Saturday, February 21, 2015

13 साल की इस भारत की बेटी ने बनाई गौमूत्र से बिजली

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8वीं में पढ़ने वाली 13 वर्षीय साक्षी दशोरा ने गोमूत्र से बिजली तैयार की है। मावली के गड़वाड़ा व्यास एकेडमी की इस छात्रा ने गाय के गोबर और गोमूत्र साइंटिफिक यूज बताते हुए “इम्पॉर्टेंस ऑफ काउब्रीड इन 21 सेंचुरी’ प्रोजेक्ट बनाया है। मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के इंस्पायर अवार्ड के तहत उसके प्रोजेक्ट को अब इंटरनेशनल लेवल पर पहचान मिलेगी। ये प्रोजेक्ट दो माह बाद जापान में आयोजित सात दिवसीय सेमिनार में प्रदर्शित होगा। वहां साक्षी लेक्चर भी देगी। साक्षी ने अगस्त 2014 में हुई प्रदर्शनी में इस प्रोजेक्ट के लिए उदयपुर जिले में छटी रैंक, फिर
सितम्बर में डूंगरपुर में आयोजित राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में 12वीं रैंक और इसके बाद नेशनल लेवल दूसरी रैंक हासिल की थी। साक्षी सहित प्रदेश के अन्य तीन बच्चों का भी जापान के लिए चयन हुआ है।

ऐसे बनाई बिजली: साक्षी ने बताया कि गौमूत्र में सोडियम, पोटेशियम, मेग्नीशियम, सल्फर एवं फास्फोरस की मात्रा रहती है। उन्होंने प्रोजेक्ट में एक लीटर यूरीन में कॉपर और एल्युमिनियम की इलेक्ट्रोड डाली, जिसे वायर के जरिए एलईडी वॉच से जोड़ा। बिजली पैदा होते ही वॉच चलने लगी। गौमूत्र की मात्रा के अनुसार बिजली पैदा होगी। गौमूत्र कैंसर सहित अन्य बीमारियों से भी बचा सकता है। गोबर से लेप करें तो तापमान कंट्रोल रहेगा। इससे अगरबत्ती भी बनाई जा सकती है। 
गायों की दुर्दशा देखकर आया था आईडिया: साक्षी ने बताया कि भारत में गायों की संख्या तेजी से घट रही है, और कहीं इनका हाल भी भारत के शेरों जैसा न हो जाए इसीलिए उन्होंने यह तरकीब अपनाई। साक्षी ने बताया कि जब गाय दूध देना बंद कर देती है तो उसे छोड़ दिया जाता है जिससे उसकी दुर्दशा हो जाती है। इसीलिए अगर गोमूत्र से बिजली बनने लगेगी तो गायों के दुधारू न रहने पर भी उनकी दुर्दशा नही होगी।
कब शुरू हुआ प्रोजेक्ट: साक्षी ने बताया कि उन्होंने यह प्रोजेक्ट अगस्त 2014 में शुरू किया था। जिलास्तर पर सिलेक्ट होने के बाद साक्षी ने इसे राज्य स्तर पर चयनित होने के लिए भेजा। सितंबर 2014 में प्रोजेक्ट राज्य स्तर पर भी चुना गया। अक्टूबर में हुए राष्ट्रीय स्तर के चयन में साक्षी का प्रोजेक्ट भी चुना गया और अब साक्षी मई 2015 में जापान में अपना प्रोजेक्ट प्रस्तुत करेंगी। साक्षी ने बताया कि जापान जाने की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और उन्होंने पासपोर्ट के लिए अर्जी दे दी है।
स्कूल से मिली प्रेरणा, फैमिली और टीचर्स का भरपूर सपोर्ट: साक्षी का कहना है कि उन्हें इस प्रोजेक्ट का आइडिया आने के बाद उन्होंने अपने टीचर से जाकर इसे शेयर किया। टीचर ने जब यह आइडिया सुना तो उन्होंने ने भी साक्षी का साथ दिया और प्रोजेक्ट को बनाने में भरपूर मदद की। साक्षी की मेहनत के साथ टीचर युगल किशोर शर्मा, ललित व्यास और सुशील कुमावत के मार्गदर्शन ने इस प्रोजेक्ट को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है।
जरूरी उपकरण उपलब्ध नहीं: साक्षी का कहना है कि उन्हें गोमूत्र के अंदर कई तत्वों की व्यापक जांच के लिए उनके पास जरूरी व पर्याप्त उपकरण मौजूद नही हैं। उन्होंने बताया कि उनके पिता पटवारी हैं और माता ग्रहिणी और परिवार की मंथली इन्कम 20 हजार रुपए है, जिसके चलते वे अपने खर्च पर महंगी मशीनें नही ले सकते। साक्षी ने बताया कि अगर उन्हें ये उपकरण मिल जाएं तो वे अपने प्रोजेक्ट को और भी ज्यादा व्यापक बना सकती हैं। 
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साभार: भास्कर समाचार
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