सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिवाली के त्योहार के दौरान पटाखे छोड़ने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। आठ घंटे की रोक की अवधि को बढ़ाने संबंधी याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया। आतिशबाजी के बुरे प्रभावों पर जागरूकता फैलाने में केंद्र की नाकामी पर भी कोर्ट ने नाखुशी जताई। उसने केंद्र सरकार से पटाखों से होने वाले पर्यावरण और स्वास्थ्य नुकसान को लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में प्रचार अभियान चलाने को कहा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू और जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने वर्ष 2001 में दिए गए अपने आदेश में संशोधन से इनकार दिया। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच पटाखे छोड़ने पर रोक लगाई थी। पीठ ने केंद्र सरकार से 31 अक्तूबर से 12 नवंबर तक रोजाना आतिशबाजी के बुरे प्रभावों के बारे में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में प्रचार अभियान चलाने को कहा। आरंभिक चरण में अंतरिम आदेश पास करने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा कि बिना नियमित सुनवाई के हम ऐसा करने को नहीं कह सकते हैं। इस वक्त हम यह नहीं कह सकते हैं कि किसी भी व्यक्ति को पटाखे नहीं छोड़ने चाहिए। ऐसा करना खतरनाक होगा और लोग कहेंगे कि यह उनका अधिकार है। छह से 14 माह के तीन नवजात बच्चों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एएम सिंघवी ने दिवाली के अवसर पर केवल दो घंटे रात 7 से 9 बजे तक ही पटाखे जलाने की अनुमति देने का पीठ से अनुरोध किया लेकिन पीठ ने उनकी अपील खारिज कर दी। हालांकि कोर्ट ने पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार करने के उसके 16 अक्तूबर के आदेश पर अमल नहीं करने को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ नाराजगी भी जताई। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार को निर्देश दिया कि वह केंद्र सरकार को 31 अक्तूबर से 12 नवंबर तक नियमित रूप से पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में विज्ञापन प्रकाशित और प्रसारित करने की सूचना दें। मालूम हो कि सरकार ने मंगलवार को कोर्ट से कहा था कि वह दिवाली जैसे त्योहार में पटाखे छोड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के पक्ष में नहीं है। सरकार का कहना था कि खुद सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने आदेश में सुबह छह बजे से 10 बजे रात तक पटाखे छोड़ने की अनुमति दे रखी है।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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