एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: नागपुररहवासी प्रमोद गौतम या उनके पिताजी कभी नहीं चाहते थे कि परिवार में कोई किसान बने, जबकि परिवार के पास गांव में 26 एकड़ जमीन थी और खेती उनके लिए पहला व्यवसाय होना चाहिए था। शायद इसके पीछे खेती से घाटा होने की आशंका हो। इस सोच का स्वाभाविक नतीजा यह रहा कि प्रमोद ने नागपुर के यशवंतराव चव्हाण कॉलेज से ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। इससे वे अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी प्राप्त करने में कामयाब रहें। लेकिन, जल्दी ही इस नौकरी में उन्हें कुंठा महसूस होेने लगी, क्योंकि नौकरी में वह आज़ादी नहीं होती, जिसकी शायद उन्हें खामी खल रही हो। इंजीनियर होने के कारण उन्होंने वाहनों के कल-पुर्जों का अपना व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया। व्यवसाय चला भी, किंतु 2006 में उन्होंने खेती में किस्मत आजमाने का फैसला किया और 26 एकड़ जमीन उनके लिए वरदान की तरह थी। फिर चाहे इसमें उन्हें दोगुनी मेहनत करने की जरूरत थी।
उन्होंने सफेद मुंगफली और हल्दी लगाई पर मुख्यत: कामगारों की समस्या के कारण बहुत घाटा हुआ। घाटे के बाद प्रमोद ने ऐसी फसलों की ओर रुख किया, जिसमें ज्यादा खेतिहर मजदूरों की जरूरत हो। 2007-08 में उन्होंने संतरे, जाम, नीम्बू, मौसम्बी, केले और तुअर दाल लगाई। बागवानी में खेतिहर मजदूरों पर निर्भरता उतनी नहीं होती, क्योंकि कपास या सोयाबीन की परम्परागत फसल की तरह उन पौधों पेड़ों को उतनी देखभाल की जरूरत नहीं होती। फिर बागवानी करने वाले किसानों के लिए पूरे निवेश के पुनर्भुगतान की सरकारी योजना भी है।
अपने बागों के फल नागपुर में बेचते हुए प्रमोद के ध्यान में आया कि जहां किसान अपने दलहन मिलों को बहुत कम कीमत पर बेच देते थे लेकिन, प्रोसेस करने के बाद मिल मालिक उन्हें मूल कीमत से लगभग दोगुनी कीमत पर दाल बेचते हैं। ये मिलें भी खेतों से बहुत दूर थीं, जिससे परिवहन लागत बहुत बढ़ जाती। इन सब कारणों से किसान को बहुत ही कम मुनाफा मिलता। अब प्रमोद ने अपनी मिल शुरू करने का फैसला किया। खुद की आय बढ़ाने का उद्देश्य तो था ही पर वे किसानों की मदद भी करना चाहते थे। लिहाजा, बैंक से लोन लेकर प्रमोद ने 25 लाख रुपए से दाल मिल शुरू की और दाल को 4.50 रुपए प्रति किलो की लागत पर प्रोसेस किया और किसान को भी प्रति क्विंटल 65 किलो प्रोसेस की हुई दाल दी। इससे किसान को स्वतंत्र रूप से दाल सप्लाई करने, नागपुर के उपभोक्ताओं को दाल बेचने और इस तरह अपना मुनाफा दोगुना करने का मौका मिला। आज प्रमोद 'वंदना' के ब्रैंड नाम से प्रोसेस की हुई दाल और दलहन भी बेचते हैं। दाल मिल से उनका वार्षिक टर्नओवर 1 करोड़ रुपए से अधिक है और बागवानी से उन्हें अतिरिक्त 10-12 लाख रुपए मिल जाते हैं। यह उससे कहीं ज्यादा है, जो वे इंजीनियर के रूप में कमाते थे। प्रमोद की मिल में हर साल करीब 2500 क्विंटल दलहनों की प्रोसेसिंग होती है और उन्होंने आठ ग्रामीण युवाओं को रोजगार भी दिया है। निवेश और चुकाए जा रहे ब्याज के बाद वे 40 फीसदी शुद्ध मुनाफा कमा रहे हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि नौकरी में महसूूस हो रही कुंठा से मुक्त होकर वे बहुत खुश है।
स्टोरी 2: नौशिद पाराम्मल डिज़ाइनर बनना चाहते थे पर उन्हें अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन में प्रवेश नहीं मिला। फिर वे विज्ञापन की दुनिया में चले गए और ब्रिटेनिया जैसी कंपनियों के लिए छापे जाने वाले विज्ञापन बनाने लगे। उन्होंने पैसा तो कमाया पर वे खुश नहीं थे। एक दिन उनकी मुलाकात अशोक से हुई, जो केरल के अपने खेत पर सरल-सी ज़िंदगी बिता रहे थे और नारियल की पत्तियों से खिलौने, बास्केट टोपियां बनाया करते थे।
अशोक की सरल-सी ज़िंदगी ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी को वैसा बनाने और अपनी जरूरतें कम करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपना ज्यादातर सामान कपड़े लोगों को दे दिए और जीवन के लिए अावश्यक मूलभूत चीजें ही अपनी पास रखीं। यहां तक कि खान-पान की आदतें भी बदल लीं। इस आमूल परिवर्तन के कारण वे परिवार मित्रों के लिए अजनबी बन गए। आज वे शहरों के बच्चों के लिए खिलौने बनाकर पैसा कमाते हैं। उनके खिलौने बहुत लोकप्रिय हुए हैं। इससे उन्हें अपनी जि़ंदगी चलाने के लिए पर्याप्त पैसा मिलता है। यदि उन्हें अानक पैसों की जरूरत पड़ती है तो वे फ्रीलांस में एक या दो असाइनमेंट ले लेते हैं और काम चला लेते हैं।
साभार: भास्कर समाचार