अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक भगवान रामलला विराजमान का है या किसी और का, ये अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा। आखिरकार सात साल बाद सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई का नंबर आ गया है।
शुक्रवार को तीन न्यायाधीशों की विशेष पीठ अयोध्या जन्मभूमि विवाद में लंबित अपीलों और अर्जियों पर सुनवाई करेगी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सात साल पहले राम जन्मभूमि का बंटवारा तीन बराबर हिस्सों में करने का आदेश दिया था, लेकिन किसी भी पक्ष को जमीन का बंटवारा स्वीकार नहीं है और सभी ने जमीन पर दावा पेश करते हुए हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 30 सितंबर 2010 को 2-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड मे बांटने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने9 मई 2011 को अपीलें विचारार्थ स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी और सभी पक्षों को यथास्थिति कायम रखने के आदेश दिए थे जो फिलहाल लागू हैं। इसीलिए रामलला का तिरपाल भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बदला जाता है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्र, अशोक भूषण व अब्दुल नजीर की पीठ शुक्रवार दो बजे मामले की सुनवाई करेगी। पीठ के समक्ष कुल 21 याचिकाएं सुनवाई के लिए लगी हैं। जिसमें रामलला विराजमान की ओर से उनके निकट मित्र त्रिलोकी पांडेय मुकदमे की पैरवी करेंगे। हालांकि, हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ रामलला की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील देवकी नंदन अग्रवाल ने निकट मित्र की हैसियत से दाखिल की थी, लेकिन उनकी मृत्यु हो गई और अब उनकी जगह त्रिलोकी पांडेय पक्षकार बन गए हैं। शुक्रवार से मामले की नियमित सुनवाई होगी या फिर नियमित सुनवाई की रूपरेखा तय होगी, ये सुनवाई के बाद ही पता चलेगा।
क्या है पक्षकारों की दलीलें: रामलला विराजमान की अपील में कहा गया है कि जब हाई कोर्ट ने यह मान लिया कि मुसलमानों का जमीन पर दावा नहीं बनता और इस बात के साफ साक्ष्य हैं कि पहले वहां उत्तर भारत की नगर प्रकृति का मंदिर था तो फिर जमीन के बंटवारे का आदेश देना ठीक नहीं है। जब एएसआइ की खुदाई में साबित हो गया कि वहां पहले मंदिर था तो हाई कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के इस्माइल फारुखी केस के मुताबिक फैसला करना चाहिए था। यह भी कहा गया है कि जब एक बार जमीन को राम जन्मभूमि घोषित कर दिया गया है तो फिर उसे अंदर का हिस्सा, बाहर का हिस्सा या केंद्रीय गुंबद आदि में बांटना असंगत है। निर्मोही अखाड़े की दलील है कि जब मुसलमानों का जमीन का वाद खारिज कर दिया गया है तो उन्हें जमीन का हिस्सा कैसे बांटा जा सकता है। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपनी अपील में कहा है। उनका वाद गलत खारिज किया गया है। हिन्दू महासभा ने भी अपील दाखिल कर रखी है जिसमें कहा गया है कि मुसलमानों को एक तिहाई जमीन देने का आदेश गलत है।
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साभार: जागरण समाचार
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