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विश्व विख्यात हरिमंदिर साहिब के विशाल परिसर में मौजूद गुरु रामदास
लंगर ‘किचन मैनेजमेंट और हॉस्पिटेलिटी’ की एक अनूठी मिसाल है। दुनिया की
इस सबसे बड़ी रसोई में हर काम इतनी तेजी और सलीके से होता है कि पता नहीं
चलता कि कब 70 हजार से डेढ़ लाख लोगों के लिए खाना बन जाता है। आम दिनों
में यहां साठ से
सत्तर हजार और त्योहारों व छुट्टी के दिनों में डेढ़ लाख से
अधिक लोग मुफ्त भोजन ग्रहण करते हैं। 24 घंटे चलने वाले इस लंगर में दाल,
सब्जी, चावल, रोटी, सलाद और मीठा भी परोसा जाता है। खाने का स्वाद भी लजीज
होता है। - क्या पकेगा, पहले से ही तय होता है: गुरु रामदास लंगर के मैनेजर प्रताप सिंह का कहना है कि भोजन में क्या-क्या पकेगा, यह पहले से ही तय होता है। उसी के मुताबिक पहले से रसद का इंतजाम कर लिया जाता है। जैसे ही लोग पंक्तियों में बैठते हैं, तुरंत भोजन परोसना शुरू कर दिया जाता है। जैसे ही वे भोजन खाकर उठते हैं, बैटरी चालित मशीन से लंगर हाल की सफाई कर दी जाती है ताकि दूसरे लोग आकर बैठ सकें।
- 500 किलो घी रोज: लंगर में रोज 20 क्विंटल दाल, सब्जियां, 12 क्विंटल चावल, 70 क्विंटल आटा लगता है। 500 किलो देसी घी इस्तेमाल होता है। सौ गैस सिलेंडर, 500 किलो लकड़ी की खपत होती है।
- यहां से आता पैसा: संसार भर में बसते लाखों सिख परिवार अपनी कमाई का दसवां भाग गुरुद्वारों की सेवा में अर्पित करते हैं। इन्हीं पैसों से गुरुद्वारों की प्रबंध और लंगर का खर्च चलता है। चूंकि लंगर का सारा कामकाज सेवा भावना और मन से किया जाता है, इसलिए यहां सब-कुछ अच्छा होता है। वैसे यहां इस्तेमाल होने वाली सभी वस्तुओं की क्वाॅलिटी की परख की जाती है।
- बर्तन धोने के लिए लगती है लाइन: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के एडिशनल सेक्रेटरी दलजीत सिंह बेदी बताते हैं लंगर भवन में करीब 250 मुलाजिम तीन शिफ्टों में काम करते हैं, लेकिन इनका हाथ बंटाने के लिए जो श्रद्धालु अपने-आप यहां पहुंच जाते हैं, उनकी संख्या नहीं बताई जा सकती, जो भोजन के लिए अदरक-लहसुन छील देते हैं, आलू-गोभी काट देते हैं, मटर निकाल देते हैं और रोटियां भी बेलते हैं। बड़ी बात यह है कि भोजन को परोसने और जूठे बर्तन धोने का काम भी बड़े श्रद्धा से करते हैं। बर्तन धोने के लिए यहां लाइन लगती है।
- नहीं होती कोई शिकायत: जाने-माने शेफ विकास खन्ना कहते हैं कि एक मीडियम आकार होटल में भी खान-पाने के लिए शेफ, वेटर्स की लम्बी-चौड़ी फौज होती है, इसके बावजूद शिकायतें मिलती हैं। वहीं गुरु रामदास लंगर का खाना इतना स्वादिष्ट होता है कि मन तृप्त हो जाता है। कभी कोई शिकायतें नहीं करता।
- गुरु नानक देव से शुरुआत: लंगर प्रथा की शुरुआत सिख धर्म के पहले गुरु नानक देव जी के जीवनकाल में हो गई थी, जब पिता ने उन्हें कुछ पैसे देकर व्यापार करने के लिए भेजा था। वह उन पैसों से साधु-संतों को भोजन करा कर ‘सच्चा-सौदा’ करके लौट आए थे।
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साभार: भास्कर समाचार
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