Thursday, July 13, 2017

बात तो सोचने की है: हंसने के लिए लाफ्टर शो जरूरी क्यों लगने लगा है?

आनंदमूर्ति गुरु मां (ऋषि चैतन्य ट्रस्ट)
परेशानी में, तनाव में जीना मनुष्य की आदत हो गई है। शांत चित्त तो लगता है कि जैसे किसी बुद्ध, महावीर या गुरु नानक का होता होगा। हम कैसे शांत चित्त वाले हो सकते हैं? आप लोग अपने जीवन को तनाव से भर रहे हैं। अपने बच्चों को भी वही दे रहे हैं। बच्चों की तकलीफों में बड़े लोगों का, मां-पिता का, परिवार का, समाज का पूरा योगदान है। आप बाहर सड़क पर खड़े होकर आधा-एक घंटा आते-जाते लोगों के चेहरे देखिए। एक भी मुस्कुराता चेहरा नहीं दिखेगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
आज के इंसान को हंसने के लिए लाफ्टर-शो देखना पड़ता है, हंसने के लिए कारण ढूंढ़ने पड़ते हैं। इससे ज्यादा गरीबी, मज़लूमियत और मनहूसियत और क्या हो सकती है? तनाव आते तो हैं, पर जाते नहीं। तनाव आपके दिमाग की कोशिकाओं में एकत्र होता जा रहा है। कब यह सिर उठाकर चिड़चिड़ेपन का, गुस्से का, आवेश का रूप लेगा, यह आप भी नहीं बता सकते। तनाव बहुत घातक है। आपके भीतर तनाव का स्तर जितना बढ़ता चला जाएगा, उतना ही अधिक आपका मन नकारात्मक सोच पैदा करने लगेगा। इससे शरीर में भी ऐसी ग्रंथियां पैदा होने लगेंगी, जो आपके शरीर में विष का काम करने लगेेंगी। शरीर के जीवकोषों के पास 'विघटित हो जाओ', ऐसी घातक सूचना जाने लगेगी। फिर जीवकोषों के विघटन से ही शरीर में बीमारियां पैदा होने लगेंगी। 
आप अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सुबह सैर करते हैं, अच्छा खाना खाते हैं, जूस पीते हैं, अपने आपको स्वस्थ रखने के सारे तरीके अपनाते हैं। पर जब तक आप अपने मन में पल रहे तनाव को ठीक नहीं करते हैं, तब तक उतनी ही बड़ी मात्रा में आप अपने शरीर में स्वयं रोग पैदा कर रहे हैं। तनाव किसी फोड़े-फुंसी की तरह आपके शरीर पर दिखेगा नहीं, लेकिन यह आपके जीवन का सत्यानाश जरूर कर देगा। याद रहे, हम पैसे से हर चीज़ खरीद सकते हैं, पर स्वास्थ्य नहीं। अच्छा खाना, सैर करना, केवल इससे ही स्वास्थ्य नहीं बनता है, ये सब सिर्फ सहयोग करते हैं। स्वास्थ्य आता है आपके अपने दिमाग से। 
जिनका शरीर अस्वस्थ हो, उनके लिए मैं एक सुझाव देती हूं। आप जब सुबह उठें, तो स्नान करने के बाद आपको जो भी वस्तु सबसे प्रिय हो - जरूरी नहीं कि वह धार्मिक ही हो, कोई मंत्र, मंदिर या गुरुद्वारा हो। वह एक सुुंदर पेड़ भी हो सकता है, आपके पोते-पोती का सुंदर चेहरा भी हो सकता है या प्रकृति का कोई सुंदर दृश्य भी हो सकता है। अपनी उस प्रिय वस्तु को आंखों के सामने लाएं, पूरे फेफड़े भरकर गहरा श्वास भरें और छोड़ें। जितनी बार गहरा श्वास भरें, उतनी बार भाव करें कि मेरा शरीर और मन स्वस्थ हो रहा है और जितनी बार श्वास बाहर छोड़ें, उतनी बार संकल्प करें, धारणा करें कि मेरे शरीर का सारा विष, सारी नकारात्मक सोच, सारी बुराइयां, सारे रोग, सारे अवगुण बाहर जा रहे हैं। 
इस पद्धति से आप अपने मन की ही शक्ति का प्रयोग कीजिए। मात्र 20 मिनट बैठिए और उसके बाद जो भी आपके दैनिक कार्य हैं, वे सब कीजिए। इन 20 मिनटों में ही आप अपने आपको काफी स्वस्थ पाएंगे। वैसे भी थोड़े ठंडे दिमाग से अपने आपसे ही कभी पूछिएगा कि 'कितने दिन जीओगे? जब जीवन जीने की अवधि इतनी कम है, तो खुशी से, उमंग से, प्यार से क्यों नहीं जीया जाए? क्यों अपने मन में जहर भरें? अपने शरीर में क्यों जहर डालें? और क्यों दूसरों के जीवन में जहर भरें?' 
अपनी मति को दुर्मति मत बनाइए, सन्मति बनाइए और यह जानिए कि यह जो जीवन आपके पास है, इससे अधिक और अनमोल चीज क्या हो सकती है? मानव जीवन यह एक ऐसी संभावना है कि आप अपने भीतर के दिव्यत्व को पहचान कर स्वयं परमात्मा हो सकते हैं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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