धर्म और राजनीति का परोक्ष गठबंधन और धर्मगुरुओं का प्रभाव हमेशा से सार्वजनिक रहा है। लेकिन यह भी सच है कि कुछ धर्मगुरुओं ने राजनीति और नेताओं के लिए परेशानी ही खड़ी की है। खासकर गुरमीत राम रहीम
सिंह जैसे गुरुओं के उदय ने ऐसी स्थिति पैदा की जिसमें धर्म और राजनीति एक मंच पर खड़ी दिखती रही है। और कई बार धर्म शासन प्रशासन पर भी भारी पड़ता रहा है। राम रहीम ऐसे धर्मगुरु रहें हैं जिसका प्रदेश के हर दल से संबंध रहा है, और वक्त आने पर वह इसकी कीमत भी वसूलते रहे हैं। हरियाणा में डेरा समर्थकों के प्रति प्रदेश सरकार की नरमी को पिछले चुनाव में उनके समर्थन से जोड़कर ही देखा जा रहा है।
हरियाणा के सिरसा में स्थित डेरा सच्चा सौदा ऐसा अकेला गढ़ रहा है जो सीधे तौर पर अपने समर्थकों को राजनीतिक लाइन देता रहा है। बताते हैं कि यह ब्लाक स्तर पर बनाई गई समितियों के सहारे राजनीतिक संदेश देता है। जाहिर है कि राजनीतिक दलों को भी ऐसा गढ़ भाता है जो उनकी सीधी मदद करे। एक ऐसा गढ़ जो जातीय आधार पर भी वोटरों को सुनिश्चित करे। लेकिन करोड़ों समर्थकों के गुरूर में ऐसे गढ़ बाद में शासन प्रशासन को ठेंगा दिखाने से भी नहीं चूकते हैं। 2007 में डेरा सच्चा सौदा ने पंजाब में कांग्रेस के लिए अपील की थी। कांग्रेस तो हार गई लेकिन डेरा के प्रभाव में कांग्रेस को सीटें मिली थी। कांग्रेस हार गई तो राम रहीम ने भी सुर बदल लिया और अकाली के साथ हो लिए।
पंजाब के सबसे बड़े डेरा के रूप में मशहूर डेरा बेसाई या राधा स्वामी सत्संग सच्चा सौदा से अलग है। गुरु बाबा गुरिंदर सिंह ठिल्लों ने कभी भी अपने समर्थकों को सीधा राजनीतिक संकेत नहीं दिया। लेकिन पिछले चुनाव में उनके पास जाने वालों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक शामिल रहे। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने बाबा के बहनोई परमिंदर सिंह शेखों को अपना एडवाइजर बनाकर यह संदेश देने में चूक नहीं कि डेरा का आशीर्वाद उधर है।
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साभार: जागरण समाचार
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