नोट:
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आज गांधीजी को देश ही नहीं, पूरी दुनिया में याद किया जाता है। यह दिन
विश्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। एक विश्वविख्यात महानुभाव
की तरह उन्हें सभी याद करते हैं। वहीं, हिंदुस्तान में तो गांधीजी हरेक
व्यक्ति के साथ रहते हैं और वह है भारतीय करंसी यानी की नोट। हरेक नोट पर
गांधीजी की तस्वीर होती है, जो हमारी करंसी का ट्रेडमार्क भी है। लेकिन सवाल यह उठता है कि गांधीजी की यह तस्वीर कहां से आई, जो ऐतिहासिक और
हिंदुस्तान की करंसी ट्रेडमार्क बन गई। दरअसल यह सिर्फ पोट्रेट फोटो नहीं,
बल्कि गांधीजी की संलग्न तस्वीर है। इसी तस्वीर से गांधीजी का चेहरा
पोट्रेट के रूप में लिया गया।
- कहां की है यह तस्वीर: यह तस्वीर उस समय खींची गई, जब गांधीजी ने तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात की थी। इसी तस्वीर से गांधीजी का चेहरा पोट्रेट के रूप में भारतीय नोटों पर अंकित किया गया।
- पहले नहीं होती थी गांधी जी की तस्वीर: आज हम भारतीय नोटों पर गांधीजी का चित्र देख रहे हैं, जबकि इससे पहले नोटों पर अशोक स्तंभ अंकित हुआ करता था। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा 1996 में नोटों में परिवर्तन करने का फैसला लिया गया। इसके अनुसार अशोक स्तंभ की जगह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का फोटो और अशोक स्तंभ की फोटो नोट के बायीं तरफ निचले हिस्से पर अंकित कर दी गई। अभी तक 5 रुपए से लेकर 1 हजार तक के नोट में गांधीजी की फोटो दिखाई देती है। इससे पहले 1987 में जब पहली बार 500 का नोट चलन में आया तो उसमें गांधीजी का वॉटरमार्क यूज किया गया था। सन् 1996 के बाद हरेक नोट में गांधीजी का चित्र अंकित हो गया।
- ये भी जानिए: अब एक व दो रुपए के नोट सक्यरुलर में नहीं है। इसे 1994 से बंद कर दिया गया है। इनकी जगह सिक्कों ने ली है। वहीं, जब एक रुपए का नोट चलन में था, तब उस पर रिजर्व बैंक के गर्वनर की जगह फायनेंस सेक्रेटरी (वित्त सचिव) के हस्ताक्षर अंकित हुआ करते थे। करंसी ऑफ ऑर्डिनेंस के नियमानुसार एक रुपए का नोट भारत सरकार द्वारा, जबकि दो रुपए से लेकर 1000 रुपए तक की करंसी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा जारी की जाती थी। वर्तमान में एक-दो रुपयों का उत्पादन बंद कर दिया गया है, लेकिन पुराने नोट अभी भी चलन में हैं।
- 1957 से पहले नहीं था पैसा: भारतीय रुपया 1957 तक 16 आनों में रहा। इसके बाद मुद्रा की दशमलव प्रणाली अपनाई गई और एक रुपए का निर्माण 100 पैसों में किया गया। महात्मा गांधी वाले कागजी नोटों की शुरुआत 1996 से शुरू हुई, जो अब तक चलन में है।
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साभार:
भास्कर समाचार
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