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मौसम के बदलाव के चलते अक्सर बुखार जैसी समस्या का हो जाना आम बात है।
बुखार नियंत्रण के लिए आदिवासी अंचलों में कई नुस्खों को हर्बल जानकारों
द्वारा उपयोग में लाया जाता रहा है। कई वनस्पतियों को बुखार नियंत्रण के
लिए अत्यंत कारगर माना गया है। हर्बल जानकार जिन्हें मध्य भारत में भुमका
और पश्चिम भारत में भगत कहा जाता है, अनेक वनस्पतियों का उपयोग कर बुखार
में आराम दिलाने का दावा करते हैं। चलिए, आज जानते हैं इन्हीं आदिवासियों
के द्वारा अपनाए जाने वाले 10 चुनिंदा हर्बल नुस्खों के बारे में, जिनका
इस्तेमाल कर बुखार पर काबू पाया जा सकता है। इनमें से अधिकांश हर्बल
नुस्खों की पैरवी
आधुनिक विज्ञान भी करता है: - पातालकोट के आदिवासी बुखार और कमजोरी से राहत दिलाने के लिए कुटकी के दाने, हर्रा, आंवला और अमलतास के फलों की समान मात्रा लेकर कुचलते हैं और इसे पानी में उबालते हैं। इसमें लगभग 5 मिली शहद भी डाल दिया जाता है और ठंडा होने पर इसे रोगी को दिया जाता है। दिन में कम से कम दो बार इस मिश्रण को दिए जाने पर बुखार नियंत्रित हो जाता है।
- इन्द्रजव की छाल और गिलोए का तना समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना कर पिलाने से बुखार में आराम मिल जाता है। पातालकोट के आदिवासी रात को इंद्रजव पेड़ की छाल को पानी में डुबोकर रख देते हैं और सुबह इस पानी को पी लेते हैं। उनके अनुसार, इससे पुराना बुखार ठीक हो जाता है।
- पातालकोट में आदिवासी करौंदा की जड़ों को पानी में कुचलकर बुखार होने पर शरीर पर लेप करते हैं और गर्मियों में लू लगने और बुखार होने पर इसके फलों का जूस तैयार कर पिलाते हैं। तुरंत आराम मिलता है।
- बुखार होने की वजह से जलन होने पर पलाश के पत्तों का रस लगाने से जलन का असर कम हो जाता है।
- पुनर्नवा की जड़ों को दूध में उबालकर पिलाने से बुखार में तुरंत आराम मिलता है। बुखार के दौरान कम पेशाब होने और पेशाब में जलन की शिकायत से छुटकारा पाने के लिए भी यही मिश्रण कारगर होता है।
- गुजरात के आदिवासी फराशबीन की फलियों को पीसकर या कद्दूकस पर घिसकर मोटे कपड़े से इसका रस छान लेते हैं और इस रस को बुखार से ग्रस्त रोगियों के देते हैं। उनके अनुसार इसमें पोषक तत्व की भरपूर मात्रा होती है और ये कमजोरी को दूर भगाने में कारगर फ़ॉर्मूला है।
- सप्तपर्णी की छाल का काढ़ा पिलाने से बदन दर्द और बुखार में आराम मिलता है। डांग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार, जुकाम और बुखार होने पर सप्तपर्णी की छाल, गिलोय का तना और नीम की आंतरिक छाल की समान मात्रा को कुचलकर काढ़ा बनाकर रोगी को दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिलता है। आधुनिक विज्ञान भी इसकी छाल से प्राप्त डीटेइन और डीटेमिन जैसे रसायनों को क्विनाइन से बेहतर मानता है।
- सूरजमुखी की पत्तियों का रस निकाल कर मलेरिया आदि में बुखार आने पर शरीर पर लेप किया जाता है। पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि यह रस शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- गुजरात के आदिवासी सोनापाठा की लकड़ी का छोटा-सा प्याला बनाते है और रात को इसमें पानी रख लेते हैं। इस पानी को अगली सुबह उस रोगी को देते हैं जो लगातार बुखार से ग्रस्त है।
- गुजरात के आदिवासी हंसपदी के तना, पत्ती, जड़, फल और फूल लेकर सुखा लेते हैं और फ़िर एक साथ चूर्ण तैयार करते हैं। इस चूर्ण का चुटकी भर भाग शहद के साथ सुबह और शाम लेते हैं, जिससे बुखार में आराम मिलता है।
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साभार:
भास्कर समाचार एवं डॉ. दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा.
लि. अहमदाबाद)
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