Wednesday, July 12, 2017

सक्सेस फंडा: जीत से प्रेम है तो सफलता बचकर नहीं निकल सकती

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: 1994 में वे दिल्ली के फ्रूट मार्केट में 20 रुपए रोज की कमाई के लिए एक फल की दुकान पर छोटे-मोटे काम करते थे। फिर बीमार होकर अपने घर बिहार के मुंगेर लौट आए। लेकिन गरीबी ने फिर दिल्ली का रास्ता
दिखाया। इस बार वे कूड़ा बीनने वाले बन गए। कनॉट प्लेस के इर्द-गिर्द पीठ पर थैला टांगे वो घूमते। बेकार चीजें जमा करते और फिर बेच देते। इसके कारण उनके गांव वालों ने उनसे रिश्ते तोड़ लिए। 1996 में कुछ मदद के सहारे राजा बाजार झुृग्गी के बाहर सड़क किनारे एक दुकान खोली। यहां वे सूखा कबाड़ अटाले वालों से खरीदते और इसे फिर बेच देते। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 1999 में कचरा बीनने वालों की एक संस्था बनाई- सफाई सेना। इस काम में कचरा बीनने वालों काे सम्मानजनक जीवन देने के लिए काम करने वाले एनजीओ चिंतन एनवायरमेंट रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप ने उनकी मदद की थी। 2012 में सिकंदरपुरा में उन्होंने अटाले की छटाई का अपना एक सेंटर शुरू किया। इसी तरह का एक सेंटर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास भी शुरू किया। यहां आज उनके साथ 160 लोग काम करते हैं। 
कभी कचरा बीनने वाले जयप्रकाश चौधरी आज कोपनहैगन, लग्ज़मबर्ग, ब्राजील जैसे स्थानों पर वेस्ट और रिसाइकलिंग को लेकर लैक्चर देते हैं। उनके काम को देखने का गांव वालों का तरीका बदल गया है। 23 साल पहले जिन गांव वालों ने उन्हें कूड़ा बीनने वाला कहकर उनसे रिश्ते तोड़ दिए थे, वे अब इस 40 साल के आंत्रप्रेन्योर के पास जॉब मांगने आते हैं। उनकी कमाई करीब 11 लाख रुपए महीना है। 
स्टाेरी 2: महेश राव जब 8वीं क्लास में थे तो अपनी बहन के साथ रांगोली में प्रतियोगिता में गए थे। उन्हें यह दिलचस्प लगी थी, इसलिए इसमें शामिल होने का फैसला किया था। लोग उनकी ड्राइंग पर हंसे थे। इसलिए उन्होंने अपनी मां के साथ इस कला की प्रैक्टिस करने का फैसला किया। पिता की इच्छा के अनुसार इंजीनियरिंग के साथ एमबीए की डिग्री भी ली। लेकिन उनके दिल पर बनी जटिल और स्पष्ट रांगोली की कलाकृतियों ने 29 साल की उम्र में उन्हें मनिपाल यूनिवर्सिटी के आर्ट स्कूल से रांगोली में पीएचडी करने के लिए प्रेरित किया। रांगोली पर पीएचडी करने वाले वे पांचवें भारतीय होंगे। लेकिन ऐसा करने वाले पहले इंजीनियर और एमबीए होंगे। 
रांगोली बनाना कई लोगों के लिए खुशी और समृद्धि का प्रतीक है,लेकिन कई लोगों के लिए यह धर्म का मामला है। क्योंकि इससे चीटियों और छोटे कीड़ों को भोजन मिलता है, क्योंकि परम्परागत रूप से कई स्थानों पर रांगोली चावल के आटे से बनाई जाती है। महेश एक इंस्टीट्यूशन खोलना चाहते हैं जो रांगोली को प्रचारित करे और इस तरह के परम्परागत मूल्यों को फिर से जीवित कर सकें। 
स्टोरी 3: 2010 में जोयिता मंडल को बस स्टैंड पर सोना पड़ा था, क्योंकि होटलों ने ट्रांसजेंडर होने के कारण उन्हें कमरा देने से मना कर दिया था। पिछले शनिवार को जोयिता अपनी कार से उत्तर दीनापुर के इस्लामपुर कोर्ट पहुंचीं। जिस बस स्टैंड पर उन्हें रात बितानी पड़ी थी, वहां से यह स्थान सिर्फ पांच मिनट की दूरी पर है। उनकी सफेद कार पर लाल रंग की प्लेट लगी थी। उस पर लिखा था- जजशिप ऑन ड्यूटी। हमेशा उत्सवों से दूर रखे जाने वाले इस समुदाय के लिए यह बड़ा अवसर था। जोयिता को नेशनल लोक अदालत बेंच के लिए चुना गया है। बस स्टैंड से वहां पहुंचने का रास्ता भले ही मात्र पांच मिनट की दूरी पर हो, पर इसे तय करना इतना आसान नहीं था। सामाजिक कामों के प्रति उनका समर्पण और अपनी कम्यूनिटी की मदद करने की भावना उन्हें यहां तक लाई। 
फंडा यह है कि अगर आपमें जीत के प्रति स्थायी प्रेम की भावना है तो सफलता बच कर निकल नहीं सकती। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.