Tuesday, October 27, 2015

महाभारत के अनसुने तथ्य-2: द्रौपदी के चीरहरण के समय हुए थे अपशकुन,

महाभारत के बारे में हम सभी कुछ न कुछ जरूर जानते हैं, लेकिन ये कथा सिर्फ कौरव व पांडवों के युद्ध तक ही सीमित नहीं है। महाभारत की कथा जितनी बड़ी है, उतनी ही रोचक भी है। कौरव व पांडवों के अलावा भी इसमें अनेक राजाओं की रोचक व प्रेरणादायी कहानियां पढ़ने को मिलती हैं। शास्त्रों में महाभारत को पांचवां वेद भी कहा गया है। इसके रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।इस ग्रंथ में कुल एक लाख श्लोक हैं, इसलिए इसे शतसाहस्त्री संहिता भी कहते हैं। आज हम आपको इस ग्रंथ की कुछ रोचक बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं: 

अग्निदेव ने अर्जुन को दिया था गांडीव धनुष: एक बार भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन यमुना तट पर बैठे थे। उसी समय वहां ब्राह्मण के रूप में अग्निदेव आए और उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि- मैं खाण्डव वन को भस्म करना चाहता हूं, लेकिन इस वन में देवराज इंद्र का मित्र तक्षक नाग अपने परिवार के साथ रहता है इसलिए इंद्र मुझे खाण्डव वन नहीं जलाने देते। तब अर्जुन ने उनसे दिव्य अस्त्र-शस्त्र की मांग की। अग्निदेव ने अर्जुन को एक अक्षय तरकश, गांडीव धनुष और वानरचिह्नयुक्त ध्वजा से सुसज्जित एक रथ प्रदान किया। अग्निदेव ने भगवान श्रीकृष्ण को एक दिव्य चक्र और आग्नेयास्त्र प्रदान किया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।अग्निदेव जब खाण्डव वन जलाने लगे तो देवराज इंद्र वहां आ गए और मूसलाधार बारिश करने लगे, लेकिन अर्जुन ने अपने शस्त्रों से बारीश को बीच में ही रोक दिया। तभी आकाशवाणी हुई कि- अर्जुन और श्रीकृष्ण साक्षात नर-नारायण के अवतार हैं, तुम इनसे नहीं जीत सकते। यह सुनकर इंद्र वहां से चले गए।

मात्र 14 महीने में बनी थी दिव्य सभा: खांडव वन में राक्षसों का शिल्पकार मय दानव भी रहता था। जब अग्निदेव ने खांडव वन नष्ट कर दिया तो मय दानव वहां से भागने लगा। उसे श्रीकृष्ण और अर्जुन ने पकड़ लिया और जीवन दान दे दिया। अर्जुन ने उससे एक ऐसी सभा का निर्माण करने के लिए कहा जिसकी नकल कोई भी न कर पाए। मय दानव में सिर्फ 14 महीने में ही एक दिव्य सभा का निर्माण कर धर्मराज युधिष्ठिर को भेंट कर दी। वह सभा दस हजार हाथ लंबी और चौड़ी थी। मय दानव की आज्ञा से आठ हजार किंकर राक्षस उस दिव्य सभा की रखवाली और देखभाल करते थे। उस सभा में एक सरोवर भी था। देखने पर वह भूमि जैसा ही लगता था। अनेक लोग उसे देखकर धोखा खा जाते थे। मय दानव ने भीम को सोने की एक दिव्य गदा भेंट की। साथ ही अर्जुन को देवदत्त नामक एक दिव्य शंख भी उपहार में दिया।

चीरहरण के समय हुए थे ये अपशकुन: जिस समय दुःशासन द्रौपदी का चीरहरण कर रहा था, उसी समय धृतराष्ट्र की यज्ञशाला में बहुत से गीदड़ इकट्ठे होकर हुआं-हुआं करने लगे, गधे रेंकने लगे और पक्षी उड़-उड़कर चिल्लाने लगे। यह कोलाहल सुनकर गांधारी डर गई। विदुर और गांधारी ने घबराकर इसकी सूचना राजा धृतराष्ट्र को दी। कुछ सोच-विचार कर धृतराष्ट्र ने द्रौपदी को समझाते हुए कहा कि- बहू। तुम परम पतिव्रता हो, तुम्हारी जो इच्छा हो, मुझसे मांग लो। द्रौपदी ने धृतराष्ट्र से वर मांगा कि सम्राट युधिष्ठिर कौरवों की दासता से मुक्त हो जाएं। धृतराष्ट्र ने द्रौपदी को दूसरा वर मांगने के लिए कहा, तब द्रौपदी ने भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव को भी कौरवों की दासता से मुक्त करने के लिए कहा। धृतराष्ट्र ने ऐसा ही किया।

ऋषि ने दिया दुर्योधन को श्राप: पांडवों के वन जाने के बाद एक दिन ऋषि मैत्रेय हस्तिनापुर आए। राजा धृतराष्ट्र व दुर्योधन आदि ने उनका उचित आदर सत्कार किया। उन्होंने बताया कि इस समय पांडव काम्यक वन में निवास कर रहे हैं। महर्षि मैत्रेय ने दुर्योधन से कहा कि यदि तुम कुरुवंश का हित चाहते हो तो पांडवों को ससम्मान उनका राज्य लौटा दो और उनसे संधि कर लो। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।धर्मराज युधिष्ठिर तुम्हें क्षमा कर देंगे। यह बात सुनकर दुर्योधन मुस्कुराकर पैर से जमीन कुरेदने लगा और अपनी जांघ पर हाथ से ताल ठोंकने लगा। दुर्योधन की उद्दण्डता देखकर ऋषि मैत्रेय ने उन्हें श्राप देते हुए कहा कि- मूर्ख दुर्योधन। तेरे इस द्रोह के कारण कौरवों और पांडवों में घोर युद्ध होगा। उसमें भीमसेन गदा से तेरी जांघ तोड़ डालेंगे।

द्रौपदी का वध करना चाहते थे कीचक के भाई: महाभारत के विराट पर्व के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान द्रौपदी सैरंध्री के रूप में विराट नगर की रानी सुदेष्ण की सेवा करती थी। एक दिन विराट नगर के सेनापति कीचक ने द्रौपदी को देखा और उस पर मोहित हो गया। उसने द्रौपदी के साथ दुराचार करने का प्रयास भी किया, लेकिन द्रौपदी बच गई। तब द्रौपदी ने भीम से कीचक का वध करने के लिए कहा। भीम ने योजना बनाकर कीचक का वध कर दिया। जब कीचक के भाइयों को इस बात का पता चला तो उन्होंने द्रौपदी को इसका जिम्मेदार बताया और कीचक के शव के साथ उसे भी जलाने के लिए श्मशान भूमि तक ले गए। वहां भीम ने उन सभी का वध कर दिया और द्रौपदी को उनके बंधन से मुक्त कर दिया।

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साभारभास्कर समाचार 
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