Friday, July 14, 2017

इस भीड़ भरी दुनिया में किसी अकेले के लिए परिवार बनें

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
पुणे के न्यूरोलॉजिस्ट आमतौर पर एपिलेप्सी, स्ट्रोक और पारकिन्सन्स रोग के मरीजों को ही देखते हैं। हाल ही में उन्होंने देखा कि क्रॉनिक टेंशन टाइप हैडेक (सीटीटीएच) या टेंशन हैडेक के मामलों में बढ़ोतरी हुई है।
अधिकतर मरीज एमएनसी या आईटी कंपनियों में काम करने वाले 28-30 साल के युवा होते हैं। उन्होंने यह भी पाया कि सप्ताह के कामकाज के दिनों में इनकी संख्या बढ़ती है, जबकि हफ्ते के अंतिम दिनों में कम हो जाती है। इसके पीछे दफ्तर का दबाव, लोगों से संबंध, बहुत ज्यादा यात्रा, व्यस्त जीवनचर्या, प्रदूषण, अपर्याप्त नींद, बहुत ज्यादा देर कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठने जैसे सामान्य कारण हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इनमें से अधिकतर लोगों को सुबह के समय अच्छा महसूस होता है, लेकिन जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ता है, दर्द बढ़ने लगता है। सुलझने वाली दुविधा, पारिवारिक मुद्‌दा, उनींदापन और तनाव से सिर में जकड़न महसूस होती है। इससे दर्द होता है। संक्षेप में कहें तो डॉक्टर को लगता है कि इस तरह के मरीजों में जीवन की गुणवत्ता कम होती जाती है। सीटीटीएच का इलाज अगर समय पर नहीं किया जाए तो यह जीवन के लिए तो खतरा नहीं है, लेकिन इससे समय से पहले बुढ़ापा, साइनस, ब्लड प्रेशर, डायबीटिज, किडनी और दिल संबंधी और अन्य बीमारियां हो सकती हैं। मसल रिलेक्सेशन के लिए तनाव दूर करने की दवाएं डॉक्टर उन्हें देते हैं। इन मरीजों को पैरासिटामोल और कुछ तरह की पेन किलर्स दी जाती हैं। साथ ही सलाह दी जाती है कि अपनी लाइफ स्टाइल बदलें। जैसे हैल्दी डाइट लें, नियमित नींद लें, समय-समय पर आराम करें और व्यायाम करें। कामकाजी युवाओं की ज्यादा संख्या वाले सभी बड़े उभरते शहरों में यही हाल है। अपने पहले के लोगों की तुलना में जल्दी उपलब्धियां हासिल करने के लिए युवा संघर्ष कर रहे हैं। 
युवाओं में हो रहे इस बदलाव और वर्क प्लेस पर हो रहे लगातार परिवर्तनों के बीच आईटी शहरों से दूर चैन्नई में जेनिफर जैकब ने हर शुक्रवार रात को ईश्वर का शुक्रिया अदा करने का फैसला किया। अधिकतर लोगों के लिए यह पार्टी का समय होता है। वे अपना घर उन लोगों के लिए खोल रही हैं, जिन्हें घरेलू भाेजन, हंसी और आनंद चाहिए। जेनिफर ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो देखा था, जिसमें डिप्रेशन से लड़ रही एक महिला अपना घर दोस्तों और डिप्रेशन से लड़ रहे लोगों के भोजन के लिए खोल देती है। इस तरह उनके अपने-दर्द साझा हो जाते हैं और भोजन के दौरान इनके दिल भर आते हैं। इससे प्रेरित होकर जेनिफर ने भी अपने घर के दरवाजे लाेगों के लिए इस साल 14 जुलाई को खोल दिए हैं। वे कहती हैं कि मैं कोई काउंसलर नहीं हूं, लेकिन कुछ ऐसा बनना चाहती हूं, जो किसी की दर्दभरी कहानी सुन सके और भोजन के साथ उनके साथ मुस्कुरा सके। उनका 'फ्राइडे फ्रेंड्स' प्रोग्राम इसी हफ्ते से शुरू हुआ है और इसमें वे सिर्फ चार लोगों को शामिल कर सकती हैं, वो भी उनके लिए जो गुरुवार तक ईमेल के जरिये अपना स्थान बुक कर लें। इसलिए अगर बात करना हो अपने ब्रेकअप के बारे में या बच्चों के बाहर रहने के कारण बुजुर्ग दंपति किसी के साथ समय बिताना चाहते हों या कोई अपने अच्छे दोस्त को खो बैठा हो तो जेनिफर और उनका परिवार उनका स्वागत करेगा, बहुत कम बजट के भोजन के साथ। उनके परिवार में है- पति मुरली आनंद, तीन साल की बेटी और डॉग। भोजन पूरी तरह शाकाहारी होगा, क्योंकि उन्हें जानवारों से प्यार है और उनके कुत्ते आसपास घूमते रहेंगे, किसी भी मेहमान के लिए इन्हें बांधा नहीं जाएगा। वे मानते हैं कि कम से कम इससे एक ब्रेक मिलेगा और कुछ नए और अच्छे लोगों से मिलने का अवसर मिलेगा। वह भी हर शुक्रवार को। इससे दर्द में राहत भी मिलेगी। 
फंडा यह है कि किसी के अकेलेपन के साथी बनिए, क्योंकि इस भीड़भाड़ भरी दुनिया में युवा धीरे-धीरे अकेले होते जा रहे हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com

साभार: भास्कर समाचार 
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