वध के लिए गाय, बैल, भैंस और बछड़े की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने वाली केंद्र की अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। आल इंडिया जमीयतुल कुरैशी एक्शन कमेटी के अध्यक्ष और पेशे से वकील अब्दुल
फहीम कुरैशी ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में कोर्ट से वध के लिए पशुओं की खरीद-फरोख्त पर प्रतिबंध की अधिसूचना को असंवैधानिक घोषित कर निरस्त किए जाने की मांग की गई है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। बुधवार को वकील सनोबर अली कुरैशी ने न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ के समक्ष याचिका का जिक्र करते हुए मामले पर 9 जून को सुनवाई का आग्रह किया। इस पर पीठ ने 15 जून को मामले पर सुनवाई की रजामंदी दे दी।
दाखिल याचिका में कहा गया है कि यह रोजगार की आजादी (अनुच्छेद 19), भोजन के चयन के अधिकार जो जीवन के अधिकार के तहत आता है (अनुच्छेद 21) और धार्मिक आजादी (अनुच्छेद 25) का उल्लंघन है। संविधान में मिले मौलिक अधिकारों का हनन करने के कारण इस अधिसूचना को रद किया जाए। यह भी कहा गया है कि पशुओं की बिक्री पर रोक का किसानों और पशु व्यापार करने वालों की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। जो लोग आज की तारीख में अपने बच्चों को भोजन मुहैया कराने में मुश्किल महसूस कर रहे हैं, उन्हें जानवरों के लिए चारे का प्रबंध करना पड़ेगा, क्योंकि पशु क्रूरता निषेध अधिनियम में पशुओं की ठीक देखभाल न करना अपराध है। इतना ही नहीं वे गोरक्षा दलों से भी प्रताड़ित हो सकते हैं जिन्हें इन नियमों में प्रश्रय मिलता है।
इतना ही नहीं संविधान में मिली धार्मिक आजादी के अधिकार का भी यह अधिसूचना हनन करती है क्योंकि इसमें कुर्बानी और बलि के लिए भी पशुओं की खरीद-फरोक्त पर रोक है जबकि पशु क्रूरता निषेध अधिनियम की धारा 28 इससे छूट देती है। इस तरह अधिसूचना में जारी किए गए नियम मूल कानून का ही उल्लंघन करते हैं।
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साभार: जागरण समाचार
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