जिन्हें देश में बिहार की प्रतिभा को लेकर किसी तरह का शक है, उनके लिए ये गांव आईना की तरह है। ये गांव कभी बुनकरी के काम के लिए जाना जाता था। काफी पिछड़ा हुआ था, पर पिछले 23 सालों से इस गांव के लड़के कुछ ऐसा कमाल कर रहे हैं, जो संभवत: देश के दूसरे गांवों में देखने को नहीं मिलता। बुनकरों के इस गांव से हर साल दर्जनों छात्र आईआईटी और एनआईटी के लिए चुने जाते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इतना ही नहीं दुनिया के 12 देशों में यहां के आईआईटी पास आउट बढ़िया नौकरियों में हैं।
कहां है ये गांव: पटवा टोली नाम का ये गांव नक्सल प्रभावित गया जिले में है। हालांकि, ये गांव भी बिहार के अन्य सामान्य गांवों की तरह ही है, लेकिन यहां से आईआईटी में चुने गए छात्रों ने इसे एक अलग पहचान दे दी है। पिछले 23 सालों से यहां के छात्र आईआईटी के लिए चुने जा रहे हैं। इस साल भी गांव के 18 छात्रों ने जेईई एडवांस्ड क्लीयर कर आईआईटी जैसे संस्थानों में दाखिला पाया है। पिछले साल 2014 में 13 छात्रों ने जेईई एडवांस्ड क्लीयर किया था। गांव वालों की माने तो अब तक करीब 300 छात्र गांव में पढ़ाई करके आईआईटी और एनआईटी जैसे इंजीनियरिंग संस्थानों में पहुंच चुके हैं।
कभी नक्सल प्रभावित था ये गांव: गया जिले का ये गांव कभी नक्सल और जातीय हिंसा से प्रभावित था। यहां के पटवा, बुनकरी का काम करते हैं। ये अन्य पिछड़ी जाति में आते हैं। पहली बार 1992 में इस गांव से एक छात्र जितेन्द्र ने आईआईटी में दाखिला पाया था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। ख़ास बात ये है कि आईआईटी में एडमिशन पाने वाले अधिकांश छात्रों के माता-पिता या तो कम पढ़े-लिखे हैं या पूरी तरह से निरक्षर हैं। अधिकांश को आईआईटी का मतलब भी नहीं पता है।
ग्रुप स्टडी है सफलता का राज, पहली बार जितेंद्र पहुंचे थे आईआईटी: यहां के छात्रों की सफलता का राज, ग्रुप स्टडी है। गांव के छात्र मिलकर साथ में पढ़ाई करते हैं और एक-दूसरे से सब्जेक्ट्स की गुत्थियां सीखते हैं। 1992 में इस गांव से पहली बार जितेंद्र आईआईटी पहुंचे थे। फिलहाल वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में सेटल्ड हैं। गौरतलब है कि गांव के सैकड़ों आईआईटियन देश-दुनिया में अच्छी जगहों पर सेटल्ड हैं। गांव वाले बताते हैं कि जो छात्र सेटल्ड हो चुके हैं, वे गांव के अन्य छात्रों की मदद करते हैं। सहयोग की इसी भावना के चलते बुनकरों का ये गांव आज आईआईटी हब के रूप में पहचान बना चुका है।
12 देशों में काम करते हैं गांव के इंजीनियर: पटवा टोली के इंजीनियर करीब 12 देशों में कार्यरत हैं। सबसे ज्यादा 22 लोग अमेरिका में हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। जबकि गांव के कई इंजीनियर सिंगापुर, कनाडा, स्विट्जरलैंड, जापान, दुबई आदि देशों में काम कर रहे हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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