Wednesday, July 19, 2017

लाइफ मैनेजमेंट: टाइम को 'पास' करो तो जीवन में फेल नहीं होंगे

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: कॉलेज और स्कूल के बाद मौज-मस्ती करने निकल जाने वाले अपने साथियों से अलग वह बेंगलुरू के नेशनल एराेस्पेस लेबोरेटरी (एनएएल) के ग्राउंड में पढ़ाई करके टाइम पास करता है। वह 20 साल का है और वह
इसी तरह से पिछले नौ साल से टाइमपास कर रहा है, क्योंकि एनएएल के एरोस्पेस इलेक्ट्रॉनिक्स और सिस्टम डिविजन के स्काय सर्फर जैसे अनमेन्ड एरिअल व्हीकल (यूएवी), एयरप्लेन के विंग लगाना और ऑटो पायलट वाले क्वाड्रोटाेर्स की टेस्टिंग देखना उसे पसंद है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यहां धीरे-धीरे वो वैज्ञानिकों की मदद करने लगा और अब तो पायलेटिंग में पूरी मदद करता है। एयरप्लेन और ड्रोन के प्रति बचपन से ही उसे आकर्षण था, इसलिए वह इनके डिजाइन, डेवलपिंग और ड्रोन टेस्टिंग की ओर बढ़ा। आज वह ऐरो मॉडलर्स ऐसोसिएशन ऑफ इंडिया का सदस्य है। मिलिए रोहित देव से। बीएससी प्रथम वर्ष का यह छात्र एनएएल के गैर-अधिकृत ड्रोन टेस्ट पायलट के रूप में खुद का परिचय देता है। एनएएल की लैब में जब नया ड्रोन बनाया जाता है तो वैज्ञानिक उसे बुलाते हैं, क्योंकि उनके पास ड्राेन के प्रोटोटाइप उड़ाने के लिए पायलट नहीं है। 
यूएवी को ट्यून करने और फिक्स करने के अलावा वह अरडूपायलट (प्रोफशनल ग्रेड ओपन सोर्स, यूएवी ऑटोपायलट सॉफ्टवेअर सुइट) के लिए अल्गाेरिदम भी लिखता है। तीन दिन में वह इसकी प्रायोगिक उड़ान करता है। एनएएल से जुड़ने से उसे फायदा हुआ, क्योंकि इससे उसे अच्छा टाइमपास तो मिला ही साथ ही समस्याओं के समाधान और तकनीक को समझने में भी मदद मिली। एक प्रायवेट ड्रोन निर्माता ने उसे अपने यहां ड्रोन टेस्ट पायलट का फुल टाइम जॉब करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन पढ़ाई में नुकसान होता इसलिए उसने इनकार कर दिया। टेस्ट ड्राइव करने के अलावा वह घर पर यूएवी और एक माइक्रो एअर व्हीकल बना रहा है। इसमें ऊर्जा की बचत, टिकाऊपन अत्याधुनिक तकनीक पर विशेष जोर है। बात यहीं खत्म नहीं होती। 2015 में देव को नासा ने यंग साइंटिस्ट पुरस्कार, बेस्ट यूएवी पायलट और यूएवी डिज़ाइन के पुरस्कार से नवाजा है। उसे यूएवी डेवलपमेंट पर रिसर्च के लिए सेंट्रल फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी से भी प्रशंसा मिली है। 
स्टोरी 2: मुंबई के तट पर आंबेडकर नगर स्लम के अधिकतर युवा रोज ही अधिकतर समय समुद्र के तट पर बिना कुछ किए समय गुजारते हैं। कचरे से भरी गंदी गलियों से निकलना यहां के बच्चे बहुत जल्दी सीख जाते हैं। फिर शाम इनकी अरब सागर में उछल-कूद करते हुए बीतती है। लेकिन 17 साल का रघूवीर सिंह इससे उलट है। वह अंडरग्रेजुएट है और एनजीओ 'हमारा फुटपाथ' ने उसके सहित पांच बच्चों को स्कूल-कॉलेज में भर्ती किया था। अभी लाइफ स्किल के लिए दी जा रही दो साल की इंटर्नशिप में से वह 18 महीने पूरे कर चुका है। यह एेसी चीज है जो उसका बैकग्राउंड उसे नहीं दे सकता था। जेएम बक्शी एंड कंपनी में वह इंटर्नशिप कर रहा है। यह 100 साल पुरानी शिपिंग और लॉजिस्टिक्स कंपनी है। यहां उसे आने-जाने के खर्च और भोजन के अलावा 4000 रुपए भी मिलते हैं। 
पढ़ाई के प्रति उसका समर्पण और घर के कामों और खेल के समय को ठीक से बंटवारे के कारण भी उसे यह इंटर्नशिप हासिल करने में मदद मिली। यहां तक कि उसका टेलेंट भी एक फुटबॉल गेम के दौरान ही सामने आया, जो कॉर्पोरेट जगत से खेला गया था। इसके बाद से ये सभी व्यक्तित्व में बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं। उनकी झोपड़ियां देखे बिना कोई यह नहीं कह सकता है कि वे किस पृष्ठभूमि से हैं। आगे बढ़ने की अपनी इच्छा के बल पर उन्हें आत्मविश्वास मिला है। 
फंडा यह है कि जिसने भी बचपन के टाइम को 'पास' किया हो, टाइम पास नहीं किया हो, उसकी जिंदगी कभी फेल नहीं हुई। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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