Wednesday, October 14, 2015

बच्चों से हाथ पकड़ने को न कहें, खुद हाथ थामें

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
एक छोटी लोक कथा है। एक नदी को पार करते हुए मां ने अपने बेटे से कहा, 'अब मेरा हाथ पकड़ लो,'लेकिन बेटा मुड़ा और कहा, 'नहीं मम्मी आप मेरा हाथ पकड़ लो'। एक व्यंग्यपूर्ण हंसी के साथ मां ने उसका हाथ थाम लिया और पूछा, 'क्या फर्क है'? पलक झपकाए बिना बच्चे ने आत्मविश्वास से कहा, 'अगर मैं आपका हाथ पकड़ूंगा और मुझे कुछ हुआ तो संभव है कि मैं आपका हाथ छोड़ दूं, लेकिन अगर आप मेरा हाथ थामेंगी तो मैं जानता हूं
कि आप किसी भी परिस्थिति में मेरा हाथ छोड़ेंगी नहीं'। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
अब असली कहानी - 2004 में मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै कोर्ट ने काम करना शुरू किया। युवा वकील पी जयसुंदरम ने आंखों में सपने लिए इसके विस्तृत कैंपस में प्रवेश किया था। चार सालों तक कोर्ट रूम कई सिविल मामलों में उनकी रणभूमि रही, लेकिन जब तनाव बहुत बढ़ गया तो उन्होंने दिमाग की शांति के लिए योग करना शुरू किया। योग करने से जो शांति उपजी वह इतनी शक्तिशाली थी कि एक खुशनुमा दिन सुंदर ने, इसी नाम से सभी दोस्त उन्हें पुकारते हैं, वकालत का पेशा छोड़ दिया और योग शिक्षक के रूप में गांधी म्यूजियम ज्वाइन कर लिया। उनके परिवार को लगा कि वे दीवाने हो गए हैं, लेकिन वे जानते थे कि उनका दिल उन्हें कहीं और ले जा रहा है। 

विदेशियों का एक समूह अर्जेटीना से उनके पास योग का शॉर्ट कोर्स करने आया था। उनसे उन्होंने ह्यूमनिस्ट मूवमेंट के बारे में सुना, यह दुनियाभर के कुछ ऐसे लोगों का समूह है, जिसने इस दुनिया को अधिक मानवीय बनाने की जीवनचर्या को अपनाया है। सुंदर को लगा कि उन्हें भी इसका हिस्सा बनना चाहिए। और उन्होंने तुरंत ही मूवमेंट का मदुरै कॉर्डिनेटर बनने का फैसला कर लिया। इसके बाद उन्होंने अहिंसा को अपना लिया और सामाजिक बदलाव के वाहक बन गए। 
गांधीजी की विचारधार में भरोसा और गांधी आश्रम में काम करने के कारण उनके लिए यह आसान था, इसलिए उन्होंने प्रेम का प्रसार करने वाले कार्यकर्ता के रूप में काम शुरू किया। शांति प्रार्थनाएं और सभाएं, रक्त दान शिविर और गरीबों को भोजन देने का काम किया। उनका अधिकांश समय उन्हीं कामों में जा रहा है, जिसे वे पसंद करते हैं जैसे अनाथालयों के बच्चों और वृद्धाश्रमों में वरिष्ठ नागरिकों के साथ समय बिताना। काम उन्होंने अकेले शुरू किया था, लेकिन जल्द ही उनके क्लब में सौ से ज्यादा सदस्य हो गए। 
36 साल का यह युवा नियमित रूप से कई स्कूलों में चित्रों की प्रदर्शनी लगाता और बच्चों को बताता है कि कैसे युद्ध और हिंसा सब कुछ बर्बाद कर देती है। बच्चों के अतिसंवेदनशील दिमागों को प्रभावित करने के लिए वे उन्हें गांधीजी की किताबों के अंश पढ़कर सुनाते। इसका एक मात्र लक्ष्य था लोगों के विचारों को बदलना, खासकर बच्चों के। इसलिए इस गांधी जयंती पर उन्होंने लोगों की प्रार्थना सभाएं कीं और हिंसा और नफरत मिटाने के महत्व पर लोगों से बात की। उन्होंने करीब 35 यूनिट ब्लड एकत्र किया और सरकारी अस्पतालों को दान किया। 
जिस दुनिया में आज हम रह रहे हैं, वहां धैर्य की कमी होती जा रही है और बार-बार दादरी जैसी घटनाएं हो रही हैं। इंसानों में परेशान करने वाले और दुखद बदलावों के कारण कई जानें जा रही हैं। इन घटनाओं का हम सभी को यही संदेश है कि हमें बचपन से ही बदलाव की जरूरत हैं। बदलाव की बात होती है, तो हम भौतिक बदलाव समझते हैं, लेकिन बदलाव चेतना के स्तर पर होना चाहिए। उसी तरह जैसे लोक कथा में बच्चे ने कहा था। हमें बच्चों का हाथ और दिमाग थामने की जरूरत है, जब तक वे हिंसा और नफरत छोड़ दें, जो कई माध्यमों से उनमें प्रवेश कर रही है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अगली पीढ़ी को शांत दुनिया सौंपें। 
फंडायह है कि बड़े होने और इस अशांत दुनिया में स्वत: जीना सीखने तक अपने बच्चों का हाथ मजबूती से थामकर रखिए। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारभास्कर समाचार 
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