शेखर गुप्ता (एडिटर इन चीफ, द प्रिंट)
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
यदि पंचकूला की घटनाएं सामने होतीं तो यह प्रश्न किसी को भी चकरा देता कि देश के किस हिस्से में प्रति वर्ग किलोमीटर सबसे ज्यादा बाबा मौजूद हैं? बेशक, पंजाब हरियाणा। सारे ही ऐसे बदमाश नहीं हैं। कई ने तो अपना
अलग आध्यात्मिक दर्शन विकासित किया। वे कानून का पालन करते रहे हैं और उन्होंने जनसेवा तथा परोपकार का काम भी किया। शेष बाबाओं में ज्यादातर जमीन हथियाने वाले राजनीतिक बिचौलिए, सत्ता के दलाल तथा छद्म कारोबारी निकले। पिछले दिनों देश के इस इलाके को एक दोषी सिद्ध दुष्कर्मी बाबा के अनुयायियों ने बंधक बना लिया, जिस पर दो हत्याओं का मामला चल रहा है, जिसमें एक निर्भीक स्थानीय पत्रकार की हत्या का मामला भी है, जिसने दुष्कर्म का मामला उजागर किया। इन दिनों बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह इंसा सुर्खियों में है। सिरसा में बाबा के उच्च सुरक्षा वाले छोटे शहर या 'डेरा' के अलावा हिसार में बाबा रामपाल का ठिकाना था। वह जेल में है और उस पर इतने गंभीर आरोप हैं कि उसकी बाकी जिंदगी जेल में कटनी तय है। नवंबर 2014 में हरियाणा पुलिस को उसके अनुयायियों से कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। पंजाब में राधास्वामी और निरंकारी पंथ काफी समय से मौजूद हैं। राधास्वामी पंथ कभी विवादित नहीं रहा। इसके मौजूदा मुखिया या बाबाजी कैंसर से जूझ रहे हैं। पंजाब में किसी भी आध्यात्मिक व्यक्ति को गुरु के बजाय बाबाजी ही कहा जाता है, क्योंकि सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने कहा था कि आगे पवित्र गुरु ग्रंथ साहब को ही गुरु का दर्जा रहेगा। राधास्वामी संप्रदाय में अब आनुवांशिक उत्तराधिकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन, उत्तराधिकार की सुनियोजित, सौहार्द्रपूर्ण प्रक्रिया जारी है। राधास्वामी संप्रदाय के नए मुखिया का नाम भाई शिविंदर मोहन सिंह है। हम उन्हें रैनबैक्सी/रेलिगेयर/फोर्टिस जैसी अव्वल कंपनियों से जुड़े भाइयों में से एक के तौर पर जानते हैं। दूसरे भाई मालविंदर मोहन सिंह हैं। लुटियन्स के गलियारों में दोनों को एमएमएस और एसएमएस के नाम से जाना जाता था। निरंकारियों का इतिहास कहीं अधिक घटनाप्रधान रहा है। लंबे समय तक उनके प्रमुख रहे बाबा गुरबचन सिंह की जरनैल सिंह भिंडरांवाले के लोगों ने यह कहकर हत्या कर दी थी कि वे खुद को 'गुरु' बताते हैं। सच तो यह है कि भिंडरांवाले का उदय ही उस समय हुआ जब 1978 में बैसाखी के दिन उसके अनुयायी निरंकारियों के धार्मिक जमावड़े के समक्ष प्रदर्शन करने पहुंचे। बाबा के समर्थकों ने गोलीबारी कर दी, जिसमें 16 लोगों की मौत हो गई। तब स्वर्ण मंदिर स्थित अकाल तख्त से हुक्मनामा जारी हुआ कि निरंकारियों के साथ रोटी-बेटी का संबंध रखा जाए। फिर आते हैं नामधारी। सफेद पगड़ीवाले ये सिख सर्वाधिक मित्रवत और विनम्र होते हैं। उनके पिछले प्रमुख जगजीत सिंह का कोई बेटा नहीं था और उन्होंने अपने दो भतीजों में से एक उदय सिंह को वारिस चुना। उदय सिंह ने अपनी मां 'बाबा' चांद