सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लागू हुए 10 वर्ष पूरे हो गए हैं, लेकिन आज तक न तो अधिनियम के मूल उद्देश्य के अनुरूप शासन व प्रशासन में पूर्ण पारदर्शिता आ पाई है और न ही जनता को ईमानदारी से सूचनाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। जरा सी भी गहन सूचना मांगने पर सरकारी विभाग आरटीआइ लगाने
वाले को ही गुमराह करते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वह बेचारा कभी प्रथम तो कभी द्वितीय अपीलीय अधिकारी का द्वार खटखटाता है। नतीजा, जो सूचना 30 से 35 दिन में मिल जानी चाहिए, वह एक से डेढ़ वर्ष में भी नहीं मिल पाती। दूसरी तरफ आरटीआइ लगाने वाले एक वर्ग के लिए यह अधिनियम ब्लैकमेलिंग का जरिया बन गया है तो कई जगह आरटीआइ लगाने वालों को धमकाने और उन पर हमले होने के मामले आ रहे हैं।लम्बे संघर्ष से हासिल सूचना का अधिकार लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत और असरदार बनाने में बहुत ही अहम है। एक जागरूक नागरिक के लिए इससे सशक्त हथियार शायद ही हो। इसी के सहारे हरियाणा में राबर्ट वॉड्रा और हुडा प्लॉट घोटाले जैसे कई बड़े मामले उजागर हुए। मगर, प्रदेश में सूचनाएं लेना अब भी आसान नहीं है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दिल्ली सहित अनेक राज्यों में जहां 10 रुपये का पोस्टल आर्डर देना पड़ता है वहीं, हरियाणा में 50 रुपये का पोस्टल आर्डर जरूरी है। सबसे बड़ी समस्या सरकारी तंत्र में इसकी अवहेलना या टरकाऊ रवैया है। अतिरिक्त स्टाफ भर्ती नहीं किया जा रहा और मौजूदा कर्मचारी अतिरिक्त कार्य करने को तैयार नहीं हैं।
सरकारी महकमे सूचना देने से बचने का कोई न कोई कारगर तरीका निकाल ही लेते हैं। नहीं निकाल पाते तो गलत जवाब तैयार करने का रास्ते देखते हैं। गांगटान गांव के बलजीत सिंह ने पंचायत के आय-व्यय को लेकर आरटीआइ लगाई। पहले तो चालीस दिन तक उन्हें जवाब ही नहीं मिला। तय समय के बाद वे फस्र्ट अपीलेंट अथारिटी के पास गए तो वहां से भी बहकाने वाला जवाब मिला। कमीशन के पास गए तो पता चला कि पंचायत का रिकार्ड सरपंच से कहीं गुम हो गया है और जो जवाब बलजीत ने मांगे थे उनका जवाब नहीं दिया जा सकता। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सरपंच ने आरटीआइ लगने के बाद रिकार्ड गुम होने के बाबत चौकी में शिकायत भी दर्ज करा रखी थी। हालांकि कमीशन ने तमाम बड़े अफसरों को चंडीगढ़ तलब करके कड़ी फटकार लगाई लेकिन बलजीत आज भी सही जवाब को तरस रहा है। इसी तरह का मामला साल्हावास गांव का है। मनरेगा में हुए काम के बाबत जवाब मांगा गया तो सरपंच की बाइक में ही आग लग गई। बाद में पता चला कि बाइक के ऊपर ही मनरेगा का रिकार्ड रखा था। शिकायतकर्ता कभी महकमे में तो कभी कमीशन में धक्के खा रहा है लेकिन उसे कोई न्याय नहीं मिला। आरटीआइ कार्यकर्ता राजेश का कहना है कि कमीशन के पास 25 हजार रुपये तक के जुर्माने की पावर है। हालांकि दो तीन मामले ऐसे भी आए जहां भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए सूचना नहीं दी गई थी, वहां जुर्माना लाखों में भी लगाया गया। लेकिन उनका भी मानना है कि बहुत से अधिकारी व महकमों की मनोवृत्ति जवाब न देने की ही होती है।
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साभार: जागरण समाचार
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