पं. विजयशंकर मेहता (जीने की राह)
परिवार में एक-दूसरे के प्रति गैर-जिम्मेदार रहना भी एक तरह का आतंक है। ग्लोबल दृष्टि से देखें तो इस समय दुनिया के सारे देश जिन-जिन समस्याओं से जूझ रहे हैं उनमें से एक बड़ी है परिवार के ढांचे का ध्वस्त
होते जाना। सामाजिक स्थिति तो लगभग सभी देशों में विकृत रूप ले चुकी है। दुनिया में साढ़े छह करोड़ लोग विस्थापित हो गए हैं। यह एक पारिवारिक पीड़ा है। लोग अपने ही घर में सदस्यों को ढूंढ़ रहे हैं। दुनिया की इस भीड़ में अपने लोग कब खो गए, पता ही नहीं चला। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। भारत के घरों की भी ऐसी ही स्थिति है। बच्चों को पढ़ा-लिखाकर उन्हें इतनी योग्यता दी कि उन्होंने सबसे पहली छलांग घर से बाहर ही लगाई। छलांग भी इतनी लंबी कि कई लोगों के तो लौटकर आने की संभावना ही खत्म हो गई। यह उनका गमन हुआ, उत्थान हुआ परंतु लगा जैसे वे पलायन कर गए। आज भी कई परिवार उदास हैं। कई माता-पिता बच्चों से दूर होने का दुख व्यक्त भी नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं, इसमें उनकी भी भूमिका है। जब घर के सदस्य बिखर गए तो एक आतंकी संगठन घर में भी प्रवेश कर गया जिसका नाम है अकेलापन। इस समय दुनिया में कई आतंकी संगठन अपने-अपने ढंग से हिंसा कर रहे हैं, गलत काम कर रहे हैं पर हमारे घरों में अकेलापन एक ऐसे ही अनुचित संगठन के रूप में प्रवेश कर गया है। पांच-दस लोगों के बीच में रहने के बाद भी लोगों को अकेलापन लगता है। जिनके हाथों में परिवार का नेतृत्व है वे परिवार को आर्थिक दृढ़ता देते हैं, सामाजिक पहचान देते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उच्चता देते हैं लेकिन यह भी ध्यान रखें कि आप जिस भी पद से नेतृत्व कर रहे हों, परिवार की उदासी जरूर मिटाएं। बाकी सदस्यों को प्रसन्नता और शांति जरूर दें।
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साभार: भास्कर समाचार
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