एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
स्टोरी 1: उस जेल में कई अपराधी ऐसे थे, जिनके पास कोई काम नहीं था। जेल अधीक्षक जानते थे कि उनका यहां होना तो तभी सार्थक होगा जब उनके लिए सही रोजगार का इंतजाम हो सके। काम करने की रचनात्मकता होगी तभी ये भटके हुए लोग सही रास्ते पर सकेंगे। ठाणे सेंट्रल जेल के अधीक्षक शहर में निकले तो कुछ
स्थानीय लोगों से बातचीत में पता चला कि शहर में अचानक लॉन्ड्री की लागत बहुत बढ़ गई है। कम बारिश के कारण नगर प्रशासन रोज पानी की आपूर्ति करने में असमर्थ हो गया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इधर बिजली की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है और रोजमर्रा के खर्च अधिक होते जा रहे हैं। इस कारण कपड़े प्रेस करने और करवाने तथा धोने महंगा हो का काम बहुत खर्चीला हो गया था।
उन्होंने सोचा जेल में लेबर फ्री है, पानी की अच्छी आपूर्ति है और बिजली की कोई समस्या नहीं है। अधीक्षक जेल लौटकर आए, खर्च का हिसाब-किताब लगाया और जेल में लॉन्ड्री बिज़नेस शुरू करने का फैसला किया। इससे आय तो होनी ही थी, लेकिन सबसे बड़ी बाद कैदियों के लिए काम की व्यवस्था हो जाएगी। कीमत रखी दो रुपए प्रति कपड़ा। लॉन्ड्री बिज़नेस शुरू करने का अनाउंसमेंट लोगों के बीच किया गया। शहर में धुलाई या अन्य कामों के लिए कपड़े एकत्र करने के लिए पिकअप पॉइंट बनाए गए। लोकल शोरूम, मॉल्स से समझौता हुआ। कुछ होटलों से परदे, सोफा कवर धोने का ऑर्डर लिया और इनकी कीमत बाजार की दर से 60 प्रतिशत कम रखी। जेल में पहले से ही लॉन्ड्री सेक्शन मौजूद था, जहां कैदियों और अधिकारियों की वर्दियां धुलती हैं, इसलिए नया काम शुरू करने में उन्हें किसी किसी नए निवेश की जरूरत नहीं थी। उन्होंने यह सुविधा शिफ्ट बेसिस पर शुरू की ताकि लंबे समय तक काम किया जा सके। मॉल्स के लिए पिकअप और डिलिवरी का समय तय कर दिया गया और आज तीन महीने में ही जेल में शुरू यह व्यवसाय मुनाफे का हो चुका है।
स्टोरी 2: वे सभी वरिष्ठ डॉक्टर हैं और संभवत: कार्डिएक सर्जरी के मामले में सर्वश्रेष्ठ सर्जन में इनकी गिनती होती है। इनका काम सिर्फ दिल के अवरोधों को दूर करना है बल्कि दिल को खुश रखना भी है ताकि वह धड़कता रहे। अधिकांश डॉक्टर्स खुश रहने के मेडिकल पक्ष को अच्छी तरह जानते हैं और दिल के ब्लॉकेज को क्लीन करने में अपनी ओर से श्रेष्ठ काम ही करते हैं। आमतौर डॉक्टर मरीज और उसके परिजन को ही आसपास अच्छा माहौल बनाकर रखने को कहते हैं। मरीज को खुश रखने की जिम्मेदारी डॉक्टर खुद पर नहीं लेते। हालांकि, लेकिन पिछले सप्ताह के आखिर में पाकिस्तान के एक अस्पताल में नजारा अलग था। डॉक्टरों और प्रशासनिक स्टाफ में हलचल मची हुई थी। डॉक्टरों ने मरीजों को, खासकर दिल की बीमारी के मरीजों को खुश रखने के जिम्मेदारी अपने पर ले रखी थी। कारण स्वाभाविक था। भारत और पाकिस्तान टी-20 वर्ल्डकप में कोलकाता के ईडन गार्डन में आमने-सामने खेल रहे थे। दरअसल, मन में कही ऐसा संदेह हो रहा था कि इन दो पड़ोसियों के बीच मैच में कई भावनात्मक पल आएंगे और मैच हारना तो दिल के इन रोगियों के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है। पाकिस्तान के गुजरांवाला में भारत और पाकिस्तान के मैच से कुछ ही देर पहले सरकारी और प्रायवेट अस्पतालों में दिल के रोगियों के वार्डों से टेलीविजन सेट हटा लिए गए। यह कदम पाकिस्तान सिविल एडमिनिस्ट्रेशन ने उठाया था। निर्णय सर्जन और डॉक्टरों से सलाह-मशवरा करने के बाद उठाया गया। इलाज कर रहे डॉक्टरों का मानना था कि कुछ रोगी इस मैच से जुड़ी उत्तेजना, तनाव और दबाव को सहने में सक्षम नहीं हैं। मैच के बाद टेलीविजन सेट वापस उसकी जगह पर लगा दिए गए। कुछ लोगों का मानना था कि यह कदम ओवर रिएक्शन जैसा और गैर जरूरी था। फंडा यह है कि हरस्थिति में आप क्रिया और प्रतिक्रिया कर सकते हैं। यह शुद्ध रूप से आपकी चॉइस (चयन) पर निर्भर करता है कि आप क्या करते हैं।