एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
फंडा यह है कि अगर आपका कल से आज बेहतर हैं और जितना बोया है उससे ज्यादा काट रहे हैं तो नाखुश होने की कोई वजह नहीं है।
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7 जुलाई को मेरे आईआईटी क्लास के कुछ दोस्तों ने हमारे कॉलेज के वाट्सएप ग्रुप पर अपने परिवारों के साथ तस्वीरें पोस्ट कीं। किसानों के कपड़ों में वे हंसी-मजाक करते हुए एक-दूसरे को मिट्टी लगाते नज़र रहे थे।
किसानों की दिनचर्या और उनकेे खुशहाल जीवन को समझने के लिए वे धान के पौधे रोप रहे थे। वे लोग ऊपरी असम के गोलघाट जिले के दुर्गापुर गांव में किसान अधिकार संस्था कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) के ऑर्किड और बायोडाइवर्सिटी पार्क में थे। इस सुविधा के लिए उन्हें प्रति यात्री सिर्फ 500 रुपए अदा करने पड़े। साथ में भोजन, चाय और नाश्ता भी था। यहां केएमएसएस के अनुभवी किसान पर्यटकों और शहरी युवाओं को किसानों के काम का अनुभव कराते हैं। यह तीन दिन का उत्सव है जो शुक्रवार से ही शुरू हुआ है। मिट्टी में खेलने और किसानों के जीवन का अनुभव पूरे दिन काम करके लेने का यह स्थान काजिरंगा नेशनल पार्क के नजदीक है। उन्होंने धान की बुआई की, क्योंकि इसका मौसम है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। फिर मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने किसानों के साथ चाय पी है? उन्होंने बताया पैरेंट्स ने किसानों के साथ चाय पीना पसंद किया, जो उसे प्लेट में 'सररर' की आवाज के साथ पीते हैं, जबकि उनके शहरी बच्चों ने बड़े मग में बिना प्लेट के चाय पी। उन्हें दो बातें नागवार गुजरीं, एक सररर की आवाज और दूसरा जमीन पर पालथी मारकर बैठना। फिर मैंने फैसला किया कि उन्हें एक कविता भेजूं- आईएम ड्रिंकिंग फ्रॉम माय सॉसर। जॉन पॉल मूर की कविता कुछ इस तरह है-
मैंने कभी बहुत पैसा नहीं कमाया,
और मैं अब कमाऊंगा भी नहीं
किंतु इससे सच में कोई फर्क नहीं पड़ता
क्योंकि वैसे भी मैं खुश हूं
जब मेरी यात्रा आगे बढ़ रही है
जो बोया है मैंने उससे अच्छी फसल काट रहा हूं
मैं तश्तरी से पी रहा हूं
क्योंकि मेरा प्याला लबालब भरा है
मेरे पास बहुत दौलत नहीं है
और जीवन कभी-कभी मुश्किल हो जाता है
लेकिन रिश्तों और दोस्तों से मुझे प्यार मिला है
मुझे लगता है कि मैं काफी धनी हूं
मैं ईश्वर को उसकी कृपा के लिए धन्यवाद देता हूं
कि उसकी दया ने मुझे इतना दिया
मैं तश्तरी से पी रहा हूं
क्योंकि मेरा कप लबालब भरा है....आश्चर्यजनक रूप से जब मेरे एक दोस्त ने यह कविता पढ़ी और इसका मतलब भी पर्यटकों को बताया तो सभी ने एक बार और चाय मांगी। इतनी कि कप भर गया और चाय तश्तरी में गई। फिर उन्होंने इसे सररर की आवाज के साथ पिया और खुशी को महसूस किया। क्योंकि उनके कप लबालब भरे थेे। उन्होंने कहा था कि अगर जो आपने कल बोया था, आज उससे अच्छा काट रहे हैं तो आपके लिए नाखुश होने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि आपकी खुशी बढ़ गई है और इसे जाहिर करने के लिए आप अपनी चाय तश्तरी में डालकर आवाज करते हुए पी सकते हो। जब दूसरी बार चाय आई तो स्वाभाविक रूप से इसे काफी आवाज के साथ पिया गया। इतना कि आसपास पेड़ की शाखों पर बैठे पक्षी डर गए और यह कलरव इस बात का संकेत था कि वर्तमान से उन्हें कितनी खुशी मिली है। फंडा यह है कि अगर आपका कल से आज बेहतर हैं और जितना बोया है उससे ज्यादा काट रहे हैं तो नाखुश होने की कोई वजह नहीं है।
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साभार: भास्कर समाचार
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