पंचायत चुनाव में उम्मीदवारी के लिए शिक्षा सहित विभिन्न शर्तों के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अहम दौर में पहुंच गई है। हरियाणा सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा कि नए नियमों के मुताबिक केवल 43 फीसदी लोग ही पंचायत चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। याचिकाकर्ता ने इस आंकड़े को गलत बताया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने
ये भी पूछा कि क्या आप बता सकते हैं राज्य से चुने गए कितने सांसद अशिक्षित हैं। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा चार सांसद। तब कोर्ट ने कहा कि देखा जाए तो बिना किसी शर्त के ही ज्यादातर पढ़े लिखे लोग चुनाव लड़कर आ रहे हैं। इस मामले की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी। पिछली सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से पूछा था कि वो बताए कि नए नियमों के मुताबिक कितने लोग चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। राज्य में कितने शौचालय हैं। इसके साथ ही स्कूलों का ब्यौरा भी मांगा था। हरियाणा सरकारी की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बताया कि नए नियमों के मुताबिक 43 फीसदी लोग चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। राज्य के 84 फीसदी घरों में शौचालय हैं और 20 हजार स्कूल हैं। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सरकार ने गलत आंकड़े पेश किए हैं। सही हकीकत में 43 नहीं 67 फीसदी लोग चुनाव से वंचित हो रहे हैं और दलित महिलाओं की बात करें तो यह संख्या 83 फीसदी तक पहुंच जाती है। याचिककर्ता जगमती सांगवान की वकील ने दावा किया कि सरकार ने ये आंकड़ा प्राइमरी स्कूलों के आधार पर दिया है। सरकार ने घरों की संख्या 2012 के आधार पर दी है जबकि शौचालय आज के आधार पर। इसी तरह राज्य सरकार ने 20 हजार स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों को भी गिना है जबकि राज्य में दसवीं के लिए सिर्फ 3200 स्कूल हैं यानी आधे गांवों में दसवीं तक के स्कूल तक नहीं हैं। ऐसे में राज्य सरकार पंचायत चुनाव के लिए दसवीं पास की योग्यता कैसे निर्धारित कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को पंचायती राज संशोधन कानून-2015 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता जगमती सांगवान ने कहा कि पंचायती राज एक्ट की शर्तों के साथ छेड़छाड़ करने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है, यह अधिकार संसद को है। अगर शर्तों में फेरबदल करना है तो वह संसद करेगी। 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर नजर डालें तो 67 फीसदी लोग चुनाव लड़ने से वंचित रहेंगे और पांचों शर्तों को लागू किया जाए तो 80 फीसदी लोग चुनाव नहीं लड़ पाएगी।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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