी काम करें हीरो की तरह ही करना चाहिए। अपने क्षेत्र में अपना काम श्रेष्ठ तरीके से करें और अगर एक बार आप यह साबित कर देते हैं कि आप हीरो हैं तो आप हमेशा वही बने रहेंगे, भले ही लोग कुछ समय के लिए आपको भूल ही क्यों जाएं।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.