कौर की मदद से पंथ का नेतृत्व संभाला। लुधियाना में 4 अप्रैल 2016 को मोटरसाइकिल सवार बंदूकधारियों ने चांद कौर की हत्या कर दी। दोनों भतीजों ने एक दूसरे पर इसका आरोप लगाया। कुछ छोटा लेकिन, सुगठित पंथ भनियारा बाबा का है, जो पंजाब के रूपनगर जिले के नूरपूर बेदी में है। उनके अनुयायियों में पूर्व गृहमंत्री और कांग्रेस नेता बूटा सिंह शामिल रहे हैं, जो मानते थे कि उनकी बीमार पत्नी बाबा के चमत्कार से ठीक हुई। परंतु 2001 में जब उन्होंने अपने चमत्कारों से सजी किताब 'भावसागर ग्रंथ' प्रकाशित कराई तो उन्हें गुरुद्रोही माना गया। हरियाणा में एक अदालती पेशी के वक्त बब्बर खालसा के एक सदस्य ने उन्हें चाकू मार दिया। इनके अलावा भला फ्रीजर बाबा को कौन भूल सकता है? आशुतोष बिहार से आए थे और पंजाब में उन्होंने लाखों अनुयायी बनाए। जनवरी 2014 में उनका निधन हो गया लेकिन, अनुयायी मानते हैं कि वे समाधि में हैं और लौटेंगे। उनके शव को फ्रिज में रख दिया गया। यह क्षेत्र बाबाओं के लिए इतना अनुकूल क्यों है यह समाज विज्ञानियों के सामने सवाल है? मैंने कई बातें सुनी हैं लेकिन, एक बात जो मुझे सही लगती है वह यह है कि सिख धर्म दुनिया का सबसे नया बड़ा धर्म (500 वर्ष से कुछ ज्यादा) है और अभी इसका विकास हो रहा है। यह पवित्र पुस्तक पर आधारित है, जिसमें बहुत कड़े आध्यात्मिक सिद्धांत हैं। बाबा तीन काम करते हैं। एक, वे धर्म के आचरण को सरल बनाते हैं, यानी जीवनशैली पर कम पाबंदियां। दूसरा, चूंकि सिख और हिंदू धर्मों पर एक-दूसरे का प्रभाव ै, इसलिए बाबा दोनों ओर से लोगों को आकर्षित करते हैं और बाजार के अनुकूल हाइब्रिड प्रोडक्ट देते हैं। तीसरी बात, पवित्र पुस्तक में भले ही तमाम बुद्धिमानी की बातें कही गई हों लेकिन, निराशा के क्षणों में कई बार आपको किसी मनुष्य की आवश्यकता होती है खासतौर पर ऐसे मनुष्य की जिसकी ईश्वरीय प्रतिष्ठा हो।
राम रहीम सभी बाबाओं से अधिक लोकप्रिय हुआ। यही वजह है निरंकारियों के खिलाफ हुक्मनामे के 35 साल बाद अकाल तख्त ने राम-रहीम के अनुयायियों से रोटी-बेटी का संबंध रखने का हुक्मनामा जारी किया। वोट के लालच में अकाली-भाजपा सरकार ने दबाव बनाया कि बाबा की वीडियो के जरिये मांगी गई माफी को स्वीकार किया जाए। माफी दे दी गई। सिखों ने इसका विरोध किया और वह माफी वापस लेनी पड़ी। हालांकि आम धारणा यही है उसने हालिया चुनाव में अकाली-भाजपा गठबंधन की मदद इसलिए की ताकि उसे सीबीआई मामलों में राहत मिल सके। अब उनमें से एक मामले में उसे सजा हो चुकी है।
बाबाओं का यह वोट बैंक और थोकबंद वोटों के लिए नेताओं का लालच पंजाब और हरियाणा के लिए अभिशाप बन चुका है। पूर्व में कांग्रेस इसमें माहिर थी। अब भाजपा ने भी यह खेल सीख लिया है। अकालियों ने भी इन डेरों को संरक्षण देकर दो कार्यकाल निकाल लिए। यदि कोई बहादुर पत्रकार दुष्कर्म के आरोप की गहराई में जाता है तो उसे गोली मार दी जाती है जैसे सिरसा में 'पूरा सच' के राम चंदर छत्रपति के साथ हुआ। नतीजा यह है कि बाबाओं को लगता है कि वे कानून से ऊपर हैं, जब तक कि सीबीआई कोर्ट के बहादुर जज जगदीप सिंह पटकथा बदल नहीं देते।