Friday, October 9, 2015

बदलाव लाएं और हर उम्र में बनाएं कॅरिअर

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)

स्टोरी 1: हरमुंबइकर के लिए रोजा की यात्रा चुनौती होती है। अगर नियमित ट्रेन छूट गई तो, फिर आगे जाने के लिए वाहन पकड़ना उस दिन के लिए बड़ी समस्या बन जाता है। यात्रा में हर तरह के वाहन शामिल होते हैं। ऑटो रिक्शा से लेकर, टैक्सी, ट्रेन और बस तक। नवी मुंबई के बहुत से रहवासी तो कभी-कभी जल मार्ग से यात्रा करते हैं। देखा जाए तो मुंबई में हर कर्मचारी अपने वेतन का औसतन पांच से नौ प्रतिशत हिस्सा आने-जाने पर खर्च करता है। साथ ही प्रतिदिन उसका 67 मिनट का समय यात्रा में जाता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हालांकि, मुंबइकर इसी तरह दशकों से रहते रहे हैं, लेकिन किसी ने भी कभी यह नहीं सोचा कि सभी तरह के लोक परिवहन साधनों की समय सारणी को एक मंच पर मजबूती से लाया जाए। हाल ही में 25 साल के सचिन टेके ने 2010 में इसका हल निकालने का फैसला किया। वे कई वर्षों से नवी मुंबई की नेरुल रेसिडेंस के अपने घर से मुंबई के अंधेरी स्थित ऑफिस जाते रहे हैं। घर पर बैठे-बैठे ही उन्होंने एक कोड लिखा और एक फ्री एप एम-इंडिकेटर लॉन्च किया। शुरू में यह सिर्फ ट्रेन टाइमटेबल बताने वाला एप था, लेकिन धीरे-धीरे बस और ऑटो रिक्शा टैक्सी सर्विस जैसी सुविधाओं को भी डीपो के फोन नंबर के साथ इसमें शामिल कर लिया गया। लोगों ने एप डाउनलोड करना शुरू कर दिया और साल-दर-साल इनकी संख्या बढ़ती गई। सचिन धैर्य से एप में नई सुविधाएं जोड़ते गए। एप में ताजा अपडेट इस साल अगस्त में किया गया है। इसमें ट्रेन कौन-से प्लेटफॉर्म पर आएगी, यह जानकारी भी शामिल की गई है। और रद्‌द हुई ट्रेन की जानकारी भी अपनेआप सामने जाती है। वे जल्द ही इसमें अन्य सोशल एप की तरह चैट सर्विस भी लॉन्च करने वाले हैं। इससे लोग यात्रा के बारे में जानकारी दे पाएंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि जब भी रेलवे को अपने यात्रियों को अलर्ट या किसी अड़चन की कोई जानकारी देनी होती है, तो अधिकारी सचिन टेके से संपर्क करते हैं, क्योंकि आज उनके एप को 90 लाख लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि, कई निवेशक इस सेवा को अन्य शहरों में भी ले जाने के लिए निवेश के लिए राजी हैं, लेकिन टेके ने अपने पत्ते खोले नहीं हैं और अब तक किसी भी निवेशक से हाथ नहीं मिलाया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
स्टोरी2: करीबदो दशक अमेरिका में बिताने के बाद 60 साल के अफजल खत्री और उनकी पत्नी नुसरत खत्री 2010 में मुंबई में बसने के लिए लौट आए। नवरात्र उत्सव मनाने की इजाजत लेने के लिए एक दिन वे कांदीवली उपनगर के समतानगर पुलिस स्टेशन पहुंचे। उन्होंने देखा कि कुछ कॉन्सटेबल फूलों के गमलों को व्यवस्थित कर रहे हैं और उनमें पानी दे रहे हैं, जबकि वे मुरझा चुके थे। उन्होंने तुरंत पुलिस स्टेशन इंचार्ज विनायक मूले के सामने प्रस्ताव रखा कि वे फ्लावर पॉट दान करना चाहते हैं, अगर उन्हें नियमित रूप से पानी देने की इजाजत भी मिले। उन्होंने 30 गमले डोनेट किए। प्रकृति के प्रति उनके प्रेम से प्रभावित होकर मूले उन्हें पुलिस स्टेशन के पीछे ले गए और बैकयार्ड दिखाया, जहां करीब 1.5 एकड़ जमीन पूरी तरह कबाड़ से भरी हुई थी। यह पिछले 20 साल में पुलिस द्वारा बरामद सामान रखा हुआ था, जिन्हे लेने वाला कभी कोई नहीं आया। इसे साफ करना असंभव लगता था। चूंकि यह एक पुलिस स्टेशन था तो नगर प्रशासन अपने संसाधनों से इस स्थान की सफाई में मदद के लिए तैयार हो गया और हर रोज तीन घंटे सफाई की जाने लगी। पास के ठाकुर कॉलेज से भी मदद मिली। यहां से रोज 40 छात्र सफाई के लिए आने लगे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। लक्ष्य था पूरी जमीन को बिना परिस्थितिकीय तंत्र में बदलाव किए बदलना। अब पांच साल बाद पुलिस स्टेशन बायो-डाइवर्सिटी पार्क से घिर गया है, जिसमें 1800 पेड़- पौधे हैं। छात्र यहां प्रकृति के बारे में सीखने और निहारने आते हैं, जबकि विदेशी यह देखने आते हैं कि कैसे एक बायो-डाइवर्सिटी पार्क बिना परिस्थितिकी को छेड़े बनाया जा सकता है। 
फंडा यह है कि आपकिसी भी उम्र में अपने कॅरिअर में आगे बढ़ सकते हैं, अगर आप अपने आसपास की समस्याओं को पहचानें और उसका कोई समाधान निकाल सकें। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारभास्कर समाचार 
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