एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
मुंबई के पवई क्षेत्र के सारे बाग-बगीचों का अच्छा रखरखाव होता है। इसका एकमात्र कारण यह है कि हीरानंदानी जैसे धनी बिल्डरों की रुचि है कि उनके भावी रियल एस्टेट बिज़नेस पार्कों का रखरखाव करें।
हालांकि, यहां यह मुद्दा नहीं है। ये बाग-बगीचे पैदल घूमने वालों के स्वर्ग हैं। मैं वहां घूमने जाता हूं सुबह या शाम को। शाम के समय वहां विभिन्न परिवारों से आए बच्चों की भीड़ लग जाती हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वे वहां खेलते रहते हैं और उनके साथ आईं माताएं या घर के सेवक या तो आपस में बात करते रहते हैं अथवा अपने स्मार्ट फोन पर व्यस्त रहती हैं। यदि उन्हें अपने बच्चों के फोटो लेकर उन्हें वॉट्सएप ग्रुप पर डालना हो तो ठीक वरना बच्चों पर उनका ज्यादा ध्यान नहीं होता।
इस गुरुवार को मैंने देखा कि कुछ बच्चे पुरुषों के एक्सरसाइज सेक्शन में खेलते हुए उन रॉड्स पर चढ़ रहे थे, जो उनके लिए नहीं थे। चूंकि कुछ मिनटों पहले बूंदा-बांदी हुई थी तो मेरे दिमाग में ख्याल आया ही था कि कोई बच्चा गिर भी सकता है और एक बच्चा गिर गया। बच्चे के घुटने और दायीं हथेली में खरोंच गई। मैं उसकी ओर दौड़ा; उसने संदेह से मेरी ओर देखा। किसी ने जोर से उसकी मां को पुकारा, वह दौड़ती हुई आई। चूंकि मैं बच्चे से मुखातिब था और मेरी पीठ मां की ओर थी तो मैं उसे नहीं देख सका।
मैंने उसे खड़ा किया और मुस्कराते हुए उससे कहा,' हे बहादुर बच्चे तुमने तो फर्श तोड़ दिया और अब बगीचे का रखवाला तुम्हारी मां से जुर्माना वसूलेगा।' बच्चे ने फर्श की ओर देखा और फिर मेरी ओर देखने लगा कि क्या वाकई फर्श टूट गया है। वह रोना भूल गया। वह तो यह भी भूल गया कि वह गिर गया था। बच्चा तब तक बिल्कुल ठीक था लेकिन, फिर अचानक पीछे से मां आई, मुझे परे धकेला और बच्चे को गोद में लेकर पूछने लगी, 'तुम्हें चोट लग गई क्या? देखूं तो! रोओ मत बेटा, मम्मा है यहां।' तब तक बिल्कुल सामान्य हो चुका बच्चा बुरी तरह रोने लगा। वहां भीड़ जमा हो गई। बच्चे के रोने से उसे अजीब तरह का संतोष हुआ और उसने मुझे घूरकर देखा। उसकी आंखें कह रही थी, 'तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की फर्श टूट गया। यह तो पहले ही टूटा हुआ था, मैं रोज यहां आती हूं। तुम्हारी तरह नहीं कि महीने में एकाध बार गए। वैसे तुम हो कौन जो यह कहे कि तुम्हारी मां से जुर्माना वसूला जाएगा, जरा उसे बुलाओ तो जो मुझसे जुर्माना वसूलेगा।' ढेर सारे सवाल उन एक जोड़ी आंखों ने पूछ लिए। मैं उस जगह से अपराध बोध लेकर चला आया कि बेवजह ही वहां जाकर मैंने खुद को फंसा लिया। घटना के बाद मेरे एक दोस्त ने दबी मुस्कान से कहा,'तुम तो किसी सुपरमैन की तरह दौड़कर गए और बच्चे को उठा लिया पर उसकी मां किसी सांड की तरह दौड़ रही थी, क्योंकि तुम्हारे बीच में होने से उसे कुछ दिख नहीं रहा था। शुक्र है कि तुम सुपरमैन की तरह लाल पेंट नहीं पहने थे।'
इस मजाक पर मुस्कराते हुए मैंने सोचा कि गिरकर चोटग्रस्त होना हमारी रोज की जिंदगी का हिस्सा था, क्योंकि तब हमने कभी कार, नौकर, टीवी गेम्स, बच्चों के खेलने का अलग एरिया, लिफ्ट और एस्केलेटर नहीं देखे थे। उन दिनों की खराब सड़कों पर चलना और साइकिल चलाना ही घूमने-फिरने का जरिया था और घुटने, कोहनियां और बांहों पर जख्म होना आम था। जब भी ऐसा होता बैंड एड का नाम तो किसी ने सुना नहीं था, हमारे पालक सिर्फ नल के पानी की धार के नीचे जख्म धो डालते और यदि खून निकला हो तो उस पर रूमाल बांध देते। फिर घर पहुंचकर किसी किस्म का पाउडर लगा देते आमतौर पर बोरिक पाउडर वह भी कैरम बोर्ड पर इस्तेमाल होने वाली। ध्यान रहे कि हमारे साथ कभी कुछ बुरा नहीं हुआ।
फंडा यह है कि जरूरत से ज्यादा देखभाल बच्चों को मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर बना देती है। इसलिए उन्हें गिरने दें और खुद ही संभलने का मौका दें। मैं दावे से कह सकता हूं कि वे मजबूत होकर उभरेंगे।
इस मजाक पर मुस्कराते हुए मैंने सोचा कि गिरकर चोटग्रस्त होना हमारी रोज की जिंदगी का हिस्सा था, क्योंकि तब हमने कभी कार, नौकर, टीवी गेम्स, बच्चों के खेलने का अलग एरिया, लिफ्ट और एस्केलेटर नहीं देखे थे। उन दिनों की खराब सड़कों पर चलना और साइकिल चलाना ही घूमने-फिरने का जरिया था और घुटने, कोहनियां और बांहों पर जख्म होना आम था। जब भी ऐसा होता बैंड एड का नाम तो किसी ने सुना नहीं था, हमारे पालक सिर्फ नल के पानी की धार के नीचे जख्म धो डालते और यदि खून निकला हो तो उस पर रूमाल बांध देते। फिर घर पहुंचकर किसी किस्म का पाउडर लगा देते आमतौर पर बोरिक पाउडर वह भी कैरम बोर्ड पर इस्तेमाल होने वाली। ध्यान रहे कि हमारे साथ कभी कुछ बुरा नहीं हुआ।
फंडा यह है कि जरूरत से ज्यादा देखभाल बच्चों को मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर बना देती है। इसलिए उन्हें गिरने दें और खुद ही संभलने का मौका दें। मैं दावे से कह सकता हूं कि वे मजबूत होकर उभरेंगे।
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साभार: भास्कर समाचार
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