Friday, October 30, 2015

तकनीक की ताकत पर भारी है मानव बुद्धि

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
व्यक्ति 1: 23 साल की एस्थर अनुहया मुंबई में टीसीएस में कर्मचारी थीं। आंध्रप्रदेश के मछलीपट्‌टनम की रहने वाली थीं। क्रिसमस की छुट्‌टियों के बाद मुंबई लौटने के लिए वे 4 जनवरी 2014 को विशाखापट्‌टनम - एलटीटी एक्सप्रेस में विजयवाड़ा से सवार हुईं। 5 जनवरी को सुबह 5 बजे वे मुंबई के कुर्ला टर्मिनस पर उतरीं। अंधेरा
अभी छटा नहीं था, इसलिए उन्होंने कुछ समय प्लेटफॉर्म पर ही इंतजार करने का फैसला किया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
व्यक्ति 2: 29साल के चंद्रभान सानप के पिता सेंट्रल रेलवे में ही कुली थे। चंद्रभान अमीर आदमी बनना चाहता था। 2007 में पैरलिसिस स्ट्रोक के बाद पिता का बिल्ला चंद्रभान को मिल गया और 2008 तक वह कुली के रूप में काम करता रहा। ज्यादा पैसों के लालच में वह यात्रियों के बैग चोरी करने जैसे छोटे-मोटे अपराध भी करने लगा, लेकिन कुली के बिल्ले और वर्दी की आड़ में वह हमेशा कानून की नज़रों से बच निकलता, लेकिन 2009 में एक कॉल सेंटर में ड्राइवर बनने और नियमित कमाई के लिए उसने कुली का अपना बिल्ला बेच दिया, लेकिन आसानी से पैसा पाने के लालच में वह स्टेशन पर चोरियां करता रहा। उसके खिलाफ बैग चोरी करने के आठ मामले आए, लेकिन कभी साबित नहीं हो सके। 5 जनवरी को भी वह सुबह इसी इरादे से स्टेशन आया था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।सुबह 5.10 बजे वह एस्थर के पास पहुंचा और उसे सस्ते में घर छोड़ने की बात कही। सीसीटीवी फुटेज के अनुसार आखिरी बार उसे चंद्रभान के पीछे जाते ही देखा गया था। उसी दिन सुबह 7.10 बजे एस्थर के पिता ने अपनी बेटी से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन फोन पर कोई जवाब नहीं मिला। विजयवाड़ा से मुंबई तक उसके माता-पिता ने पुलिस में रिपोर्ट करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करने को तैयार नहीं हुआ। यहां तक कि उन्हें कहा गया कि वह किसी के साथ भाग गई होगी। जब पुलिस की ओर से कोई मदद नहीं मिली तो परिवार ने ही उसे खोजने का काम शुरू किया। कॉल डिटेल रिकॉर्ड के आधार पर उसके भांडुप उपनगर के पास होने का पता चला। यह स्थान उस स्टेशन के नजदीक ही था, जहां वह उतरी थी। इस बीच उसके भाई खोज में लगे रहे। उन्होंने तलाश में टैक्सी और ऑटो ड्राइवर्स से मदद ली और सभी संभावित रूट और वाहनों को छाना। आखिर में उसकी जली हुई लाश झाड़ियों में मिली। लाश सड़ने लगी थी। उंगली में पहनी सोने की अंगुठी से उसकी पहचान की जा सकी। तब जाकर पुलिस हरकत में आई और उसे नाराज़गी का सामना भी करना पड़ा। चूंकि जिस स्थान पर उसका शव मिला वह एकांत क्षेत्र था और उस मार्ग पर कोई बस नहीं चलती थी, विशेष रूप से सुबह पांच से सात बजे के बीच। इसलिए शक कुलियों, टैक्सी और ऑटो ड्राइवर्स पर गया। पुलिस ने 800 कॉल रिकॉर्ड छाने, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। 36 सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद करीब 2500 लोगों को पकड़ा गया, जिसमें चंद्रभान भी शामिल था, लेकिन तब तक उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी और माथे पर तिलक लगाने लगा था। अब वह सिर्फ सफेद कपड़े पहनने लगा था, इसलिए दर्जनों बार आने के बावजूद उसे हर बार छोड़ दिया गया, क्योंकि चेहरा सीसीटीवी फुटेज से मेल नहीं खा रहा था। आखिर में एक पुलिसकर्मी बिना बताए संदिग्धों के घर पहुंचा और वहां उसे पीड़ित का सामान मिल गया। कोर्ट ने इसे चंद्रभान से पूछताछ के लिए सबूत माना। एस्थर के अधजले कपड़ों के आधार पर डीएनए टेस्ट किया गया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। एक भिखारी ने गवाही दी कि आरोपी ने उसे पीड़िता का बैग उपहार में दिया था। 27 अक्टूबर को विशेष महिला अदालत ने चंद्रभान को दुष्कर्म और हत्या का दोषी करार दिया। आखिर में तकनीक की ताकत से आगे मानवीय बुद्धि के बल पर ही मामले का तार्किक हल निकल सका। 
फंडा यह है कि टेक्निकलइंटेलिजेंस आपको एक तय स्तर तक ले जा सकती है। किसी भी घटना की तह में जाने के लिए मानवीय बुद्धि और विश्लेषण जरूरी है, जो मशीन नहीं कर सकती। कम से कम फिलहाल तो यह संभव नहीं है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारभास्कर समाचार 
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