Monday, February 23, 2015

शिक्षा सुधारों की गति पर लगा ब्रेक

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शिक्षा सुधारों की गति पर फिलहाल ब्रेक लग गया है। नई शिक्षा नीति को अंतिम रूप देने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय लोगों से राय ले रहा है। हालांकि स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में बड़े सुधारों के प्रस्ताव ठंडे बस्ते में हैं। अगले हफ्ते से शुरू होने वाले संसद के बजट सत्र में सरकार आईआईएम और नेशनल एकेडेमिक डिपोसिटरी विधेयक
लाने जा रही है। विद्यार्थियों को आठवीं तक हर हाल में पास किए जाने संबंधी नियम को हटाने की सिफारिश हो या फिर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में समान प्रवेश परीक्षा और समान पाठ्यक्रम के प्रस्ताव दोनों पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। मार्च में केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की बैठक होनी है। इसमें शिक्षा सुधार को लेकर कई मुददें के हल होने की उम्मीद है। सरकार आगामी बजट में केजी से पीजी तक एक मॉडल पर काम करने का ऐलान कर सकती है। इसके तहत छात्रों को एक ही संस्थान में केजी से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट, पीएचडी तक करने की सुविधा होगी। उसे स्कूली शिक्षा के बाद कहीं और भटकना नहीं पड़ेगा। शिक्षा से जुड़े जानकार बताते हैं कि सरकार का यह प्रस्ताव अच्छा है लेकिन पुराने प्रस्तावों को लेकर भ्रम की स्थिति बरकरार है। शिक्षा के अधिकार में बदलाव को लेकर गीता भुक्कल कमेटी ने सिफारिश की थी। शिक्षा के अधिकार के तहत आठवीं तक बच्चों को फेल करने पर प्रतिबंध लगाया गया था। समिति ने इसे हटाने की सिफारिश की थी। इसे लेकर मंत्रालय ने कोई फैसला नहीं लिया है। साथ ही दसवीं बोर्ड को फिर से लागू करने को लेकर भी विचार हो रहा है। कैब की बैठक में भी इस पर विचार विमर्श किया जाएगा। केंद्रीय विश्वविद्यालय में समान प्रवेश परीक्षा और समान पाठ्यक्रम के मुद्दे पर फैसला लंबित है। च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम को भी अगले सत्र से लागू करने का सरकार पर दबाव है। आगामी बजट सत्र में सरकार आईआईएम विधेयक लाने जा रही है। इसके तहत अब आईआईएम भी आईआईटी की तरह प्रबंधन के पाठ्यक्रम को लेकर डिग्री दे सकेंगे। 

यूपी में 3 वर्षों में नहीं खुला प्राथमिक स्कूल: स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही हैं। मगर स्कूलों की संख्या कई सालों से नहीं बढ़ रही। केंद्र सरकार सर्व शिक्षा अभियान और माध्यमिक शिक्षा अभियान में पिछले तीन-चार साल से खुलने वाले नए स्कूलों की संख्या नाम मात्र है। उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली में तो पिछले तीन साल से कोई नया प्राथमिक स्कूल ही नहीं खुला। उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर में भी नए स्कूलों की तादाद बेहद कम है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत यूपी में पिछले तीन साल से कोई नया स्कूल नहीं खुला। इस योजना के तहत केंद्र की ओर से राज्य को पिछले तीन साल में करीब 11 लाख रुपये की राशि मिली है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत केंद्र सरकार 65 फीसदी राशि देता है जबकि 35 फीसदी राज्य को खर्च करना पड़ता है। यूपी सरकार केंद्र पर भेदभाव का आरोप लगाती रही है। 
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साभार: अमर उजाला समाचार
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