Sunday, August 27, 2017

अपने रहवासी इलाके की परवाह करना भी देशभक्ति है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
स्टोरी 1: इस शुक्रवार हरियाणा के पंचकूला शहर ने 1977 में इसकी स्थापना के बाद की सर्वाधिक भीषण हिंसा देखी। अपने प्रमुख को दुष्कर्म का दोषी ठहराए जाने के बाद वाहनों इमारतों में आग लगा रहे डेरा सच्चा सौदा के
अनुयायियों को काबू में करने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी, जिसमें तीस से ज्यादा लोग मारे गए और ढाई सौ से ज्यादा घायल हुए। जलते वाहनों से निकले धुएं और आंसू गैस के गोले फोड़े जाने से पंचकूला चंडीगढ़ के नियोजित शहरों का दम घुटने लगा और कर्फ्यू के कारण घबराहट फैल गई। हिंसा सबसे पहले सेक्टर 3 से शुरू हुई, जहां डेरा अनुयायी मंगलवार से डटे हुए थे। वे पहले राष्ट्रीय राजमार्ग और सेक्टर 21 पर आए और पथराव करने लगे। फिर सड़क किनारे पार्क किए वाहनों को नुकसान पहुंचाते हुए रहवासी क्षेत्रों की ओर बढ़े। तोड़फोड़ की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई और सेक्टर 16 में पहुंची, जहां 7000 लोग रहते हैं, जिन्हें एक के बाद एक बुरी खबरें मिल रही थीं। पहला शिकार सेक्टर 16 का राउंडअबाउट बना, जिसके बाद एचडीएफसी बैंक का नंबर आया, स्थानीय 'पल्लवी होटल' जलकर राख हो गया। फिर पास ही का शो रूम फिटनेस सेंटर। हरियाणा मत्स्य विभाग तथा मेडिकल रिसर्च की इमारतें देख गुस्सा और बढ़ा, जिन्हें बहुत नुकसान पहुंचाया गया। कम से कम उन चंद घंटों में शहर अंधकार के युग में पहुंच गया और बेकाबू भीड़ अपने पीछे विनाश का मंजर छोड़ती आगे बढ़ रही थी। सेक्टर 16 के लोग जानते थे कि क्या होने वाला है। सामने आने वाली स्थिति से निपटने की कोई योजना तो नहीं थी लेकिन, हर किसी ने पूरी कॉलोनी को बचाने की जिम्मेदारी ली, क्योंकि वे जानते थे कि उनके पास जो कुछ भी था वह उनकी खून-पसीने की कमाई थी। वे जानते थे कि इन कीमती चीजों को वे यूं ही लपटों के हवाले नहीं होने दे सकते थे। उन्होंने फिर वही किया, जो वे कर सकते थे- एकजुट होकर अपनी ताकत दिखाना। बुजुर्ग फायर ब्रिगेड को कॉल लगाते रहे पर कोई जवाब नहीं मिला। एक अन्य गुट लपटें बुझाने के लिए पानी का टैंकर खींच लाया। जबकि 16 से 21 वर्ष आयु के 150 युवाओं का समूह सेक्टर की रक्षा में तैनात हो गया। उन्होंने सिर्फ पूरे सेक्टर की रक्षा की बल्कि हिंसक भीड़ से कड़ा मुकाबला कर उसे खदेड़ दिया। आखिरकार राजीव कॉलोनी और इंदिरा कॉलोनी के झुग्गीवासी सेक्टर 16 के रहवासियों और दुकानदारों के तारणहार सिद्ध हुए। 
स्टोरी 2: कौन नहीं जानता कि केरोसीन लैम्प से निकलने वाले विषैले तत्व कमजोर होती दृष्टि श्वसन प्रणाली आदि जैसी व्याधियों को बढ़ा रहे हैं। फिर अधिकांश गरीब घरों में अाग लगने का खतरा तो लगातार बना ही रहता है। हम सब जानते हैं कि सारे लोगों के लिए समान जीवनस्तर का लक्ष्य तभी साकार होगा, जब हम अक्षय ऊर्जा की टेक्नोलॉजी को अपनाएंगे। लेकिन, सवाल यही है कि पहला कदम कौन उठाएगा। नई दिल्ली की कालकाजी/गोविंदपुरी झुग्गी बस्ती के हाई स्कूल के छात्रों और गृहणियों ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज एनजीओ 'शांति सहयोग' के साथ मिलकर सौर ऊर्जा से चलने वाले एलईडी लैम्प बनाएं, जिसमें उच्च गुणवत्ता की फोटोवोल्टिक और लिथियम ऑयन बैटरी लगी है। इन्हेें सूर्य की रोशनी से चार्ज किया जा सकता है। एक बार चार्ज करने पर यह आठ घंटे चलती है। इन लोगों ने सिर्फ कुछ सौ या कुछ हजार लैम्प नहीं बनाए हैं। इन 'लैम्प्रेन्योर्स' ने नए युग के ऐसे दो लाख प्रोडक्ट बनाकर अपने आसपास बहुत बड़ा फर्क पैदा कर दिया है। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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