एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
इस साल यहां स्कूल में छात्रों की भरमार है। एडमिशन देने से मना किया जा रहा है, जबकि माता-पिता बच्चों को यहीं पढ़ाना चाहते हैं कहीं और नहीं भेजना चाहते। लेकिन हालात इतने उल्टे कैसे हो गए? आंदोलन के बाद शिक्षा विभाग ने यहां पांच टीचर नियुक्त किए हैं। हैड मास्टर गर्दे, सुभाष सरदार (52), कृष्णा पलोड (33), राहुल साखरकर (31), गजानंद जाधव (36)। स्कूल के चार कमरों में आठ क्लास लगती थी। टीचर एक कमरे में दो क्लास लेते थे। फिर इनफ्रास्ट्रक्चर के लिए 1.5 लाख रुपए जमा किए गए। उनका समर्पण देखकर गांव वालों ने भी 3 लाख रुपए दिए। हरा-भरा कैम्पस, वाटर प्यूरीफायर, स्वच्छ टॉयलेट और पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों के लिए बड़े स्थान के कारण बच्चे स्कूल खत्म होने के बाद भी यहां बने रहते हैं। कंप्यूटर लेब ने भी काफी परिवर्तन किया है। बच्चे स्कूल में बैठते हैं और अब उनका सात से नौ बजे तक टीवी देखने का समय विषय का रीविजन करने का समय हो गया है। इसके अलावा एक और आकर्षण है, स्पोकन इंग्लिश क्लास। बच्चों को यूपीएससी और एमपीएसी की परीक्षा के लिए तैयार करने के लिए हर माह जनरल नॉलेज की क्लास भी लगती है। धीरे-धीरे यह खबर फैली तो आसपास के करीब 10 गांवों के लोगों ने अपने अंग्रेजी मीडियम के बच्चों को नवेली जिला परिषद स्कूल में शिफ्ट कर दिया। इस साल वे एक और नई शुरुआत करने वाले हैं। किंडरगार्टन क्लासेस। और यह पूरा उलटफेर हुआ है मात्र एक साल में। छात्र और टीचर्स ऐसा बर्ताव करते हैं जैसे वे स्कूल के मालिक हों। वे इसे पढ़ाई के लिए शानदार जगह बनाने की पूरी कोशिश करते हैं। इसने गांव वालों के मन में भी सम्मान की भावना पैदा की है। अब स्थानीय एमएलए भी इसके लिए फंड दे रहे हैं। आश्चर्य नहीं कि इस स्कूल में अब 415 बच्चे हो गए हैंं।
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आधारभूत ढांचे के मामले में पुणे का हडपसर इलाका अच्छा माना जाता है। सिविक बॉडी द्वारा चलाए जा रहे 27 स्कूलों में से एक रामचंद्र बनकर स्कूल है। कक्षा एक से आठ तक का 1676 छात्रों वाला यह स्कूल महानगर
पालिका के 50 अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में से एक है। यहां शानदार इन्फ्रास्ट्रक्चर है, क्योंकि एनजीओ और कॉर्पोरेट ट्रेनर यहां गेस्ट लैक्चर और ट्रेनिंग देने आते रहे हैं। सोमवार को सुबह पैरेंट्स ने यहां एक आंदोलन किया, क्योंकि उनका आरोप है कि स्कूल में केवल 15 अध्यापक हैं और हर टीचर को 140 छात्रों को हैंडल करना पड़ता है। छात्रों को स्कूल साफ करना पड़ता है और फर्श पर बैठना पड़ता है। विपक्षी पार्टी पैरेंट्स की मदद से आंदोलन कर रही है। लेकिन सत्ताधारी पार्टी इसे बेकार आरोप बता रही हैं। कुछ माता-पिता अपने बच्चों का स्कूल बदलने पर विचार कर रहे हैं और निजी स्कूल में प्रवेश दिलाना चाहते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पूरे महाराष्ट्र के सरकारी स्कूल पढ़ाई छोड़ रहे बच्चों की बढ़ती संख्या की समस्या से जूझ रहे हैं। 2009 से लेकर अब तक 16.4 लाख बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी है। इसके उलट यहां से 482 किमी दूर पुणे-अहमदनगर हाईवे पर स्थित मावली गांव में हालात बिल्कुल अलग हैं। वहां एक ही स्कूल था- मावली जिला परिषद स्कूल, वाे भी मराठी माध्यम। इस स्कूल में कक्षा से एक से आठ तक की क्लास लगती है। फिर भी यहां के अधिकतर बच्चे 30 किमी दूर यात्रा कर पढ़ने के लिए रसोद स्कूल जाते थे। क्योंकि जिला पंचायत के स्कूल में सिर्फ चार कमरे थे। टॉयलेट है और ही कोई टीचर। पुणे की तरह यहां भी लोगों ने मई 2016 में किया था। यह स्थिति थी पिछले साल तक। इस साल यहां स्कूल में छात्रों की भरमार है। एडमिशन देने से मना किया जा रहा है, जबकि माता-पिता बच्चों को यहीं पढ़ाना चाहते हैं कहीं और नहीं भेजना चाहते। लेकिन हालात इतने उल्टे कैसे हो गए? आंदोलन के बाद शिक्षा विभाग ने यहां पांच टीचर नियुक्त किए हैं। हैड मास्टर गर्दे, सुभाष सरदार (52), कृष्णा पलोड (33), राहुल साखरकर (31), गजानंद जाधव (36)। स्कूल के चार कमरों में आठ क्लास लगती थी। टीचर एक कमरे में दो क्लास लेते थे। फिर इनफ्रास्ट्रक्चर के लिए 1.5 लाख रुपए जमा किए गए। उनका समर्पण देखकर गांव वालों ने भी 3 लाख रुपए दिए। हरा-भरा कैम्पस, वाटर प्यूरीफायर, स्वच्छ टॉयलेट और पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों के लिए बड़े स्थान के कारण बच्चे स्कूल खत्म होने के बाद भी यहां बने रहते हैं। कंप्यूटर लेब ने भी काफी परिवर्तन किया है। बच्चे स्कूल में बैठते हैं और अब उनका सात से नौ बजे तक टीवी देखने का समय विषय का रीविजन करने का समय हो गया है। इसके अलावा एक और आकर्षण है, स्पोकन इंग्लिश क्लास। बच्चों को यूपीएससी और एमपीएसी की परीक्षा के लिए तैयार करने के लिए हर माह जनरल नॉलेज की क्लास भी लगती है। धीरे-धीरे यह खबर फैली तो आसपास के करीब 10 गांवों के लोगों ने अपने अंग्रेजी मीडियम के बच्चों को नवेली जिला परिषद स्कूल में शिफ्ट कर दिया। इस साल वे एक और नई शुरुआत करने वाले हैं। किंडरगार्टन क्लासेस। और यह पूरा उलटफेर हुआ है मात्र एक साल में। छात्र और टीचर्स ऐसा बर्ताव करते हैं जैसे वे स्कूल के मालिक हों। वे इसे पढ़ाई के लिए शानदार जगह बनाने की पूरी कोशिश करते हैं। इसने गांव वालों के मन में भी सम्मान की भावना पैदा की है। अब स्थानीय एमएलए भी इसके लिए फंड दे रहे हैं। आश्चर्य नहीं कि इस स्कूल में अब 415 बच्चे हो गए हैंं।
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साभार: भास्कर समाचार
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