हुनरघर और क्षमतालय में बच्चों को मार पीटकर नहीं पढ़ाया जाता, यहां बच्चे खुद पढ़ने आते हैं, वे पढ़ते-सीखते भी वैसे हैं जैसा वे खुद चाहते हैं। 12 साल
के आदिवासी इलाके के बच्चे फोटोग्राफी, पेंटिंग, एक्टिंग कर रहे हैं। उनका मार्गदर्शन करने के लिए सर, दीदी खड़े रहते हैं। यहां पढ़ रहे बच्चों के लिए 'कोटड़ा लर्निंग फेस्टिवल' मनाया जा रहा हैं। जहां वेे प्रतिभा का परिचय दे रहे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। ये इंग्लिश बोलते हैं। इन्हें देखकर लगता है कि ये किसी इंग्लिश मीडियम स्कूल के हैं। ये दोनों स्वंयसेवी संगठन हैं।
म्यूजिक क्लास में शुक्रवार को बच्चों ने टेबल-कुर्सी, डिब्बे को ड्रम और बोतल में भरी रेत को शेकर बनाकर सौम्या दीदी के साथ अफ्रीकन लाइम बना दी। वहीं छात्राओं चेतना, सिद्धि, संगीता और मुकेश ने डाटा हैंडलिंग में ऐसा काम किया, जिसे सरकार भी करने में सफल नहीं हो पाई। ये चारों घर गए और बच्चों के स्कूल ड्रॉप-आउट का डेटा तैयार किया। इन्होंने बताया कि गांव में 157 बच्चे शादी होने, घर-खेती में काम करने के कारण कभी स्कूल नहीं गए। 107 बच्चे जाते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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