Saturday, March 26, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: जश्न की खुशी दोगुनी करती है परिपक्वता

इस साल होली का उत्सव भारत में क्रिकेट प्रेमियों के लिए अलग ही रंग लिए हुए था। एक आदमी और दस लोगों की उसकी टीम ने जश्न के लिए जरूरी रंगों का अच्छा इंतजाम किया। क्रिकेट टीम का कप्तान होना रॉकेट साइंस जैसा तो है नहीं, लेकिन भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने परिपक्वता का सबक जरूर दे दिया। यह
सबक किसी यूनिवर्सिटी में नहीं सिखाया जाता, लेकिन बुधवार को टी-20 वर्ल्ड कप में बांग्लादेश के खिलाफ दिल की धड़कने रोक देने वाले मैच ने यह सबक सिखा दिया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। बांग्लादेश को आखिरी दो ओवरों में 17 रन बनाने थे। चार विकेट हाथ में थे और अच्छी तरह जम चुके मोहम्मदुल्लाह और पूर्व कप्तान मुशफिकुर रहीम क्रीज पर थे। बांग्लादेश जीत के करीब था। एक टाइट ओवर के बाद बांग्लादेश को 6 बॉल पर 11 रनों की जरूरत थी। धोनी ने आखिरी ओवर के लिए फील्ड लगाने में बहुत लंबा समय लिया और हर बॉल के बाद इसमें बदलाव किया और यह सुनिश्चित किया कि बेहतर खिलाड़ी को सीमा पर रखा जाए। वे जानते थे कि एक बार जब 20वां ओवर शुरू हो जाता है तो कोई जितना चाहे उतना समय ले सकता है और इसके लिए नियमों में कोई दंड नहीं है। समय लेने की सुविधा उनके पास थी और वे जानते थे कि ऐसी परिस्थिति बैट्समैन पर दबाव बढ़ाएगी। 
किंतु उस प्लानिंग को धक्का लगा। शुरुआती तीन गेंदों पर नौ रन बन गए और बांग्लादेश जीत की दहलीज पर पहुंच गया। हालांकि, इसके बाद उनके लिए स्थिति डरावनी हो गई। बॉलर पंड्या पहली तीन बॉल पर दो चौके दे चुके थे। इस समय तक भारत का खेल लगभग खत्म हो गया था, लेकिन पंड्या ने अगली तीन गेंदें बहुत ही समझदारी से की। वे या उनके कप्तान यह बात जानते थे कि हार तब तक नहीं होती जब कि हार हो जाए, भले ही हार सामने नजर आने लगे, लेकिन दूसरी तरफ मुशफिकुर ने जब दूसरा चौका मारा था तो उन्होंने अपना हाथ जीत की मुद्रा में हवा में लहराया था। वह जानते थे कि उन्हें तीन गेंदों पर सिर्फ दो रन चाहिए। उस समय बांग्लादेश के स्टैंड में जीत का केक काटने का जो सपना उन्होंने देखा पूरी तरह गलत कल्पना साबित हुई। वह यह समझने में विफल रहे कि जब तक अंडे में से मुर्गी निकल जाए, अंडे को मुर्गी नहीं गिना जाता। बड़े शॉट मारकर जीत हासिल करने के चक्कर में मुशफिकुर और मोहम्मदुल्लाह लगातार दो बॉलों पर आउट हो गए। 
आखिरी बॉल पर एक रन की जरूरत थी। करोड़ों लोग जो मैच देख रहे थे उनकी धड़कनें तेज हो गई थीं। धोनी तब भी कूल बने रहे और उन्होंने कोई भावना प्रकट नहीं की। आखिरी बॉल के संघर्ष में जब लाखों दिमाग दुविधा की स्थिति में थे, धोनी के दिमाग में अलग ही योजना थी। धोनी ने एक बार फिर लंबे ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन के बाद एक मास्टर स्ट्रोक खेला, जो सेमी-फाइनल की उसकी उम्मीदों को कायम रखने के लिए था। एक बार बल्ला घूमता और बांग्लादेश जीत जाता। एक रन आखिरी गेंद पर बनता तो मैच टाई हो जाता। कुछ भी संभव था जैसे पांसे फेंकने का कोई भी नतीजा हो सकता है। पंड्या अपनी जगह पर थे, धोनी स्टम्प के पीछे पहुंच गए थे और अपने सीधे हाथ का दस्ताना उतार चुके थे कि बाय की स्थिति में बॉल थ्रो करने की जरूरत पड़ सकती है। पंड्या ने बॉल काफी दूर फेंकी, जिसने शुवगाता होम को बीट किया और बॉल धोनी के हाथों में पहुंच गई। कॅरिअर के आखिरी दौर में चल रहे 34 साल के खिलाड़ी की तरह नहीं, धोनी ने एक चिंकारे की तरह दौड़ लगाई। बॉल उनके हाथ में थी। वे मुस्तफिजुर से पहले स्टंप तक पहुंचे और रन आउट किया। आखिरी तीन बॉलों पर तीन विकेट गिरे। फिर भी वे हवा में उछले नहीं और ही मुक्का लहराया। समभाव और तटस्थता खास लोगों के मन में होती है। उन्होंने लाखों लोगों को खामोशी से यह बता दिया कि अच्छे समय में बहुत अधिक आनंदित होना और बुरे समय में बहुत दुखी होना अच्छा नहीं है। 
फंडा यह है कि परिपक्वताआपको बुरी परिस्थितियों से निकालती है और यह उत्सवों को दोगुना खुशनुमा भी बनाती है।

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साभार: भास्कर समाचार 
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