Sunday, July 9, 2017

सोशल मीडिया भड़काता है भावनाएं: बीमारी के समान फैलती है गुस्से और नफरत की लहर

अमेरिका में इन दिनों राजनीतिक रैलियों में हिंसा बढ़ती जा रही है। ऐसा लगता है, जैसे स्थितियां नियंत्रण से बाहर हो गई हैं। कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी में घृणा और उग्रवाद अध्ययन केन्द्र के डायरेक्टर ब्रायन
लेविन कहते हैं, अक्सर हमारी आशंकाएं वास्तविक खतरे के अनुरूप नहीं होती हैं। उदाहरण के लिए हम जानते हैं कि आतंकवादी हमले की तुलना में कार दुर्घटना में हमारे मरने की आशंका ज्यादा है लेकिन हम उस पर गौर नहीं करते हैं क्योंकि नाटकीय और विघटनकारी विचारों ने हमारे सोच-विचार का दायरा सीमित कर दिया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वे कहते हैं,भयग्रस्त समाज भावनाओं पर चलता है और सोशल मीडिया भावनाओं पर आधारित है। सोशल मीडिया पर हम जो कुछ शेयर करते हैं, उसका जहरीला प्रभाव पड़ता है। रूखे व्यवहार और घोर अपमान की स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। वे इतने आम हो चले हैं कि हमें आघात नहीं लगता है। भले ही यह व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में बैठे व्यक्ति या लेट नाइट शो के कॉमेडियन द्वारा किया जाए। 
सोशल मीडिया पर गुस्सा खासतौर से संक्रामक होता है। क्योर वायोलेंस क्लीनिक के संस्थापक डॉ. गैरी स्लटकिन कहते हैं, हिंसा और हिंसक भाषण बीमारी के समान हैं। हिंसा और उत्तेजना वायरस की तरह फैलते हैं। इसलिए यदि उग्र भाषण को एक दायरे में स्वीकार कर लिया जाए तो वह दूसरे क्षेत्रों में फैलता है। अवांछनीय सामाजिक तौर-तरीके अधिक व्यापक हो रहे हैं। जो लोग मानसिक रूप से अस्थिर हैं या अपरिपक्व हैं, वे हिंसा का सहारा लेते हैं। ऐसी हिंसा उस व्यक्ति या संस्था के खिलाफ होती है जिन्हें वे नापसंद करते हैं। स्लटकिन जैसे विशेषज्ञ बताते हैं, उनके पास ऐसी तकनीक है जो हिंसा भड़काने वाली घटनाओं या नकारात्मक भाषण को पहचानकर उन्हें रोक सकती है। खास विचारधारा के ग्रुप का प्रभावशाली व्यक्ति किसी विपत्ति के समय ऑनलाइन सहायता जुटा सकता है या इंटरनेट के किसी कोने को भीड़ में बदल सकता है। इस मोड़ पर लीडर शालीनता और मर्यादा का भाव पैदा कर सकते हैं। अमेरिका में अभी हाल हुए कुछ परिवर्तनों जैसे समलैंगिक विवाह या डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति चुने जाने से आबादी का एक हिस्सा अलग-थलग महसूस करने लगा है। यूएस एंड दैम किताब के लेखक डेविड बैरेबी का कहना है, लोगों को धक्का लगा है। इससे भय पैदा हुआ है और भयग्रस्त लोगों का गुस्सा फूट पड़ता है। 
क्रोध से नुकसान: बीहांग यूनिवर्सिटी, बीजिंग के शोधकर्ताओं ने सात करोड़ से अधिक पोस्ट में चार बुनियादी भावनाएं पाई हैं। इनमें दुख, आनंद जैसी अन्य भावनाओं की तुलना में गुस्सा अधिक प्रभावशाली है। वह अधिक तेजी से व्यापक तौर पर फैलता है। यह एक शारीरिक और मानसिक क्रिया है। क्रोध से एड्रीनेलिन का विस्फोट होता है और हमारे नर्वस सिस्टम में लड़ने की प्रतिक्रिया होती है। इससे तनाव और बेचैनी बढ़ाने वाले हार्मोन पैदा होते हैं। हम अगली बार और अधिक उत्तेजित हो जाते हैं। यह सब हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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