साभार: भास्कर समाचार
डोकलाम विवाद पर 72 दिन बाद भारत और चीन अपनी-अपनी सेनाएं हटाने को राजी हो गए हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करके यह जानकारी दी है। हालांकि चीन की ओर से कहा गया है कि सिर्फ भारतीय जवान पीछे हटे हैं। उसके सैनिक इलाके में पेट्रोलिंग करते रहेंगे। बता दें कि सिक्किम के डोकलाम इलाके में चीन के सड़क बनाने से इस विवाद की शुरुआत हुई थी। एक्सपर्ट के मुताबिक, दाेनों देशाें के बीच यह अब तक का सबसे लंबा टकराव रहा। इससे पहले 1962 में दोनों देशों की सेनाएं करीब एक महीने तक आमने-सामने रही थीं। DainikBhaskar.com आपको बता रहा है कि 1962 की जंग क्यों हुई थी? तब और अब के हालात में क्या फर्क था और इस बार विवाद क्यों हुआ:
1962 में टकराव क्यों हुआ: अक्साई चिन और अरुणाचल बॉर्डर पर अंग्रेजों के वक्त से विवाद था। तिब्बत में बगावत हुई। दलाई लामा का भारत ने सपोर्ट किया। इससे चीन भड़क गया।
नतीजा क्या रहा: दोनों देशों में जंग हुई।
कितना नुकसान: हमारे 1383 सैनिक शहीद हो गए।
किसकी सत्ता: नेहरू प्रधानमंत्री थे। चीन में माओत्से तुंग प्रेसिडेंट थे।
2017 में टकराव क्यों हुआ: सिक्किम में चीन ने सड़क बनाना शुरू की।
नतीजा क्या रहा: भारत ने विरोध जताया तो चीन ने घुसपैठ कर दी।
कितना नुकसान: चीन ने भारत के दो बंकर तोड़ दिए। करीब ढाई महीने तक टकराव बना रहा।
किसकी सत्ता: मोदी प्रधानमंत्री हैं। शी जिनपिंग प्रेसिडेंट हैं।
एक हफ्ते बाद साफ होगी स्थिति: डोकलाम ट्राइजंक्शन से करीब 30 किलोमीटर ऊपर डोकला पठार और डोकलाम से 15 किलोमीटर नीचे तक के इलाके पर चीन अपना दावा करता रहा है। यहां की जियाेग्राफिक कंडीशन के आधार पर चीन कमजोर नहीं है। चीन अगर कह रहा है कि भारतीय सेना पीछे हटने काे तैयार हो गई है और उसकी सेनाएं वहां गश्त करती रहेंगी। इसका मतलब कि मौजूदा टकराव दूर हो गया है, लेकिन डोकलाम का विवाद बरकरार है। चीन पहले ही कह चुका था कि डोकलाम में भारत के 400 सैनिक थे, जिनमें से 300 लौट चुके हैं। कुल मिलाकर दोनों देशों में क्या समझौता हुआ है इस पर करीब एक हफ्ते में स्थिति साफ हो सकती है। मोदी ब्रिक्स समिट में जा सकते हैं, क्योंकि ये मल्टीलेट्रल प्लेटफॉर्म है। वन बेल्ट वन रोड समिट से भारत इसलिए दूर रहा था, क्योंकि ये चीन का प्रोजेक्ट था और सीपैक का हिस्सा था। ये भारत की सॉवरिनिटी के खिलाफ था।
क्यों हुई थी 1962 की जंग - पहली वजह: भारत-चीन के बीच जम्मू-कश्मीर के अक्साई चिन और अरुणाचल बॉर्डर पर विवाद है। अक्साई चिन बॉर्डर को जॉनसन लाइन और अरुणाचल बॉर्डर को मैकमोहन लाइन कहते हैं। 1899 में अंग्रेजों ने अक्साई चिन चीन को दे दिया, लेकिन 1918 में वापस ले लिया। इस पर चीन का ब्रिटिश हुकूमत से विवाद चलता रहा। भारत आजाद हुआ तो अक्साई चिन भारत के हिस्से में आ गया। तब से ही यह विवाद चल रहा है। इसी तरह चीन अरुणाचल बॉर्डर को विवादित बताता है। दरअसल, 1913-14 में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के रिप्रेजेंटेटिव्स की बॉर्डर को लेकर बातचीत हुई। ब्रिटिश अफसर हेनरी मैकमोहन ने समझौते के साथ एक नक्शा पेश किया। इसमें हिमालय को आधार मानते हुए तिब्बत और भारत की पूर्वी सरहद तय की गई थी। लेकिन चीन को यह नक्शा मंजूर नहीं था। अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद भी यह विवाद जारी रहा। चीन ने 1959 में भारत के 50 हजार वर्गमील के इलाके पर दावा कर दिया।
क्यों हुई थी 1962 की जंग - दूसरी वजह: जब 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया तो दलाई लामा और उनके अनुयायियों ने बगावत कर दी। चीनी सेना उन्हें बंदी बनाती, इससे पहले ही मार्च 1959 में दलाई लामा पनाह लेने भारत आ गए। इससे चीन बौखला गया। उसे लगा भारत इस बगावत को हवा दे रहा है। उसने जंग की तैयारी शुरू कर दी।
