Wednesday, March 16, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: बुरे समय में भी पेरेंट्स आपके लिए श्रेष्ठ चाहते हैं

यह मुलाकात है 42 साल और 63 साल की दो महिलाओं के बीच। इनके पास कुछ ऐसे साझा रहस्य हैं, जो गांव के कई अन्य लोगों को पता नहीं है। छोटी के पास बड़ी के कुछ रहस्य थे, जो चार दशक पुराने थे। बड़ी को पूरी उम्मीद थी कि यह रहस्य कभी बाहर नहीं आएंगे, लेकिन जब उसने उन दफन रहस्यों को शरीर के रूप में अपने
सामने देखा तो बस आंसू ही निकल पड़े थे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वह उन आंसुओं को पी गई, क्योंकि जानती थी कि ये आंसू उसके और उसके बच्चों के भविष्य को प्रभावित करने की पर्याप्त ताकत रखते हैं। किंतु गांव वाले और उसका वर्तमान परिवार और भी ज्यादा हैरत में गया, क्योंकि दोनों में इतनी समानता थी, जिसे नज़रअंदाज किया ही नहीं जा सकता। भारत में हमें इसे कार्बन कॉपी कहते हैं। उनके हाव-भाव, बात करने का तरीका, जिस तरह से वे उठतीं-बैठतीं और किसी को पुकारतीं, सब एकदम मिलता-जुलता। मगर परिवार जानता था कि वे आपस में कभी मिले नहीं हैं, क्योंकि वे बड़ी महिला को जानते हैं। 
अब फ्लैशबैक- बड़ी महिला तब सिर्फ 21 साल की थी। तीन साल पहले उसकी एक किसान से शादी हो चुकी थी, जिसने एक दिन जहर खाकर आत्महत्या कर ली। माता-पिता उसे अपने साथ ले गए और शादी कर फिर से नया जीवन शुरू करने को कहा, लेकिन उसी समय उसे पता चला कि वह गर्भवती है। वह अपने अजन्मे बच्चे को मारने पर अटल थी, इसलिए माता-पिता उसे एक वुमन सेंटर ले गए। उसने बच्ची को जन्म दिया और पूरे प्यार से छह महीने तक उसकी देखभाल की जैसा कि एक मां करती है। मां कभी भी अपने इस अंश को छोड़ना नहीं चाहती थी, लेकिन माता-पिता के दबाव में ऐसा करना पड़ा। ठीक 18 महीने बाद पुणे होम से स्वीडन के एक जोड़े ने बच्ची को गोद ले लिया और वह दुनिया की शानदार सुविधाओं के बीच पली-बढ़ी। एक ऐसे परिवार में रहना जहां बाकी सब आपके समान हो असान नहीं था, लेकिन फिर भी वह उनके बीच खुश थी। कई साल गुजरने के बाद सच उसे बताया गया, जो आज की दुनिया में काफी सामान्य बात भी है तो उसने अपनी मां से मिलने की ठान ली। 1.20 अरब लोगों के बीच लंबी तलाश के बाद 2014 में वह एक संस्था 'अगेंस्ट चाइल्ड ट्रैफिकिंग' (एसीटी) के संपर्क में आई। यह बेल्जियम की स्वयंसेवी संस्था है। अगस्त 2015 में एसीटी ने उन्हें सफलता का एक ई-मेल भेजा कि उनकी मां मिल गई है और साथ में फोटोग्राफ्स भी भेजे। जिस पल उसने फोटोग्राफ्स देखे लगा कि वह उन्हें जानती है, क्योंकि वह अपनी मां की कार्बन कॉपी जो है। 
हाल ही में अपनी लोअर मिडिल क्लास विधवा मां के परिवार से उसकी पहली मुलाकात हुई। परिवार में एक बेटा, एक बेटी और एक पोता है। स्वीडन से आई एलिजाबेथ अपनी मां को गांव से टैक्सी में बिठाकर घुमाने ले गई। यह राइड करीब तीन घंटे चली। टैक्सी बिना किसी गंतव्य के चलती रही, क्योंकि मां और बेटी दोनों ने एक-दूसरे को थाम रखा था और दोनों ने 90 मिनट तक एक शब्द भी नहीं कहा, लेकिन उनकी आंखें बोल रही थीं। बड़ी महिला की आंखें माफी मांग रही थी, जबकि युवा आंखें कह रही थीं- मैं जानती हूं मां आपने यह क्यों किया, यह मेरे अच्छे के लिए था और मैं आपसे प्यार करती हूं। बार-बार कुछ ही मिनटों बाद दोनों एक-दूसरे के आंसू पोछतीं। अगर कोई आंसुओं की उस भाषा को पढ़ना चाहे तो उसके पास बॉलिवुड स्क्रिप्ट होनी चाहिए। मां चाहती थी कि बेटी उसके साथ रहे, लेकिन वह जानती थी कि उस बेटी के लिए क्या श्रेष्ठ है जो चार दशकों से लग्ज़री जीवन जी रही हो। जब टैक्सी रुकी तो मां का ही हाथ था, जिसने अपनी बेटी को फिर जाने दिया, जबकि बेटी एलिजाबेथ, जो अब 42 साल की है, जाना नहीं चाहती थी। 
फंडा यह है कि बुरे समय में भी महान पेरेंट्स हमेशा अपने बच्चों को जीवन में सर्वश्रेष्ठ ही देना चाहते हैं। आप जानते है क्यों? क्योंकि वे आपसे प्यार करते हैं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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