प्रदेश सरकार द्वारा जाटों को आरक्षण देने के खिलाफ पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई है। सफीदों निवासी शक्ति सिंह ने याचिका दायर कर आरोप लगाया कि सरकार ने जाटों के दबाव में आरक्षण दिया है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही जाटों को आरक्षण देने की नीति को रद कर चुका है और राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग कह चुका है कि जाट सेना, शिक्षा संस्थानों व सरकारी सेवा में उच्च पदों पर हैं, ऐसे में उनको आरक्षण देना सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है और कानूनन खिलाफ है। दूसरा इंद्रा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता, जबकि प्रदेश सरकार ने यह सीमा 70 फीसद तक
पार कर दी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। याचिकाकर्ता के वकील सत्यनारायण यादव द्वारा दायर याचिका में बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1992 में इंद्रा साहनी केस में कहा था कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण 50 फीसद से अधिक नहीं हो सकता। हरियाणा सरकार ने वर्ष 2014 में भी जाटों समेत अन्य जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में आरक्षण दिया था और इसे सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की सिफारिश को आधार बनाते हुए रद कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा था कि आयोग का सर्वे है कि आम्र्ड फोर्स, सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में जाटों का पुख्ता प्रतिनिधित्व है, ऐसे में उन्हें पिछड़ा नहीं माना जा सकता।
याचिका में कहा है कि 29 मार्च को विधानसभा में बिल पारित करके जाटों को बीसी सी में शामिल कर लिया गया। हरियाणा में मौजूदा आरक्षण के हिसाब से सरकारी नौकरियों के श्रेणी ए व बी में बीसी ए को 11 प्रतिशत, बीसी बी को 6 प्रतिशत, बीसी सी को 6 प्रतिशत और ईबीपी को 7 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, जबकि तृतीय व चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरियों में बीसी ए को 16 प्रतिशत, बीसी बी को 11 प्रतिशत, बीसी सी को 10 और ईबीपी को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। इस लिहाज से प्रदेश में आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय आरक्षण फीसदी से कहीं अधिक हो गया है, जोकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।
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साभार: जागरण समाचार
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