ट्राई जंक्शन पर है डोकलाम जहां चल रहा था विवाद: चीन सिक्किम सेक्टर के डोकलाम इलाके में सड़क बना रहा था। डोकलाम के पठार में ही चीन, सिक्किम और भूटान के बॉर्डर मिलते हैं। भूटान और चीन इस इलाके पर अपना-अपना दावा करते रहे हैं। भारत इस विवाद में भूटान का साथ देता है। भारत में यह इलाका डोकलाम और चीन में डोंगलांग कहलाता है।
क्यों सड़क बनाने पर अड़ा चीन? क्यों जरूरी था उसे रोकना: चीन जहां सड़क बना रहा था, उसी इलाके में 20 किलोमीटर हिस्सा सिक्किम और नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों को भारत के बाकी हिस्से से जोड़ता है। यह ‘चिकेन नेक’ भी कहलाता है। चीन का इस इलाके में दखल बढ़ता तो भारत की कनेक्टिविटी पर असर पड़ना तय था। भारत के कई इलाके चीन की तोपों की रेंज में आ जाते। चीन अपनी सड़क को डोकलाम से साउथ में गामोचेन की तरफ बढ़ाना चाहता था। गामोचेन पर भारत की सिक्युरिटी फोर्स तैनात है। गामोचेन से ही जम्फेरी रिज शुरू होता है। यह रिज भूटान के इलाके में है। अगर चीन सड़क को बढ़ाता तो वह न सिर्फ भूटान के इलाके में घुस जाता, बल्कि वह भारत के सिलीगुड़ी काॅरिडोर के सामने भी खतरा पैदा कर देता।
कहां हुई 1962 की जंग: 8 सितंबर 1962 को 800 चीनी सैनिकों ने तिब्बत की ढोला पाेस्ट में भारतीय सैनिकों को घेर लिया। बाद में नेफा की ओर से घुसपैठ की। 12 अक्टूबर को जवाहर लाल नेहरू ने नेफा में भारत की जमीन चीनी सैनिकों से खाली कराने का ऑर्डर दिया। इससे कम्युनिस्ट लीडर माओत्से तुंग तमतमा गए। चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू कर दिए।
भारत को कितना नुकसान हुआ?
- 1962 की जंग भारत हार गया। भारत की तरफ से सिर्फ 12 हजार सैनिकों ने चीन के 80 हजार सैनिकों से मुकाबला किया था। इस लड़ाई में
1383 भारतीय सैनिक शहीद हुए, 1047 घायल हुए। करीब 1700 सैनिक लापता हो गए और 3968 सैनिकों को चीन ने बंदी बना लिया था।
उधर, चीन के 722 सैनिक मारे गए, 1697 घायल हुए थे।
- 20 नवंबर 1962 को चीन ने एकतरफा जंग बंद करने का एलान कर दिया।
भारत क्यों हारा जंग: जानकार मानते हैं कि भारत सरकार ने सेना को हवाई हमले की इजाजत नहीं दी, नहीं तो हम जंग जीत जाते। चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश को भारत से लगभग छीन लिया था और चीनी सेना असम के तेजपुर तक पहुंचने वाली थी। दूसरी तरफ, लद्दाख के अक्साई-चिन इलाके पर भी चीन ने कब्जा कर लिया था। बाद में चीन ने अपनी सेना को अरुणाचाल प्रदेश से हटा लिया था और जंग बंद करने का एलान कर दिया।
इस बार सिर्फ घुसपैठ तक नहीं थमा विवाद: चीन की तरफ से विवाद घुसपैठ तक ही नहीं थमा। चीन ने कहा कि भारतीय सैनिक तुरंत पीछे हट जाएं। भविष्य में कैलाश मानसरोवर यात्रा जारी रखना इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत इस टकराव का हल कैसे निकालता है? सीमा पर तनाव के चलते नाथू ला दर्रे से कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते को भारतीय श्रद्धालुओं के लिए चीन ने बंद कर दिया। इसके बाद भारत ने इस रूट से यात्रा रद्द कर दी थी।
मानसरोवर यात्रा का सिक्कम विवाद से क्या संबंध: मानसरोवर यात्रा के लिए नाथु ला पास वाला रास्ता डोकलाम भी जाता है। डोकलाम में ही चीन सड़क बना रहा था। दिल्ली से नाथु ला के रास्ते मानसरोवर आने-जाने में 19 दिन लगते हैं। नाथु ला के रास्ते मानसरोवर जाने के लिए सिर्फ ढाई दिन पैदल चलना पड़ता है। बाकी सफर प्लेन और बसों में होता है। इस रास्ते की दूरी 3000 किमी है। दिल्ली से चलकर उत्तराखंड और लीपूलेख के रास्ते कैलाश-मानसरोवर अाने-जाने में 22 दिन लगते हैं। इसमें 12 दिन पैदल चलना पड़ता
है। पर दिल्ली से इस रास्ते की दूरी 854 किमी है। चीन ने शुरू में मानसरोवर यात्रा रोके जाने की वजह नहीं बताई थी, बाद में खुलासा हुआ कि वह डोकलाम को लेकर चल रही तनातनी की वजह से यात्रा रोक रहा है। विवाद बढ़ने पर भारत ने इस रास्ते से यात्रा रद्द कर दी थी।