Friday, May 26, 2017

मेडिकल पीजी प्रवेश के लिए नए सिरे से होगी काउंसिलिंग; सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

हरियाणा सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट में मेडिकल के पीजी पाठ्यक्रम में प्रवेश के मामले में राज्य सरकार व डॉक्टरों की याचिकाएं खारिज करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर मुहर लगा दी है।  यह
पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। कोर्ट ने रोक आदेश के बावजूद दूसरे दौर की काउंसिलिंग करने पर हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि ये अवमानना में आता है ऐसा नहीं होना चाहिए था। कोर्ट ने पीजी प्रवेश के लिए नए सिरे से काउंसिलिंग कराने और 10 जून तक प्रवेश की सारी प्रक्रिया पूरी कर लेने का आदेश दिया है। साथ ही कहा है कि अगर सरकार चाहे तो नए सिरे से दूरदराज और मुश्किल क्षेत्र चिह्नित कर एक सप्ताह के अंदर नई अधिसूचना जारी कर सकती है।
यह है मामला: मामला हरियाणा में मेडिकल के पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में प्रवेश से जुड़ा है। जिसमें दूरस्थ और मुश्किल क्षेत्रों में काम करने वाले एमबीबीएस डॉक्टरों को एमडी और एमएस आदि के पीजी कोर्स में प्रवेश में मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया (एमसीआइ) रेगुलेशन के मुताबिक अतिरिक्त अंक दिए जाते हैं। यह विवाद राज्य की दूरस्थ और मुश्किल क्षेत्रों की सूची की अधिसूचना को लेकर था। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने गत 9 मई को अधिसूचना के साथ-साथ पहले दौर की काउंसिलिंग भी रद कर दी थी और 22 मई को नए सिरे से काउंसिलिंग कराने का आदेश दिया था। साथ ही सरकार को याचिकाकर्ताओं को एक-एक लाख रुपये मुआवजा देने को भी कहा था। सरकार और नियमों का लाभ पाने वाले डॉक्टरों ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुरुआत में ही 22 मई की काउंसिलिंग पर रोक लगा दी थी।
सरकार ने दिया 32 डॉक्टरों को लाभ: हरियाणा सरकार ने पांच मई को अधिसूचना जारी कर दूरस्थ और ग्रामीण इलाको को चिह्नित कर सूची जारी की थी। इसके बाद सरकार ने सात मई तो पहले दौर की काउंसिलिंग में 150 सीटों में से दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में काम करने वाले 32 डॉक्टरों को एमसीआइ रेगुलेशन का लाभ देकर प्रवेश दिया था। आवेदन करने वाले कुछ डॉक्टरों ने सरकार की अधिसूचना को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

अदालत की टिप्पणी: न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव व न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा ने अधिसूचना रद करने के हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि राज्य सरकार ने बिना किसी आंकड़े के सूची तैयार कर पांच मई को अधिसूचना जारी कर दी। यहां तक कि अधिसूचना के गजट मे प्रकाशित होने से पहले उस पर अमल भी कर दिया। इससे साबित होता है कि सरकार ने बिना किसी तैयारी के ऐसा किया था। इसे कोर्ट की मंजूरी नहीं दी जा सकती। पीठ ने कहा कि एमसीआइ का नियम 9 (4) अनिवार्य नहीं, बल्कि यह एक एनेबलिंग प्रोविजन है। सरकार का विवेकाधिकार है कि वह चाहे तो नियमों में लाभ दे सकती है। कोई भी विवेकाधिकार निष्पक्ष और तर्कसंगत ढंग से ही लागू होना चाहिए।

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साभार: भास्कर समाचार 
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