सरकारी कामकाज में पारदर्शिता, घोटालों का पर्दाफाश और विभागीय भ्रष्टाचार का खुलासा करने में यह सूचना का अधिकार बड़ा हथियार साबित हुआ है। एक्टिविस्ट के अलावा आम लोग भी सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करने के प्रति जागरूक हुए हैं लेकिन प्रदेश में इस अधिकार को ज्यादा असरदार तरीके से लागू होने की दरकार है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। पिछली हुड्डा
सरकार अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही मुख्य सूचना आयुक्त से लेकर राज्य सूचना आयुक्तों के पद पर तमाम नियुक्तियां करके गई है। नई नियुक्तियों के बाद आयोग के कामकाज ने कुछ तेजी पकड़ी। कुछ सूचना आयुक्त ऐसे हैं, जो निजी रुचि लेकर आम लोगों को इस कानून का पूरा लाभ दिलाने की कोशिशों में जुटे देखे गए, लेकिन व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो अभी बहुत कुछ होना बाकी है। अधिकतर विभागों में सरकार ने जन सूचना अधिकारी नियुक्त कर दिए हैं, लेकिन उनके कामकाज का रवैया घिसा-पिटा और टरकाऊ ही है। दरअसल, राज्य सूचना आयोग में अधिकतर पद ब्यूरोक्रेट से भरे हैं। मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा आठ राज्य सूचना आयुक्त यहां तैनात हैं। इनमें पांच ब्यूरोक्रेट शामिल हैं। शिकायतों का निस्तारण सिर्फ निचले अफसरों को हिदायतें अथवा चेतावनी देने तक सीमित है। ऐसा नहीं है कि जुर्माना नहीं लगाया जाता, लेकिन सूचना मांगने वाले व्यक्ति को सूचना नहीं मिली तो उसे जुर्माने से खास फर्क नहीं पड़ता। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वहीं, आरटीआइ कार्यकर्ताओं की सुरक्षा का सवाल भी उठता है। बीते दस सालों में देश भर में 39 आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्या होने तथा 275 कार्यकर्ताओं को मानसिक या शारीरिक तौर पर प्रताड़ना देने की सूचनाएं हैं। गनीमत है कि प्रदेश में दो-चार मामलों को छोड़कर ऐसी भयावह स्थिति फिलहाल नहीं बनी है।
सरकार अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही मुख्य सूचना आयुक्त से लेकर राज्य सूचना आयुक्तों के पद पर तमाम नियुक्तियां करके गई है। नई नियुक्तियों के बाद आयोग के कामकाज ने कुछ तेजी पकड़ी। कुछ सूचना आयुक्त ऐसे हैं, जो निजी रुचि लेकर आम लोगों को इस कानून का पूरा लाभ दिलाने की कोशिशों में जुटे देखे गए, लेकिन व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो अभी बहुत कुछ होना बाकी है। अधिकतर विभागों में सरकार ने जन सूचना अधिकारी नियुक्त कर दिए हैं, लेकिन उनके कामकाज का रवैया घिसा-पिटा और टरकाऊ ही है। दरअसल, राज्य सूचना आयोग में अधिकतर पद ब्यूरोक्रेट से भरे हैं। मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा आठ राज्य सूचना आयुक्त यहां तैनात हैं। इनमें पांच ब्यूरोक्रेट शामिल हैं। शिकायतों का निस्तारण सिर्फ निचले अफसरों को हिदायतें अथवा चेतावनी देने तक सीमित है। ऐसा नहीं है कि जुर्माना नहीं लगाया जाता, लेकिन सूचना मांगने वाले व्यक्ति को सूचना नहीं मिली तो उसे जुर्माने से खास फर्क नहीं पड़ता। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वहीं, आरटीआइ कार्यकर्ताओं की सुरक्षा का सवाल भी उठता है। बीते दस सालों में देश भर में 39 आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्या होने तथा 275 कार्यकर्ताओं को मानसिक या शारीरिक तौर पर प्रताड़ना देने की सूचनाएं हैं। गनीमत है कि प्रदेश में दो-चार मामलों को छोड़कर ऐसी भयावह स्थिति फिलहाल नहीं बनी है।
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साभार: जागरण समाचार
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