Thursday, July 13, 2017

आप बीती अमरनाथ यात्रियों की जुबानी, जिन्होंने मौत को बहुत करीब से देखा

सोमवार की रात 17 साल बाद अमरनाथ यात्रियों पर बड़ा आतंकी हमला हुआ। श्रीनगर से जम्मू रही गुजरात की बस को आतंकियों ने गोलियों से छलनी कर दिया। सात लोग मारे गए और 19 घायल हुए। घायलों मृतकों को सरकार एयरलिफ्ट कर सूरत लाई। आतंकियों के हमले में बाल-बाल बचे यात्रियों से भास्कर ने बात की। हमने जाना कि इस बस को कैसे निशाना बनाया गया। पढ़िए पूरी घटना की लाइव कहानी... 
दो तरह की आवाजें रही थीं...। बस से टकरातीं तड़-तड़ कर चलती गोलियां और यात्रियों की चीख-पुकार। दिमाग सुन्न हो चुका था। आखिर, आर्मी वाले हम पर क्यों गोलियां चला रहे हैं? कुछ समझते, तब तक मौत से मुलाकात का चार मिनट का वह मंजर बीत चुका था। थोड़ी देर में बस रुक गई। खून, कांच के टुकड़ों, फटी गद्दियों से भरी हुई बस और इन्हीं पर पड़े थे हमारे सारे साथी। ख्ून से लथपथ। अासपास छोटी-छोटी दुकानें थीं। बस रुकते ही सब चीखते हुए उनसे मदद मांगने लगे। खासकर महिलाएं। पर दुकान वालों ने काेई मदद नहीं की। तभी वहां सैनिकों की गाड़ी गई। उन्होंने घायलों को अस्पताल भेजा। उनकी बातों से पता चला- कि हमारी बस पर आतंकी हमला हुआ था। यह सोचते ही पूरा मंजर आंखों के सामने घूम गया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। शाम के सवा पांच बज चुके थे। हम अमरनाथ दर्शन से लौटकर श्रीनगर घूमे। फिर हमारी अन्य दो बसें एक साथ श्रीनगर से आगे निकलीं। धीरे-धीरे सेना की चौकियां कम होने लगीं। घुमावदार रास्तों से चलती बसें एक घंटे में 30 किलोमीटर चली होंगी। तभी हमारी बस का पिछला टायर पंचर हो गया। पर ड्राइवर ने बस नहीं रोकी। करीब पांच किलोमीटर बाद पंचर बनाने की दुकान दिखी तो वहां बस रुकी। पंचर बनवाने में करीब 45 मिनट लग गए। करीब 7.15 बजे बस जम्मू रवाना हुई। अब हमारी बस अकेली थी। दो बसें आगे निकल चुकी थीं। रात 8.10 बजे 5-7 लोग बंदूकें लिए आर्मी की ड्रेस में सामने से आते दिखाई दिए। तसल्ली हुई कि यहां भी सुरक्षा इंतजाम है। लेकिन जैसे ही बस उनके करीब पहुंची, उन्होंने गोलियां बरसानी शुरू कर दी। बस ऑपरेटर के बेटे हर्ष देसाई को शायद पहले ही कुछ आशंका थी। गोलियां चलते ही उसने ड्राइवर सलीम मिर्जा का सिर स्टेयरिंग पर झुका दिया। तभी एक गोली ड्राइवर के पीछे बैठी लक्ष्मी पटेल के सिर में लगी। एक और गोली हर्ष के कंधे में घुस गई। अचानक हुई फायरिंग और हर्ष द्वारा सिर झुकाने से ड्राइवर घबरा गया। उसने हड़बड़ी में बस रोक दी। इतने में हमलावरों की पोजीशन बदल चुकी थी। वे फायरिंग करते हुए बस की दाईं ओर और पीछे भी गए। गोलियां बस की लोहे की चद्दर और विंडो के कांच तोड़ते हुए अंदर आतीं और किसी के हाथ, पैर, पीठ या कहीं भी धंस जातीं। सारे यात्री चीखते-चिल्लाते अपनी सीट के नीचे छुपने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन बच कोई नहीं पा रहा था, क्योंकि गोलियां लगभग चारों तरफ से ही चल रही थीं। तभी घायल हर्ष ने दरवाजा लॉक करने की कोशिश की। क्लीनर मुकेश चिल्लाया, 'सलीम बस भगाओ...'। जब तक आतंकी बस के दरवाजे तक पहुंचते तब तक ड्राइवर ने बस आगे बढ़ा दी। गोलियाें का शोर और तेज हो गया। ड्राइवर को छोड़कर सीट पर कोई नहीं बैठा था। सभी यात्री सीटों के नीचे या आसपास झुके-सिमटे बैठे थे। कुछ बेसुध पड़े थे। करीब 500 मीटर तक गोलियां बस से टकराती रहीं। फिर बंद हो गई। दो-ढाई किलोमीटर बाद ड्राइवर ने बस रोकी। आसपास छोटी दुकानें थीं। दुकानदारों को देख हमारी कुछ हिम्मत बंधी। पर बस से उतरने की हिम्मत नहीं हो रही थी। कुछ लोगों ने दुकानदारों से मदद की गुहार लगाई, 'प्लीज... हमारी मदद करो। हमारे कुछ साथियों को गोलियां लग गई हैं। मदद करो। पुलिस को फोन कर दो'। पर दुकानदार हमें अनसुना कर रहे थे। उनमें से कुछ तो मदद करने की बजाय दूर चले गए। वे नहीं आए तो हमारी आस टूटने लगी। तभी सामने से कुछ गाड़ियां आकर रुकीं और कुछ उस आेर चली गईं, जिधर आतंकी थे। वे सेना के जवान थे। उन्होंने आते ही बस का दरवाजा खुलवाया और अंदर गए। बोले, 'घबराइए नहीं! हम सैनिक हैं।' उन्होंने पहले घायल महिलाओं और बच्चों को अस्पताल भेजा। फिर कम घायलों और अन्य को अपनी गाड़ियों में बिठाया। 15 मिनट में सेना की कुछ और गाड़ियां गईं। बाकी लोगों को उन पर बिठाकर सेना के जवानों न रवाना कर दिया। इस दौरान पास के दुकानदार दुकानें बंद कर जा चुके थे। सेना के मददगार जवानों ने बताया कि आपकी बस पर आतंकवादियों का हमला हुआ था और वे आतंकी ही थे जो सेना की वर्दी में घात लगाकर बैठे हुए थे। हालांकि अब वो सारे भाग गए हैं। 
हर्ष देसाई: टूर ऑपरेटर के बेटे ने कहा-चोट खाकर भी लोगों को बचा लिया। यही एक संतोष है। 
सविता पटेल: सवितासूरत में रहने वाली बहन सुमित्रा के साथ थीं। हमले से यह साथ टूट गया। 
सुशीला बेन: सुशीला पति नटूभाई पटेल के साथ थीं। उन्होंने बताया कि सैनिकों के भेष में थे आतंकवादी। 
सलीम शेख: ड्राइवर ने कहा कि गोलियां चलने लगीं, फिर भी बस को सुरक्षित निकाल लिया। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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