Friday, February 6, 2015

पदोन्नति में आरक्षण मामले में सुनवाई 7 अप्रैल तक स्थगित

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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण की नीति को रद करने के एकल बेंच के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है। इस मामले में सामान्य वर्ग के कर्मचारियों ने प्रतिवादी बनाने की मांग की थी। अगली सुनवाई अब 7 अप्रैल को होगी। डिविजन बेंच दिसंबर में भी हरियाणा
सरकार व अन्य प्रतिवादी पक्ष को नोटिस जारी कर जवाब तलब कर चुकी है। डिविजन बेंच स्पष्ट कर चुकी है कि अगर सरकार इन कर्मचारियों को पदावनत कर उनकी जगह सामान्य श्रेणी के कर्मचारी को प्रमोशन देती है तो सामान्य श्रेणी का कर्मचारी उस पद पर समानता का दावा पेश नहीं करेगा। शिक्षा विभाग के करीब तीन सौ कर्मचारियों की तरफ से दायर याचिका में एकल बेंच के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई थी। बहस के दौरान याचिकाकर्ता के वकील कर्मवीर बनयाना ने बेंच को बताया कि हाईकोर्ट की एकल बेंच का आदेश कानूनन सही नहीं है क्योंकि प्रभावित कर्मचारियों को उस मामले में प्रतिवादी ही नहीं बनाया गया। एकल बेंच को फैसला सुनाने से पहले उनका पक्ष भी सुनना चाहिए था।

यह है मामला: एकल बेंच ने 14 नवंबर को अपने आदेश में हरियाणा सरकार की उस नीति को रद कर दिया था जिसके तहत सरकार ने ग्रुप सी व डी के एससी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दिया था। इसी के साथ हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह तीन महीने के भीतर इस नीति के तहत आरक्षण लेकर प्रमोशन पाए कर्मचारियों को डिमोट करे। हाईकोर्ट ने यह आदेश धर्मपाल सिंह व अन्य द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया था। इस मामले में याचिकाकर्ता ने हरियाणा सरकार द्वारा वर्ष 2006 से 2013 के दौरान बनाई गई नीति को चुनौती दी थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अनदेखा कर अपने राजनीतिक फायदे के लिए एससी वर्ग के ग्रुप सी व डी के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दे रही है। यह उचित नहीं है। इससे अन्य वर्ग के कर्मचारियों को नुकसान होगा। याचिका में बताया गया कि इससे पहले ओबीसी वर्ग को भी प्रमोशन में आरक्षण दिया जाता था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 1997 में ओबीसी वर्ग को भी प्रमोशन में आरक्षण देना बंद कर दिया गया था। लेकिन सरकार ने वर्ष 2006 के बाद कई नीति लागू कर एससी वर्ग के कर्मचारियों को प्रमोशन देना शुरू कर दिया, जो कानूनन गलत है।
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साभार: जागरण समाचार
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