साभार: जागरण समाचार
करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़े अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद के मध्यस्थता के जरिये सुलझने की उम्मीद जगती दिखाई दे रही है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बातचीत के जरिये विवाद का हल निकलने की मध्यस्थता
पैनल की उम्मीदों को देखते हुए पैनल को 15 अगस्त तक का समय दे दिया। हालांकि कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल की प्रगति रिपोर्ट का ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने आठ मार्च को दशकों से अदालत की चौखट पर घूम रहे राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद का समाधान बातचीत के जरिये तलाशने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस एफएम इब्राहिम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल को भेजा था। पैनल में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू सदस्य हैं। कोर्ट ने पैनल को आठ सप्ताह का समय दिया था और चार सप्ताह में प्रगति रिपोर्ट मांगी थी। साथ ही मध्यस्थता कार्यवाही फैजाबाद में करने और उसे पूरी तरह गोपनीय रखने का निर्देश दिया था ताकि मध्यस्थता प्रक्रिया प्रभावित न हो। पैनल को दिया गया दो महीने का वक्त पूरा हो चुका है।
आपत्तियों को नहीं दी तवज्जो: प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने शुक्रवार को मध्यस्थता पैनल के आग्रह पर मध्यस्थता के लिए 15 अगस्त तक का समय देते हुए पैनल से तब तक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा। कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा को छोड़कर अन्य हंिदूू पक्षकारों की मध्यस्थता के लिए शुरू में तय किए गए आठ सप्ताह के समय को फिर बढ़ाए जाने पर आपत्तियों को दरकिनार करते हुए कहा कि अगर मध्यस्थता पैनल निष्कर्ष को लेकर आशावान है और उसने 15 अगस्त तक का समय मांगा है तो समय देने में हर्ज क्या है। ये मामला वर्षो से लंबित है। कोर्ट ने बताया कि मध्यस्थता पैनल के अध्यक्ष जस्टिस कलीफुल्ला ने सात मई को प्रगति रिपोर्ट दाखिल की है।
मुस्लिम पक्ष ने किया समर्थन: मुस्लिम पक्ष ने कहा कि वे मध्यस्थता का समर्थन करते हैं। रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने जब कोर्ट से मध्यस्थता पैनल की प्रगति रिपोर्ट का ब्योरा बताने को कहा तो कोर्ट ने कहा कि वह फिलहाल ब्योरा बताने का इच्छुक नहीं है।
मुख्य मामले की सुनवाई में हुई और देरी: वैसे तो कोर्ट का रुख देखकर लग रहा है कि मध्यस्थता के जरिये कुछ सकारात्मक नतीजा आ सकता है, लेकिन मध्यस्थता के लिए 15 अगस्त तक का समय और दिए जाने से मुख्य मामले की सुनवाई में और देरी होगी। मुख्य मामले में सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ कुल 14 अपीलें 2010 से लंबित हैं जिन पर आज तक मेरिट पर सुनवाई शुरू नहीं हुई है।
यह है मामला: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में फैसला देते हुए विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। कोर्ट ने जमीन को रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बांटने का आदेश दिया था। साथ ही साफ किया था कि रामलला विराजमान को वही हिस्सा दिया जाएगा जहां वह विराजमान हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले को सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल मामले में यथास्थिति कायम है।