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दुनिया के विभिन्न धर्मों में नया साल एक उत्सव की अलग-अलग समय पर विभिन्न
परंपराओं के साथ मनाया जाता है। किसी धर्म में नाच-गाकर नए साल का स्वागत
किया जाता है तो कहीं पूजा-पाठ व ईश्वर की आराधना कर। दुनिया में सबसे अधिक
ईसाई नव वर्ष मनाए जाने की परंपरा है। ईसाई वर्ष 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक
12 महीनों में बंटा होता है। जानिए किस धर्म में कब नव वर्ष मनाए जाने की
परंपरा है:
- ईसाई नव वर्ष: ईसाई समाज 1 जनवरी को नव वर्ष मनाता है। करीब 4000 वर्ष पहले बेबीलोन में नया वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। तब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। तब से आज तक ईसाई धर्म के लोग इसी दिन नया साल मनाते हैं। यह सबसे ज्यादा प्रचलित नव वर्ष है।
- जैन नव वर्ष: जैन नववर्ष दीपावली के अगले दिन से शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत कहते हैं।
- हिंदू नव वर्ष: हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल का आरंभ भी होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अप्रैल में आती है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादी आदि नामों से भारत के अनेक क्षेत्रों में मनाया जाता है।
- सिंधी नव वर्ष: सिंधी नव वर्ष चेटीचंड उत्सव से शुरू होता है, जो चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। सिंधी मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरुण देव के अवतार थे।
- सिक्ख नव वर्ष: पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिक्ख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होला मोहल्ला (होली के दूसरे दिन) नया साल होता है।
- पारसी नव वर्ष: पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव पारसी लोग मनाते हैं। लगभग 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने पारसी धर्म में नवरोज मनाने की शुरुआत की। नव अर्थात् नया और रोज यानि दिन।
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साभार: भास्कर समाचार
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